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परिशिष्ट 2
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'अठे व सयसहस्सा अट्ठानवदि तहा सहस्साणं। इत्याह-प्रतरासंख्येयभागप्रमिताः । श्रेणिः श्रेण्या खामोशिजणा पंचव सया विउत्तरा हौदि।।' गुणिता प्रतरा भवति । तदसंख्यातभागप्रमितानाम
-[गो० जी० ६२८] संख्यातश्रेणीनां यावदन्तःप्रदेशास्तावन्तस्तत्र नारका [सयोगकेवलियों की संख्या भी उपशमकों से दनी इत्यथः । होती है, अतः आठ समयों में प्रथम आदि समय के [प्रथम पृथिवी में मिथ्यादृष्टि नारकी असंख्यात श्रेणि क्रमसे एक अथवा दो इत्यादिसे लेकर बत्तीस आदि प्रमाण हैं । शंका-यह श्रेणी क्या वस्तु है ? उत्तर उत्कृष्ट संख्या पर्यन्त संख्या भेद जानना चाहिए। -सात राजू लम्बी मोतियों की मालाके समान
आकाशके प्रदेशोंकी पंक्तिको श्रेणि कहते हैं। यह शंका---तब तो कहे गये क्षपकों से सयोग केवलियों
श्रेणि एक परिमाणविशेष है। वे श्रेणियाँ प्रतरके का भिन्न कथन करना व्यर्थ है (क्योंकि क्षपक भी
असंख्यातवें भागप्रमाण यहां जानना । श्रेणिको श्रेणि उपशमकोंसे दूने हैं ?)
से गुणा करने पर प्रतर होता है । उस प्रतरके असंउत्तर-नहीं, क्योंकि स्वकाल में समृदित (एकत्री
ख्यातवें भागप्रमाण, असंख्यात श्रेणियों के अन्तर्गत भूत) संख्या की अपेक्षा सयोगकेवलियों में क्षपकोंसे
जितने प्रदेश होते हैं उतने ही प्रथम नरकमें मिथ्याभेद सम्भव है। स्वकाल में समदित सयोगकेवलियों
दृष्टि नारकी हैं।] का परिमाण लाखपृथक्त्व है अर्थात् आठ लाख अठा
25.11 सूक्ष्ममनुष्यं प्रति मनुष्या मिथ्यादृष्टयः नबे हजार पाँच सौ दो है। कहा भी है-'सयोग
श्रेण्यसंख्येयभाग प्रमिताः । सासादनादिसंयताकेवली जिनों की संख्या आठ लाख अठानबे हजार
संयतान्ताः संख्येयाः । तद्यथा सासादनाः 520000पाँच सौ दो है।']
000। मिश्राः 1040000000। असंयता:सर्वेऽप्येते प्रमत्ताद्ययोगकेवल्यन्ताः समुदिता उत्कर्षण 7000000000। देशाः 130000000 । तथा यदि कदाचिदेकस्मिन् समये संभवन्ति तदा त्रिहीन- चोक्तम् --- नवकोटिसंख्या एव भवन्ति (89999997)। तेरसकोडी देसे वावण्णं सासणे मणेयम्वा । तदुक्तम्
मिस्से विय तद्गुणा असंजदा सत्तकोडिसया।।' “सत्ताई अटुंता छण्णवमञ्झा य संजदा सवे ।
[मनुष्यगतिमें सासादन गुणस्थानी से लेकर संयताअंजलिमौलियहत्थो तियरणसुद्धो णमंसामि॥' संयत पर्यन्त मनुष्यसंख्या संख्यात है। कहा भी है
(गो० जी० 632) पांचवें देशविरत गुणस्थान में तेरह करोड़ मनुष्य [प्रमत्त संयतसे लेकर अयोग केवली पर्यन्त ये सभी होते हैं, सासादन गुणस्थानमें बावन करोड़ और संयत उत्कृष्ट रूप से यदि एक समय में एकत्र होते मिथ गुणस्थान में उनसे दुगुने अर्थात् एक सौ चार हैं तो उनकी संख्या तीन कम नौ करोड़ होती है। करोड़ मनुष्य होते हैं । असंयतसम्यग्यदृष्टि सात सौ कहा भी है. सभी संयतोंका परिमाण आठ करोड करोड़ होते हैं ।। निन्यानबे लाख निन्यानवे हजार नौ सौ सत्तानबे होता है। हाथों की अंजुलि बनाकर और मन वचन .48 कायको शुद्ध करके उन्हें नमस्कार करता हूँ।
26.7 पर्याप्तपथिव्यादिकायिका असंख्येयलोकाः ।
अथ कोऽयं लोको नाम । प्रतरः श्रेण्या गुणितो लोको ६. 46
भवति मानविशेषः। 25.7 असंख्येयाः श्रेणयः। अथ केयं श्रेणिरिति [पर्याप्त पथिवीकायिक आदि जीवों का परिमाण चेदुच्यते--सप्तरज्जूमयी मुक्ताफलमालावदाकाश- असंख्यात लोक है। प्रतरको श्रेणिसे गुणा करनेपर प्रदेशपंक्तिः श्रेणिर्मान विशेषः । किं विशिष्टास्ता लोक होता है यह एक परिमाणका भेद है।]
2. गो जी०, गा० 633। 3. धवला पु०3,
1. धवला पु०3,१० 96 । गो० जी० गा०6291 पृ. 254 । गो० जी० गा० 641।
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