________________
[129
-2120 300]
द्वितीयोऽध्यायः $ 297. उक्तानामिन्द्रियाणां संज्ञानुपूर्वीप्रतिपादनार्थमाह
स्पर्शनरसनघाणचतुःश्रोत्राणि ॥19॥ 8298. लोके इन्द्रियाणां पारतन्त्र्यविवक्षा दृश्यते । अनेनाक्षणा सुष्ठ पश्यामि, अनेज कर्णेन सुष्ठु शृणोमीति । ततः पारतन्त्र्यात्स्पर्शनादीनां करणत्वम् । वीर्यान्तरायमतिज्ञानावरणक्षयोपशमाडोपाडनामलाभावष्टम्भादात्मना स्पश्यतेऽनेनेति स्पर्शनम । रस्यतेऽनेनेति रसनम । घायतेऽनेनेति घाणम् । चक्षेरनेकार्थत्वाद्दर्शनार्थविवक्षायां चष्टे अर्थान्पश्यत्यनेनेति चक्षुः। शूय . ऽनेनेति श्रोत्रम् । स्वातन्त्र्यविवक्षा च दृश्यते । इदं मे अक्षि सुष्ठ पश्यति । अयं मे कर्णः सुष्टु शृणोति । ततः स्पर्शनादीनां कर्तरि निष्पत्तिः । स्पृशतीति स्पर्शनम् । रसतीति रसनम् । जिधतोति घाणम् । चष्टे इति चक्षुः। शृणोतीति श्रोत्रम् । एषां निर्देशक्रमः एकैकवृद्धिक्रमप्रज्ञापनार्थः । 8 299. तेषामिन्द्रियाणां विषयप्रदर्शनार्थमाह
स्पर्शरसगन्धवर्णशब्दास्तदर्थाः 20॥ 6 300. द्रव्यपर्याययोः प्राधान्यविवक्षायां कर्मभावसाधनत्व स्पर्शादिशब्दानां वेदितव्यम् । द्रव्यप्राधान्यविवक्षायां कर्मनिर्देशः । स्पृश्यत इति स्पर्शः । रस्यत इति रसः । गन्ध्यत इति गन्धः।
8 297. अब उक्त इन्द्रियोंके क्रमसे संज्ञा दिखलानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैंस्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु, और धोत्र ये पाँच इन्द्रियों हैं॥19॥ इस आँखसे मैं अच्छा
२९८. लोकमें इन्द्रियोंको पारतन्त्र्य विवक्षा देखी जाती है। जैसे इस आँखसे मैं अच्छा देखता है. इस कानसे मैं अच्छा सुनता है। अतः पारतन्त्र्य विवक्षामें स्पर्शन आदि इन्द्रियोंका करणपना बन जाता है । वीर्यान्तराय और मतिज्ञानावरणकर्मके क्षयोपशमसे तथा अंगोपांग नामकर्मके आलम्बनसे आत्मा जिसके द्वारा स्पर्श करता है वह स्पर्शन इन्द्रिय है, जिसके द्वारा स्वाद लेता है वह रसन इन्द्रिय है, जिसके द्वारा सूंघता है वह ध्राण इन्द्रिय है। चक्षि धातुके अनेक अर्थ हैं। उनमें-से यहाँ दर्शनरूप अर्थ लिया गया है इसलिए जिसके द्वारा पदार्थोंको देखता है वह चक्षु इन्द्रिय है तथा जिसके द्वारा सुनता है वह श्रोत्र इन्द्रिय है। इसीप्रकार इन इन्द्रियोंकी स्वातन्त्र्य विवक्षा भी देखी जाती है। जैसे यह मेरो आँख अच्छी तरह देखती है, यह मेरा कान अच्छी तरह सुनता है। और इसलिए इन स्पर्शन आदि इन्द्रियोंको कर्ताकारकमें सिद्धि होती है। यथा-जो स्पर्श करती है वह स्पर्शन इन्द्रिय है, जो स्वाद लेती है वह रसन इन्द्रिय है, जो सूंघती है वह घ्राण इन्द्रिय है, जो देखती है वह चक्षु इन्द्रिय है और जो सुनती है वह कर्ण इन्द्रिय है। सूत्र में इन इन्द्रियोंका जो स्पर्शनके बाद रसना और उसके बाद घ्राण इत्यादि क्रमसे निर्देश किया है वह एक-एक इन्द्रियको इस क्रमसे वृद्धि होती है यह दिखलानेके लिए किया है।
5२९९. अब उन इन्द्रियोंका विषय दिखलाने के लिए आगेका सत्र कहते हैंस्पर्शन, रस, गन्ध, वर्ण और शब्द ये क्रमसे उन इन्द्रियोंके विषय हैं ॥२०॥
६३००. द्रव्य और पर्यायकी प्राधान्य विवक्षामें स्पर्शादि शब्दोंकी क्रमसे कर्मसाधन अरौ भावसाधनमें सिद्धि जानना चाहिए। जब द्रव्यकी अपेक्षा प्रधान रहती है तब कर्मनिर्देश होता है। जैसे-जो स्पर्श किया जाता है वह स्पर्श है, जो स्वादको प्राप्त होता है वह रस है, जो सूंघा जाता है वट गन्ध है जो देखा जाता है वह वर्ण है और जो शब्दरूप होता है वह शब्द है। इस १. जिघ्रत्यनेन घ्राणं गन्धं गृह्णातीति । रसयत्यनेनेनि रसनं रसं गृहातीति । चष्टेऽनेनेति चक्ष रूपं पश्यतीतिxxशृणोत्यनेनेति श्रोत्र शब्दं गृह्णातीति । -वा. मा०१,..१२। २. इमानीन्द्रियाणि कदाचित्स्वातन्त्र्येण विवक्षितानि भवन्ति । तद्यथा-इदं मे अक्षि सुष्ठ पश्यति, अयं मे कर्णः सुष्ठ शृणोतीति । कदाचित्पारतव्येण विवक्षितानि भवन्ति-अनेनाणा सुष्ठ पश्यामि । अनेन कर्णेन सुष्ठ शृणोमि इति । -पा. म. मा० ॥२॥२॥५९ । ३. गन्धरसरूपस्पर्शशब्दाः पृथिव्यादिगुणास्तदर्थाः । -वा० मा० "
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org