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परिशिष्ट 2
[423
६. 755
एक सागर, पच्चीस सागर, पचास सागर, सौ सागर 305.13 साधारणं शरीरमनन्तकायिकानाम् ।
और एक हजार सागर प्रमाण स्थिति जाननी
चाहिए। तदुक्तम्
आशय यह है कि संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक मिथ्यासाहारणमाहारो साहारणमाणपाणगहणं च ।
दष्टिके मोहनीय कर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सत्तर साहारणजीवाणं साहारणलक्खणं एवं ।।
कोडाकोडी सागर प्रमाण होता है किन्तु एकेन्द्रिय "गढसिरसंधिपव्वं समभंगमहीरहं च छिण्णरह।
पर्याप्तकके एक सागर प्रमाण, दोइन्द्रिय पर्याप्तकके साहारणं शरीरं तविवरीयं च पत्तेयं ॥"
पचास सागर प्रमाण, तेइन्द्रिय पर्याप्तकके पचास 8.759
सागर प्रमाण, चौइन्द्रिय पर्याप्तकके सौ सागर प्रमाण
और असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकके एक हजार सागर दान ..॥13॥
प्रमाण उत्कृष्ट स्थितिबन्ध होता है। इसी अनुपातसे 308.3 भेदनिर्देश:-षष्ठीनिर्देशः।
राशिक द्वारा इन जीवोंके ज्ञानावरण, दर्शनावरण,
वेदनीय और अन्तराय कर्मका भी उत्कृष्ट स्थितिबन्ध आदितस्तिसृणां · ...॥14॥
जाना जाता है। इन कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थिति तीस
कोडाकोडी सागर है। अतः तीस कोडाकोड़ी 8761
सागर में सत्तर कोडाकोड़ी सागरसे भाग 309.6 अन्येषामागमात् संप्रत्ययः। तथाहि---
देकर एक, पच्चीस, पचास, सौ और एक हजार एक-द्वि-त्रि-चतुरिन्द्रियाणामसंज्ञिपर्याप्तकानां यथा
से गुणा करनेपर उक्त जीवोंके इन कर्मोके उत्कृष्ट संख्यं प्रत्येकं त्रिगुणितसप्तविभक्त एक-पञ्चविंशति
स्थितिबन्धका प्रमाण निकलता है। इन्हीं जीवोंके पञ्चाशच्छतसहस्रसागरोपमाणि । तदुक्तम्---
अपर्याप्तक अवस्थामें यही स्थिति एकेन्द्रियोंके पल्यो'एइंदिय विलिदिय-असण्णिपज्जत्तयाण बोधव्वा।
पमके असंख्यातवें भाग कम एक सागर प्रमाण तथा एवं तह पणुवीसं पंचासं तह सयसहस्सं च॥ दोइन्द्रिय आदिके पल्यके संख्यातवें भाग कम पच्चीस तिहयं सत्तविहत्तं सायरसंखा द्विदी एसा॥'
सागर आदि प्रमाण बँधती है। कहा भी हैतेषां चापर्याप्तकानामियमेव स्थितिरेकेन्द्रियाणां पल्यो
अपर्याप्तक एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय आदि के ज्ञानापमासंख्येयभागोना । शेषाणां संख्येयभागोना।
वरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अन्तरायकी वही उक्तं च
स्थिति पल्यके असंख्यातवें भाग और संख्यातवें भाग अप्पजत्ताणं पुणो थावर विलिदियादीणं । कम जानना चाहिए तथा संज्ञी अपर्याप्तकके अन्त:ठिदि एसा परिहीणा पल्लासंखेयसंखभागेहि ॥
कोडाकोडी सागर प्रमाण जानना चाहिए। अंतोकोडाकोडी सण्णी अपज्जत्तयस्य णायव्वा ।
8.763 दसणणाणाधरणे वेदे तह अंतराये य॥
सप्ततिः [अन्य जीवोंके आगमसे जानना चाहिए। वह इस
."||1511 प्रकार है-एकेन्द्रिय, दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय
309.10 इतरेषां वयागमं तथाहिऔर असंज्ञी पर्याप्तकोंके क्रमानुसार प्रत्येकके तीनसे
एगं पणवीसं पि य पंचासं तह सयं सहस्सं च । गणित और सातसे भाजित एक सागर, पच्चीस
ताणं सायर संखा ठिदि एसा मोहणीयस्स ।। सागर, पचास सागर, सौ सागर और हजार सागर प्रमाण स्थिति जाननी चाहिए। कहा भी है- अयं तु विशेषो मोहनीयस्येयं स्थितिः सप्तगुणाः सप्त एकेन्टिय. दोइन्द्रिय, ते इन्द्रिय, चौइन्द्रिय और असंज्ञी विभक्ता च कर्तव्या। इयमेवापर्याप्तकानां पल्योपमापंचेन्द्रिय पर्याप्तकके तीनसे गणित और सातसे भाजित संख्येयसंख्येयभागोना पूर्ववत प्रतिपत्तव्या
1. गो० जी०, गा० 1921 2. वही ग10 187 ।
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