Book Title: Sarvarthasiddhi
Author(s): Devnandi Maharaj, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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परिशिष्ट 3
तत्वार्थवृत्तिपदे उद्धृतपद्यानुक्रमणी
अट्ठ तीसद्धलवा [ गो० जी० 574] अट्ठेव सयसहस्सा [गो० जी० 628] अप्पज्जत्ताण पुणो
अर्थस्यानेकरूपस्य [अष्टशतीसे उद्धृत ] अंतो कोडाकोडी
कंपय अणुमणिय [ भ० आ० 562 ] आवलिअसंखसमया [गो० जी० 562] एइंदिय वियलिंदिय
एगं पणवीसं पिय
काऊ काऊ तह [मूलाचार 1134] कारणकज्ज विहाणं
खवणाए पट्ठवगो [पञ्चसं२ 41203 ] कसायाण पुण
गूढसिरसंधिपव्वं [गो० जी० 387 ] छण वेणि अट्टय
जोगा पडदेसा [ पञ्चसं० 41513] णलया बाहू य तहा [गो० क० 28] णवणवदि दोणि सया
चिदधा सत्य [ वा० अणु० 28 ] तिष्णिसया छत्तीसा [गो० जी० 123] तिष्णिसहस्सा सत्तय
तिन्हं दोन्हं दोण्हं [गो० जी० 533] तिह्यं सत्त वित्त
ते ते तह तेऊ [पञ्चसं० 11189] तेरसकोडीदेसे [ गो० जी० 641] asदुगे ओलं [ पञ्चसं 11199]
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दंसणमोहक्खवगो [ पञ्चसं० 11202 ] दहकोडाकोडिउ
दो दो चउ चउ दो दो
पच्छायडे य सिद्ध [ सिद्धभ० 4]
पsिहमुच्चद्वाणं [वसु० श्रा० 224 ] पढमप्पढमं णियदं
पंचम आणद पाणद [मूलाचार 1149]
पुढवी पुढवीकाओ
पुव्वस्सदु परिमाणं
बत्तीसं अडदाल [ गो० जी० 627]
बंधं पडि एयत्तं
भवत्यभावोऽपि च [युक्त्यनु० 60 ]
मणपज्जवपरिहारो [ पञ्चसं० 11194 ] मिथ्या दर्शनप्राप्ते
मिस्सेणाणाणतियं
रयणप्पहाए जोयण [मूलाचार 1142]. वज्जियणाणचक्कं
वर्ग: शक्तिसमूहो [सं० पं० सं० 1145] विगलिदिए असीदि [ भावपा० 29] विसवेयणरत्तक्खय [ गो० क० 57] वीनसय वेदा
सक्कीसाणा पढमं [मूलाचार 1148] सत्ताई अट्ठता [गो० जी० 632] सम्मत तदिणा [पञ्चसं० 11205] सोलसगं चउवीगं
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