________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
महाराजा कुमारपाल चौलुक्य
इस तरफ कुमारपाल के कुछ अधिकारी' और माण्डलिक (जागीरदार ) भी विरुद्ध होने लगे ।
दुश्मनों का दमन
इन सब बातों को जान कर कुमारपाल ने क्रोध को दवा कर गम्भीरता से विचार किया । विचार करने के बाद उसने सब शत्रुओं का सामना कर उनका अभिमान मिटाने का निश्चय किया। छोटे-बड़े माण्डलिक सामन्तों को एकत्र करके उन की परीक्षा करने के बाद सांकाश्य, फाल्गुनीवह, नांदीपुर आदि के राजाओं को अपने सेनापति के साथ बल्लाल के प्रति युद्ध करने को रवाना किया । ऐरावत, अत्रिसार, दर्वि, स्थल, धूम आदि प्रदेशों के राजाओं को और वीर सेना को लेकर खुद कुमारपाल सपादलक्ष के आन्न रोजा का दमन करने चला ।
१. प्रबन्धचिन्तामणि में लिखा है कि वाग्भट मन्त्री, जिस को सिद्धराज ने पुत्र समान समझा था, ईर्ष्या से कुमारपाल के विरुद्ध हो कर सपादलक्षीय राजा के पक्ष में सेनापति हो कर गया था । सं० द्वयाश्रय में भी (सर्ग १६ श्लोक १४) यह बात इशारे से मिलती है। पर वहां पर चाइड नाम लिखा है, जो वाग्भट का भाई था । दे० प्र० वि० १५३ । वाग्भट को कुमारसाल ने नायब दीवान बनाया था । मेरुतुङ्ग लिखते है-आनाक राजा गुजरात की सीमा तक युद्ध करने को आ पहूँचा था | पृ० १२८ ।
२. प्र. वि. में इस का नाम आनाक और ग्रभावक-चरित्र में अर्णोराज लिखा है । सपादलक्ष देश अजमेर के आस-पासके प्रदेश का नाम है ।
For Private and Personal Use Only