Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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मापा
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___ अर्थ-कर्ता कर्म करण और भावमें दश'धातुसे युट् प्रत्यय करनेपर दर्शन शब्द सिद्ध होता है यह व्याख्यान पहिले किया जा चुका है । यदि यह शंका की जाय कि
दशेरालोकार्थत्वादभिप्रेतार्थासंप्रत्यय इति चेन्नानेकार्थत्वात ॥३॥ हशि धातुका अर्थ आलोक-देखना है और इंद्रिय एवं मनके द्वारा पदार्थों का प्राप्त होना देखना कहा जाता है । सम्यग्दर्शन शब्दमें हाशेधातुका अर्थ देखना न लेकर श्रद्धान किया गया है जो कि है. हशि धातुका अर्थ हो ही नहीं सकता इसलिये दर्शनका अर्थ श्रद्धान मानना अयुक्त है ? सो ठीक नहीं हूँ। धातुओंके अनेक अर्थ होते हैं यह व्याकरणसिद्धान्तसिद्ध वात है । हाशि भी धातु है। उसके भी हैं। अनेक अर्थ होंगे इसलिये देखना आदि अनेक अर्थों में श्रद्धान अर्थ भी उसका होता है, कोई दोष नहीं है। यदि यहांपर यह शंका की जाय कि दाश धातुका प्रसिद्ध अर्थ देखना यहां इष्ट नहीं और अप्रसिद्ध है। अर्थ श्रद्धान इष्ट है यह कैसे ? उसका समाधान यह है कि
मोक्षकारणप्रकरणाच्छद्धानगतिः॥४॥ यहां मोक्षके कारणों के विचारका प्रकरण चल रहा है । जो पदार्थ जिसरूपसे स्थित हैं उनका , उसी रूपसे श्रद्धान करना मोक्षका कारण है, देखना मोक्षका कारण नहीं हो सकता इसालये प्रकरणसे
यहां दृशि घातुका अर्थ श्रद्धान ही इष्ट है, देखना इष्ट नहीं । तत्वार्थश्रद्धानमित्यादि सूत्रमें तत्व शब्दका हूँ, तात्पर्य यह है
प्रकृत्यपेक्षत्वात्प्रत्ययस्य भावसामान्यसंप्रत्ययस्तत्त्ववचनात् ॥५॥ सामान्य अर्थको कहनेवाला तत् यह शब्द सर्वनाम है । तत् शब्दसे त्व प्रत्यय करनेपर तत्व शब्द
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