________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
६२
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
महराजा कुमारपाल चौलुक्य
हेमचन्द्र के संस्कृत द्वयाश्रय काव्य से पता चलता है कि उत्तर से सपादलक्ष के आन्न राजा ने शिवहार नदी के तट: वर्ती छोटे बडे राजाओं को साथ लेकर लडने की तैयारी की । दक्षिण के राजाओं के साथ अवन्ती के बल्लाल राजा ने पाटण पर आक्रमण करने का विचार किया । कांथकहद, अरण्यदेश, शिवरूप, पूर्व मद्र, अपरेप, कामशम, गोमती, गोष्ट्या, तैक्या, यल्लोमन् पटच्चर, शूरसेन- वाहोकराट्, रोमकराष्ट्र, नैकेती, काण्व, द्राक्ष, चैकीय, कौशीय राजाओं को भी दुश्मन राजाओं ने अपने पक्ष में करके कुमारपाल पर आक्रमण करने को उत्तेजित किया । इधर कुमारपाल के चार (गुप्तचर) चारों ओर घूमा करते थे । एक दूत ने कुमारपाल को दुश्मनों की इस तैयारी के हाल कह
सुनाए ।
•
१. सिद्धम नामक हैम व्याकरण सूत्रों के उदाहरणार्थ यह ग्रन्थ भट्टिकाव्य की पद्धति का बनाया गया है । इस में श्रीमूलराज से गुजरात का विस्तृत इतिहास निवद्ध है । सोलहवेंसर्ग से कुमारपाल - चत्रि का प्रारम्भ होता है । बम्बई गवर्नमेंट सिरीज में यह सम्पूर्ण ग्रन्थ सटीक दो भागों में छआ है । महाराजा गायकवाड ने इस का गुजराती अनुवाद भी प्रकाशित करवाया है । कुमारपाल का शेष जीवन प्राकृत द्वयाश्रय काव्य में इन्हीं आचार्य ने लिखा हैं । यह भी उपर्युक्त 'सिरीज से प्रकाशित हुआ है । ये दोनों ग्रन्थ सोलकियों के विषय में बहुत प्रकाश डालते हैं । क्योंकि ये सिद्धराज और कुमारपाल के जीवनकाल में लिखे गए हैं। सिद्धहेम व्याकरण को ३२ श्लोकों की प्रशस्ति भी सोलकी इतिहास के लिए उपयुक्त है ।
२. आचार्य हेमचन्द्र रचित संस्कृत द्वयास्य सर्ग १६ के श्लोक ५ से १६ तक ।
For Private and Personal Use Only