________________
सिद्धान्ताचार्य पं. फूलचन्द्र शास्त्री (सन् १६०१-१९६२) भारतीय मनीषियों में, विशेषकर जैनदर्शन एवं सिद्धान्त के क्षेत्र में, सिद्धान्ताचार्य पं. फूलचन्द्र शास्त्री अपनी बहुआयामी शास्त्र-विद्या के लिए विख्यात रहे हैं। चिन्तन-मनन तथा साहित्य-साधना में सतत संलग्न पण्डितजी की राष्ट्रीय एवं सामाजिक उत्थान के आन्दोलनों में विशेष भूमिका रही है। भारत छोड़ो' आन्दोलन में आपने जेल-यात्रा भी की। पण्डितजी आगम के मर्म के विचक्षण व्याख्याता रहे हैं। निर्जीव गतानुगतिकता के मूल में पैठी, विलुप्त तेजस्विता को उभारकर जैनदर्शन के लोकोपकारी सार्वजनिक रूप के उद्घाटन तथा उसके प्रचार-प्रसार में आपका साहसिक नेतृत्व अनेक दशकों से क्रियाशील रहा है। ललितपुर (उ. प्र.) के निकट ही एक छोटे-से गाँव सिलावन में जन्मे पण्डितजी ने अनेक संस्थाओं में अध्यापनदायित्व के सफल निर्वाह के कारण अपनी एक लम्बी शिष्य-परम्परा को प्रभावित किया है। धर्माध्यापक के रूप में आप हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी से भी सम्बद्ध रहे। दर्शन, सिद्धान्त एवं आचार विषयक कितनी ही चर्चाओं में आपने अपने अगाध ज्ञान से विद्वज्जगत् को चमत्कृत किया है। मौलिक रचनाएँ-१. जैन तत्त्वमीमांसा, २. जैनधर्म और वर्ण-व्यवस्था, ३. विश्वशान्ति और अपरिग्रहवाद, ४. वर्ण, जाति और धर्म। सम्पादित ग्रन्थ-पचास से अधिक। इनमें धवला और जयधवला के अनेक खण्ड, प्रमेयरलमाला, पंचाध्यायी, महाबन्ध, समयसार-कलश, लब्धिसार-क्षपणासार, आत्मानुशासन आदि आगम-साहित्य के प्रमुख ग्रन्थ सम्मिलित हैं।
www.jainelibrity.org
For Private & Personal use only
Jain Education International