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महाराजा कुमारपाल चौलुक्य
में छिपाकर रक्षा करनेवाले आलिङ्गराज को सात सौ गाम वाली चित्तोड पट्टि का मालिक, कांटे में छिपाकर बचाने वाले को अङ्गरक्षक, जङ्गल में भोजन देने वाली एक बाई को धोलेरा को स्वामिनी और अन्न देने वाले एक वैश्य को बड़ोदे का राजो बनाकर कुमारपाल ने प्रत्युपकार किया ।
कान्हडदेव, जो कुमारपाल का उपकारी और बहनोई था, मना करने पर भी आफिसरों के सामने खुल्लमखुल्ला बार बार कुमारपाल को उपालम्भ देता तथा उपहास करता था । अतः कुमारपाल ने उस का अङ्गच्छेद करवाया, ताकि आयन्दः, अग्नि की तरह, और कोई मेरा अपमान न करे १ । जो हो, जैसे श्रीरामचन्द्रजी ने सीताजी को एकाकिनी जङ्गल में भेजकर अन्याय किया, वैसे कुमारपाल ने इस उपकारी के प्रति कृतघ्नता कर के अपने शुभ्र यश को जरा कलङ्क लगाया है, ऐसा मेरा मत है ।
शत्रुओं का प्रयत्न कुमारपाल के राजगद्दी पर आते ही सिद्धराज के दुश्मन राजा, कुमारपाल को दबाने को और गुजरात के राज्य को छीनने का चारों ओर यत्न करने लगे । आचार्य
१. आदौ मयेवायमदीपि नूनं न तद्वहेन्मामवहेलितोऽपि । __ इति भ्रमादङ्गलिपर्वणाऽपि स्पृश्येत ने। दीप इचावनिपः ॥ प्र. १२७ ॥
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