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महाराजा कुमारपाल चौलुक्य
और कुमारपाल उत्तराधिकारी होगा तब उसको बहुत दुःख हुआ। कुमारपाल को किसी तरह वह अपने राज्य का मालिक बनाना नहीं चाहता था ! सम्भव है कि कुमारपाल के एक पूर्वज के वेश्या से उत्पन्न होने के कारण वह उसको भी नीच समझकर घृणा करता हो । कुछ भी हो, कुमारपाल को मारने का विचार कर के उसने चारों ओर अपने सिपाही दौड़ाए' ।
हेमचन्द्राचार्य से भेंट जब कुमारपाल को यह मालूम हुआ कि सिद्धराज मुझे मारना चाहता है तब वह पाटण से निकलकर गुप्त वेष में इतस्ततः परिभ्रमण करने लगा। कई बार वह करीब करीब दुश्मन के हाथ पड़ गया परन्तु अपनी चालाकी से बचा । कई बार इसे अपने प्राण बचाने को काँटों की बाड़ों और निभाडे में छिपना पड़ा । जङ्गलों में एकाकी भूखे प्यासे घूम कर के इस ने बहुत कष्ट उठाए । पास में खर्च को कौड़ी भी नहीं थी। घूमता-घूमता यह खम्भात में उदयन मन्त्री के यहाँ खाने-पीने का कुछ
१. आचार्य हेमचन्द्र ने इस बात का उल्लेख कही पर नहीं किया है, परन्तु प्रबन्धचिन्तामणि आदि ग्रन्थों में कुमार पाल के प्रति, सिद्धराज का कोप स्पष्ट दिखता है । विशेष में जिनमंडनगणि कुमारपाल-प्रबन्ध में लिखते हैं-कुमारपाल के पिता त्रिभुवनपाल को सिद्धराज ने मरवा दिया था । इनके प्रति सिद्धराज के प्रचण्ड कोप का कोई कारण हमारी समझ में अभी तक नहीं आया ।
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