Book Title: Sarvarthasiddhi
Author(s): Devnandi Maharaj, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 551
________________ परिशिष्ट 4 उद्धृतवाक्य-सूचि [सर्वार्थसिद्धिमें हस्तलिखित प्रतियोंके आधारसे जो गाथा, श्लोक या वाक्य उद्ध त मिलते हैं वे किन ग्रन्थों के हैं या किन ग्रन्थोंके अंग बन गये हैं यहाँ उन ग्रन्थोंके नाम निर्देशके साथ यह सूची दी जा रही है। 557 574 16 186 681 164 553 693 731 529 166 687 20 277 अण्णोण्णं पविसंता [पंचत्थि० गा०7] अत्तादि अत्तमझ [णियमसार 26] अनन्तरस्य विधिर्वा भवति प्रतिषेधो वा । [पा० म० भा० पृ० 335, परि० शे० ५.० 380] अनुदरा कन्या अन्नं वै प्राणाः अभ्र चन्द्रमसं पश्य अवयवेन विग्रहः समुदायः समासार्थः [पा० म० भा० 2, 2, 2, 24] अश्ववृषभयोमथुनेच्छायाम् [पा० सू० वार्तिक] असिदिसदं किरियाणं गो० क० गा० 876] आविष्टलिंगा' शब्दा न कदाचिल्लिगं व्यभिचरन्ति इन्द्रियं प्रमाणम् उच्चालदम्हि पादे [प्रवचन० क्षे० 3, 16] उपयोग एवात्मा उस्सप्पिणि अवसप्पिणि [बारह अणुपेक्खा 27, सुदखंड 2] ओगाढगाढणिचिओ कल्प्यो हि वाक्यशेषो वाक्यं च वय॑धीनम् [पा० म० भा० 1, 1, 8] क्व भवानास्ते? आत्मनि काकेभ्यो रक्ष्यतां सपिः कारणसदृशं हि लोके कार्य दृष्टम् कारीषोऽग्निरध्यापयति [पा० म० भा० 3, 1, 2, 26] क्षणिकाः सर्वसंस्काराः क्षत्रिया आयाताः, सूरवर्माऽपि गुण इदि दवविहाणं चैतन्यं पुरुषस्य स्वरूपम् जोगा पयडि पएसा [मूला० 244, पंचसं० 4, 507 गो० क० गा० 257] णवदुत्तरसत्तसया [ति० सा० गा० 332] णहि तस्स तणिमित्तो प्रवच० क्षे० 3, 17] णिच्चिदरधातुसत्त य [मूलाचार 529 एवं 12.63, गो० जी०"] णिद्धस्स णि ण दुराधिएण [षट्खण्डागम, गो० जी० 614] 553 841 549 819 206 569 180 19 600 2 736 465 687 324 596 www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only

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