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श्रथ दशमोऽध्यायः
$ 920. आह, अन्ते निर्दिष्टस्य मोक्षस्येदानों स्वरूपाभिधानं प्राप्तकालमिति । सत्यमेवम् । मोक्षप्राप्तिः केवलज्ञानावाप्तिपूर्विकेति केवलज्ञानोत्पत्तिकारणमुच्यते
मोहक्षयाज्ज्ञानदर्शनावरणान्तरायक्षयाच्च केवलम् ॥1॥
8921. इह वृत्तिकरणं न्याय्यम् । कुतः ? लघुत्वात् । कथम् ? एकस्य 'क्षय' शब्दस्याकरणाद् विभक्त्यन्तरनिर्देशस्य चाभावात् 'च' शब्दस्य चाप्रयोगाल्लघु सूत्रं भवति 'मोहज्ञानदर्शनावरणान्तरायक्षयात्केवलम्' इति । सत्यमेतत्, क्षयक्रमप्रतिपादनार्थी वाक्यभेदेन निर्देश: क्रियते । प्रागेव मोहं क्षयमुपनीयान्तर्मुहूर्तं क्षीणकषायव्यपदेशमवाप्य ततो युगपज्ज्ञानदर्शनावरणान्तरायाणां क्षयं कृत्वा केवलमवाप्नोति इति । तत्क्ष'यो हेतुः केवलोत्पत्तेरिति हेतुलक्षणो विभक्तिनिर्देशः कृतः । कथं प्रागेव मोहः क्षयमुपनीयते इति चेदुच्यते - भव्यः सम्यग्दृष्टिः परिणामविशुद्धया वर्धमानोऽसंयत सम्यग्दृष्टि संयतासंयतप्रमत्ताप्रमत्तगुणस्थानेषु कस्मिन्मोहस्य सप्त प्रकृतीः क्षयमुपनीय क्षायिक सम्यग्दृष्टिर्भूत्वा क्षपकश्रेण्यारोहणाभिमुखोऽधः प्रवृत्तकरणमप्रमत्तस्थाने प्रतिपद्यापूर्वकरणप्रयोगेणापूर्वक रणक्षपकगुणस्थानव्यपदेशमनुभूय तत्राभिनवशुभाभिसन्धितनूकृतपापप्रकृतिस्थित्यनुभागो विर्वावतशुभकर्मानुभवोऽनिवृत्तिकरणप्राप्त्यानिवृत्तिबादर सांप
8920. कहते हैं कि अन्तमें कहे गये मोक्षके स्वरूपके कथनका अब समय आ गया है । यह कहना सही है तथापि केवलज्ञानकी उत्पत्ति होने पर ही मोक्षकी प्राप्ति होती है, इसलिए पहले केवलज्ञानकी उत्पत्ति के कारणोंका निर्देश करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं-
मोहका क्षय होनेसे तथा ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय कर्मका क्षय होनेसे केवलज्ञान प्रकट होता है ulu
8921. इस सूत्र में समास करना उचित है, क्योंकि इससे सूत्र लघु हो जाता है। शंका--- कैसे ? प्रतिशंका- क्योंकि ऐसा करनेसे एक क्षयशब्द नहीं देना पड़ता है और अन्य विभक्तिके निर्देशका अभाव हो जानेसे 'च' शब्दका प्रयोग नहीं करना पड़ता है, इसलिए सूत्र लघु हो जाता है । यथा-' -'मोहज्ञानदर्शनावरणान्तरायक्षयात्केवलम्' । समाधान - यह कहना सही है तथापि क्षयके क्रमका कथन करनेके लिए वाक्योंका भेद करके निर्देश किया है। पहले ही मोहका क्षय करके और अन्तर्मुहूर्त कालतक क्षीणकषाय संज्ञाको प्राप्त होकर अनन्तर ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय कर्मका एक साथ क्षय करके केवलज्ञानको प्राप्त होता है। इन कर्मोंका क्षय केवलज्ञानकी उत्पत्तिका हेतु है ऐसा जानकर 'हेतुरूप' विभक्तिका निर्देश किया है। शंका- पहले ही मोहके क्षयको कैसे प्राप्त होता है ? समाधान - परिणामोंकी विशुद्धि द्वारा वृद्धिको प्राप्त होता हुआ असंयत सम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत, और अप्रमत्तसंयत इन चार गुणस्थानोंमें से किसी एक गुणस्थानमें मोहनीयकी सात प्रकृतियोंका क्षय करके क्षायिक सम्यग्दृष्टि होकर क्षपकश्रेणिपर आरोहण करने के लिए सम्मुख होता हुआ अप्रमत्तसंयत गुणस्थानमें अधःप्रवृत्तकरणको प्राप्त होकर अपूर्वकरणके प्रयोग द्वारा अपूर्वकरणक्षपक गुणस्थान संज्ञाका अनुभव करके और वहाँ पर नूतन-परिणामोंकी विशुद्धिवश पापप्रकृतियोंकी स्थिति और अनुभागको कृश करके तथा शुभकर्मोंके अनुभागकी वृद्धि करके अनिवृत्तिकरणको प्राप्ति द्वारा अनिवृत्तिबादर1. - ज्ञानाप्ति - आ । 2. कथम् ? क्षय- मु. 3. तत्क्षयहेतुः केवलोत्पत्तिरिति मु., ता.
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