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सर्वार्थसिद्धी
[3119 8 402ह्रदः । तस्य द्वि गुणायामविकरभादगाहरितरिड छो' हदः । पुरकराणि च । किम् ? द्विगुणानि दिगुणानीत्यभिसंबध्यते।
६ 402. तन्निवासिनीनां देवीनां संज्ञाजीवितपरिवारप्रतिपादनार्थमाहतनिवासिन्यो देव्यः श्रीहीधृतिकीर्तिबुद्धिलक्ष्म्यः पल्योपमस्थितयः
ससामानिकपरिषत्काः ॥19॥ 8403. तेषु पुष्करेषु कणिकामध्यदेशनिवेशिनः शरद्विमलपूर्णचन्द्रद्युतिहराः क्रोशायामाः क्रोशार्द्धविष्कम्भा देशोनकोशोत्सेधाः प्रासादाः। तेष निवसन्तीत्येवंशीलास्तन्निवासिन्यः, देव्यः श्रीह्रीधृतिकोतिबुद्धिलक्ष्मीसंज्ञिकास्तेषु पद्मादिषु यथाक्रम वेदितव्याः । 'पल्योपमस्थितयः' इत्यनेनायुषः प्रमाणमुक्तम् । समाने स्थाने भवाः सामानिकाः । सामानिकाश्च परिषदश्च सामानिकपरिषदः । सह सामानिकपरिषद्भिर्वर्तन्त इति ससामानिकपरिषत्काः। तस्य पद्मस्य परिवारपदमेष प्रासादानामपरि सामानिकाः परिषदश्च वसन्ति । ।
8 404. यकाभिः सरिद्भिस्तानि क्षेत्राणि प्रविभक्तानि ता उच्यन्ते-- गङ्गासिन्धुरोहिद्रोहितास्याहरिद्धरिकान्तासीतासीतोदानारीनरकान्ता
सुवर्णरूप्यकूलारक्तारक्तोदाः सरितस्तन्मध्यगाः ॥२०॥ 8405. सरितो न वाप्यः । ताः किमन्तरा उत समीपा इति ? आह--तन्मध्यगाः तेषां अपेक्षा। पद्म तालाबकी जो लम्बाई, विस्तार और गहराई है महापद्म तालाबकी लम्बाई, विस्तार और गहराई इससे दूनी है। इससे तिगिछ तालाबकी लम्बाई, विस्तार और गहराई दूनी है । शंका-कमल क्या है ? समाधान-वे भी लम्बाई आदिकी अपेक्षा दूने-दूने हैं ऐसा यहाँ सम्बन्ध करना चाहिए।
8402. इनमें निवास करनेवाली देवियोंके नाम, आयु और परिवारका ज्ञान करानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
इनमें श्री, ह्री, धृति, कोति, बुद्धि और लक्ष्मी ये देवियां सामानिक और परिषद् देवोंके साथ निवास करती हैं। तथा इनकी आयु एक पल्योपम है ॥19॥
8403. इन कमलोंकी कणिकाके मध्यमें शरत्कालीन निर्मल पूर्ण चन्द्रमाकी कान्तिको हरनेवाले एक कोस लम्बे, आधा कोस चौड़े और पौन कोस ऊँचे महल हैं। उनमें निवास करनेवाली श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी नामवाली देवियाँ क्रमसे पद्म आदि छह कमलोंमें जानना चाहिए। उनकी स्थिति एक पल्योपमकी है' इस पदके द्वारा उनकी आयुका प्रमाण कहा है। समान स्थानमें जो होते हैं वे सामानिक कहलाते हैं। सामानिक और परिषत्क ये देव हैं। वे देवियाँ इनके साथ रहती हैं । तात्पर्य यह है कि मुख्य कमलके जो परिवार कमल हैं उनके महलोंमें सामानि और परिषद जातिके देव रहते हैं।
8404. जिन नदियोंसे क्षेत्रोंका विभाग हुआ है अब उन नदियोंका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
इन भरत आदि क्षेत्रों में-से गंगा, सिन्धु, रोहित, रोहितास्या, हरित्, हरिकान्ता, सीता, सीतोदा, नारी, नरकान्ता, सुवर्णकूला, रूप्यकूला, रक्ता और रक्तोदा नदियां बही हैं ॥20॥
8405. ये नदियाँ हैं तालाब नहीं। वे नदियाँ अन्तरालसे हैं या पास-पास इस बातका 1.-गिञ्छहृदः मु.।
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