________________
शरीरमकृतं कृतात्मा ब्रह्मलोकभिसम्म वितास्मात्यांभसम्मवितास्मोति (छान्दो० उप०।१।१३)
श्यामसे मैं पहले शवलको प्राप्त होता हूं, और शवलसे श्याम को प्राप्त होता हूं। जैसे घोड़ा रोमांकी झाड़ता है वैसे पापको झाड़ कर चन्द्रकी नाई राहके मुरबसे छूट कर शरीरको झाड़कर कृतार्थ हुना नित्य ब्रह्मलोकको प्राप्त होता हूं। यह बात स्मरण रखना चाहिये कि शवलरूपमें शरीर के अंगोंकी नाई मार देवना प्रजापति के अंग माने जाते हैं इसलिये मोदी को मिलाकर कहनेकी विवक्षा में द्विवचन (शवा पृथिवी. मित्रावरुणा इत्यादि ) और बहुतोंको घ सबको एक साथ कहनेकी विवक्षामें बहुवचन ( देवाः विश्वे देवाः इत्यादि ) दिया जाना है। और कहीं कहीं केवल भौतिक रूपका ही वर्णन भी है।
वैदिक देवताओंके विषयमें अह विचार वैदिक कालसे श्राज तक बराबर चला पा रहा है। जैसा कि__इन्द्र मित्रं वरुणमग्निमाहुरथा दिव्यः स सुपोंगरुत्मान् । एकं सद् विप्रा बहुधा बदन्न्यग्नि यमं मातरिश्वानमाहुः ।।
( ऋ० १ । १६४ । २२) उनीकी इन्द्र, मित्र, वरुण, अग्नि कहते हैं. और वही विन्य सुपर्ण गरुत्मान है, एक हीसा (मत्ता) को विद्वान अनेक प्रकार कहते हैं अग्नि यम और मातरिश्वा कहते हैं।
तदेवाग्निस्तदादित्यस्तद्वायुस्तदुचन्द्रमाः । तदेव शुक्र तद्ब्रह्मता भापः स प्रजापति ( यजु० ३२ । १) ___घही अग्नि है, यही श्रादित्य है यही यायु है वहीं चन्द्रमा हैं यही शुक्त वही प्रह्म वही श्रापः और वही प्रजापति है।