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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महाराजा मारपाल चौलुक्य युद्ध में उतरा । दोनों का घमासान युद्ध हुआ । आन्न की सना पीछे हटती गई, सामने के शत्रुओं को हटाता हुआ कुमारपाल हाथी' पर चढ़ कर शत्रु राजा आन्न के हाथी के पाम जा पहुँचा । बडी ही शीघ्रता और कुशलतापूर्वक लोहशर ( शस्त्र-विशेष ) का प्रहार आन्न के ऊपर कुमारपाल ने किया । आन्न मूर्छित हुआ। सब शत्रु-सेना तितर-बितर हो गई । राज-नीति-विरुद्ध होने से कुमारपाल ने कृपया आन्न को जान से नहीं मारा, परन्तु उस के होथी-घोडे आदि युद्ध का सामान छीन कर स्वाधीन कर लिया । कुमारपाल की विजय हुई, यह बात चारों तरफ फैल गई । जिस को जबरदस्त गर्व थो वह आन राजा भी कुमारपाल से हार गया । अन्त में आन ने दूत भेज कर माफी मांगी । अपने अच्छे-अच्छे हाथी-घोडे आदि कुमारपाल को भेंट किए और अपनी कन्या का कुमारपाल से विवाह करने की प्रार्थना की । कुमारपाल ने उसको उदारता से माफी दी और कन्या तथा भेंट पाटण लाने को कहा । १. इस हाथी का नाम कलह पञ्चानन था । प्र. चि० में लिखा है कि राजा ने वाग्भट को भी घायल कर दिया और सैनिकों ने उसे पकड़ कर स्वाधीन किया । २. कुमारपाल ने ३६ प्रकार के शस्त्र पास में रखे थे । आवश्यकतानुसार उन के काम में लाता था। उस की युद्ध-शस्त्रकला म प्रवीणता प्रसिद्ध थी। For Private and Personal Use Only
SR No.020374
Book TitleHimanshuvijayjina Lekho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHimanshuvijay, Vidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages597
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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