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प्रस्तावना
प्रकार विचार किया गया है वह अनायास ही पाठकोंका ध्यान षट्खण्डागम के जीवस्थान खण्डकी ओर आकृष्ट करता है। जीवस्थान खण्डका दूसरा सूत्र है
'एत्तो इमेसि चोहसण्हं जीवसमासाणं मग्गणठ्ठदाए तत्थ इमाणि चोद्दस चेव द्वाणाणि णायवाणि भवंति।
इसमें चौदह गुणस्थानोंके लिए 'जीवसमास' शब्दका प्रयोग हुआ है। सर्वार्थसिद्धिकारके सामने यह सूत्र था। उन्होंने भी गुणस्थान के लिए 'जीवसमास' शब्दका उपयोग किया है । यथा---
'एतेषामेव जीवसमासानां निरूपणार्थ चतुर्दश मार्गणास्थानानि ज्ञेयानि ।' आगे सर्वार्थसिद्धि में जीवस्थानका किस प्रकार अनुसरण किया गया है इसका आगेकी तालिका द्वारा स्पष्ट ज्ञान कीजिएजीवस्थान सत्प्ररूपणा
सर्वार्थसिद्धि सत्प्ररूपणा संतपरूवणदाए दुविहो णिद्देसो ओघेण
तत्र सत्प्ररूपणा द्विविधा-सामान्येन आदेसेण य॥8॥
विशेषेण च । ओघेण अत्थि मिच्छाइट्ठी ॥9॥ सासण
सामान्येन अस्ति मिथ्यादृष्टिः सासादन. सम्माइट्ठी। 10।।......
सम्यग्दृष्टिरित्येवमादिः। आदेसेण गदियाणुवादेण अत्थि णिरयगदी
विशेषेण गत्यनुवादेन नरकगती सर्वासु तिरिक्खगदी मणुमगदी देवगदी सिद्धगदी चेदि | पृथिवीषु आद्यानि चत्वारि गुणस्थानानि सन्ति । तिर्य124 । णेरइया चउट्टाणेसु अस्थि मिच्छाइट्ठी सासण- | ग्गतौ तान्येव संयतासंयतस्थानाधिकानि सन्ति । मनुष्यसम्माइट्री सम्मामिच्छाइट्टी असं जदसम्माइट्ठी त्ति | गती चतुर्दशापि सन्ति । देवगतो नारकवत् । ॥25॥ तिरिक्खा पंचसु ठाणेसु अत्थि मिच्छाइट्री ......संजदा-संजदा त्ति ॥ 26 ।। मणुस्सा चोद्दससु गुणदाणेसु अत्थि मिच्छाइट्टी......अजोगिकेवलि त्ति ॥27॥ देवा चदुसु हाणेसु अत्थि मिच्छाइद्री... . असंजदसम्माइट्ठिति ।। 28॥ इंदियाणुवादेण अस्थि एइंदिया बीइंदिया
इन्द्रियानुवादेन एकेन्द्रियादिषु चतुरिन्द्रियतीइंदिया चदुरिदिया पंचिदिया अणिदिया चेदि पर्यन्तेषु एकमेव मिथ्यादृष्टिस्थानम्। पंचेन्द्रियेषु चतु॥33॥ एइंदिया बीइंदिया तीइंदिया चरिदिया | र्दशापि सन्ति । 'असणिपंचिदिया एक्कमि चेव मिच्छाइट्रिद्राणे ।। 36॥ पंचिदिया असण्णिपंचिदियप्पहुडि जाव अजोगिकेवलि त्ति ॥ 37॥ कायाणुवादेण अस्थि पुढविकाइया आउका
कायानुवादेन पृथिवीकायादिवनस्पतिकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणप्फइकाइया तसका-यान्तेषु एकमेव मिथ्यादृष्टिस्थानम् । त्रसकायेषु चतुइया अकाइया चेदि ।। 39 ।। पुढविकाइया...वणप्फ- दशापि सन्ति । इकाइया एक्कमि चेव मिच्छाइट्रिट्राणे ।। 43॥ तसकाइया बीइंदियप्पडि जाव अजोगिकेवलि त्ति 144॥
आगम परम्परामें इस विषय में दो सम्प्रदाय हैं कि सासादनसम्यग्दृष्टि मर कर एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं। कषायप्राभृत इसी संप्रदाय का समर्थन करता है। किन्तु षट्खण्डागमके अभिप्रायानुसार जो सासादनसम्यग्दृष्टि मर कर एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं उनका एकेन्द्रियों में उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें नियमसे मिथ्यादष्टि गुणस्थान हो जाता है। यही कारण है कि जीवस्थान सत्प्ररूपणाके सूत्रोंमें एकेन्द्रियोंके एक
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