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महाराजा मारपाल चौलुक्य
समुद्र समान इन की हाथी, घोड़े, रथ और पैदल सेना मीलों तक फैल गई । बीच में जो जो उद्धत राजा माण्डलिकादि आते थे उन को साम-दाम-दण्ड-भेद से अधीन करता गया । कई राजा अपनी अपनी सेना शस्त्रादि सहित कुमारपाल के साथ मिलते गये, जैसे कि सरयुरोज के साथ गदर के बाद दूसरे राजा मिलते गये थे। कुमारपाल के सामने कौन टिक सकता था ? इस तरह चक्रवर्त, युगन्धर, साल्व और कुरु आदि के कई राजाओं की सेना कुमारपाल में मिलने से कुमारपाल को बड़ी खुशी हुई।
इस तरह सर्वत्र विजयी होता हुआ राजा आवू पहाड़ पर आया । वहाँ चन्द्रावती का विक्रमसिंह राजा था । उसने डर कर के भक्ति-पूर्वक नम्र हो कर कुमारपाल से प्रार्थना कर कहा कि 'यह राज्य आपकाही है । मैं तो आपका सेवक हूँ ! आप मेरे मालिक हैं । ' राजा ने आबू से सपादलक्ष में जा कर आन्न के साथ युद्ध शुरू किया । आन्न भी अपने गोविन्दराज सरदार और सेना के साथ
१. प्रभावकचरित्र के हेमचन्द्राचार्य प्रकरण में लिखा है कि अन्दर से विक्रमसिंह अर्णोराज के पक्ष में हो गया था और उस ने कुमारपाल का धोखे से मारने की कोशिश की थी । विक्रमसिंह का कुमारपाल ने कैद कर लिया और उस के भाई रामदेव के पुत्र यशोधवल के राज्य दिया । यह प्रसङ्ग वि० १२०७ के करीब का है ऐसा श्रीमन् मुनि कल्याणविजयजी का मत है।
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