________________
212] सर्वार्थसिद्धौ
[51148552 --- व्याघाताभावः अवगाहनशक्तियोगाद्वेदितव्यः ।
$ 552. अतो विपरीतानां मूतिमता मप्रदेशसंख्येयासंख्येयानन्तप्रदेशानां पुद्गलानामवगाहविशेषप्रतिपत्त्यर्थमाह
एकप्रदेशादिषु भाज्यः पुद्गलानाम् ॥14॥ 8 553. एकः प्रदेश एकप्रदेशः । एकप्रदेश आदिर्येषां त इमे एकप्रदेशादयः । तेषु पुद्गलानामवगाहो भाज्यो विकल्प्यः । “अवयवेन विग्रहः समुदायः समासार्थ:''3 इति एकप्रदेशोऽपि गृह्यते । तद्यथा-एकस्मिन्नाकाशप्रदेशे परमाणोरवगाहः । द्वयोरेकत्रोभयत्र च बद्धयोरबद्धयोश्च । त्रयाणामप्येकत्र द्वयोस्त्रिषु च बद्धानामबद्धानां च । एवं संख्येयासंख्येयानन्तप्रदेशानां स्कन्धानामेकसंख्येयासंख्येयप्रदेशेषु लोकाकाशेऽवस्थानं प्रत्येतव्यम् । ननु युक्तं तावदमूर्तयोर्धर्माधर्मयोरेकत्राविरोधेनावरोध इति । मूतिमतां पुद्गलानां कथम् ? इत्यत्रोच्यते--अवगाहनस्वभावत्वात्सूक्ष्मपरिणामाच्च मूतिमतामप्यवगाहो न विरुध्यते एकापवरके अनेकदीपप्रकाशावस्थानवत् । आगमप्रामाण्याच्च तथाऽध्यवसेयम् । तदुक्तम्
"ओगाढगाढणिचिओ पुग्गलकाएहि सव्वदो लोगो ।
सुहुमेहिं बादरेहि अणंताणतेहिं विवहेहि ।।" और अधर्म द्रव्यका अवगाह है । यद्यपि ये सब द्रव्य एक जगह रहते हैं तो भी अवगाह शक्ति के निमित्तसे इनके प्रदेश परस्पर प्रविष्ट होकर व्याघातको नहीं प्राप्त होते।
8552. अब जो उक्त द्रव्योंसे विपरीत हैं और जो अप्रदेशी हैं या संख्यात, असंख्यात और अनन्तप्रदेशी हैं ऐसे मूर्तिमान् पुद्गलोंके अवगाह विशेषका ज्ञान करानेके लिए आगेका सूत्र कहते है--
पुद्गलोंका अवगाह लोकाकाशके एक प्रदेश आदिमें विकल्पसे होता है 140
8553. एक और प्रदेश इन दोनोंका द्वन्द्व समास है। जिनके आदिमें एक प्रदेश है वे एक प्रदेश आदि कहलाते हैं। उनमें पुद्गलोंका अवगाह विकल्पसे है । यहाँ पर विग्रह अवयवके साथ है किन्तु समासार्थ समुदायरूप लिया गया है, इसलिए एक प्रदेशका भी ग्रहण होता है। खुलासा इस प्रकार है—आकाशके एक प्रदेश में एक परमाणुका अवगाह है । बन्धको प्राप्त हुए या खले हए दो परमाणुओका आकाशके एक प्रदेशमे या दो प्रदेशो में अवगाह है। बन्धको प्राप्त हुए या खुले हुए तीन परमाणुओंका आकाशके एक, दो या तीन प्रदेशोंमें अवगाह है । इसी प्रकार . संख्यात, असंख्यात और अनन्त प्रदेशवाले स्कन्धोंका लोकाकाशके एक, संख्यात और असंख्यात प्रदेशोंमें अवगाह जानना चाहिए। शंका यह तो युक्त है कि धर्म और अधर्म द्रव्य अमूर्त हैं, इसलिए उनका एक जगह बिना विरोधके रहना बन जाता है, किन्तु पुद्गल मूर्त हैं इसलिए उनका बिना विरोधके एक जगह रहना कैसे बन सकता है ? समाधान-इनका अवगाहन स्वभाव है और सूक्ष्म रूपसे परिणमन हो जाता है, इसलिए एक ढक्कनमें जिस प्रकार अनेक दीपकोंका प्रकाश रह जाता है उसी प्रकार मूर्तमान् पुद्गलोंका एक जगह अवगाह विरोधको प्राप्त नहीं होता । तथा आगम प्रमाणसे यह बात जानी जाती है। कहा भी है--
'लोक सूक्ष्म और स्थूल अनन्तानन्त नाना प्रकारके पुद्गलकायोंसे चारों ओरसे खचाखच भरा है।' 1. मतामेकप्रदे- मु.। 2. एक एव प्रदेशः मु.। 3. पा. म. भा. 2, 2, 2, 24 । 4. पाणामेकत्र मु., ता.। 5. पंचत्यि. गा. 64।।
www.jainelibrary.org
Jain Education International
For Private & Personal Use Only