Book Title: Sarvarthasiddhi
Author(s): Devnandi Maharaj, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 514
________________ सर्वार्थसिद्धि 394] में एकत्र हुए.जीवोंकी संख्या संख्यात अर्थात् एक- 25.2--चतुर्णा क्षपकाणामयोगलेवलिनां चाष्टधा एक गुणस्थान में 299 होती है। कहा भी है--'एक समयक्रमः पूर्ववद् द्रष्टव्यः । केवलं तेगामुपशामकेभ्यो गुण-स्थान में 299 उपशमक होते हैं।' द्विगुणा संख्या प्रतिपत्तव्या। तदुक्तं-- विशेषार्थ-उपशम श्रेणीके प्रत्येक गुणस्थानमें एक 'बत्तीसं अडदालं सट्ठी बाहत्तरीय चुलसीदि । समयमें चारित्रमोहनीयका उपशम करता हुआ छण्णऊदी अठत्तर सयमठ्ठत्तरसयं च बोधब्वा ॥ जघन्यसे एक जीव प्रवेश करता है और उत्कृष्ट से (गो० जी०, 627) चौवन जीव प्रवेश करते हैं । यह कथन सामान्य से है। विशेषकी अपेक्षा तो आठ समय अधिक वर्ष 32,48,60,72,84,96,108,108: अत्राप्येको वा द्वौ वा इत्याद्य त्वष्टाष्टमसमयप्रवेशापेक्षया पृथक्त्व कालमें उपशम श्रेणीके योग्य लगातार आठ प्रोक्तम् । स्वकालेन समुनिताः प्रत्येकमष्टानवत्युत्तरसमय होते हैं। उनमेंसे प्रथम समय में एक जीव पञ्चशतपरिमाणा भवन्ति (598) गुणस्थानपञ्चकको प्रादि लेकर उत्कृष्ट रूपसे सोलह जीव तक वतिनां क्षपकाणां समुदितानां. दशोनानि त्रीणि उपशम श्रेणीपर चढ़ते हैं। दसरे समय में एक जीवको सहस्राणि भवन्ति । तदुक्तम् --- आदि लेकर उत्कृष्ट रूपसे चौबीस जीव तक चढ़ते हैं। तीसरे समय में एक जीवको आदि लेकर उत्कृष्ट खीणकसायाण पुणो तिण्णि सहस्सा वसूयणा रूप से तीस जीव तक चढ़ते हैं। चौथे समय में एक भणिया। 112990।। जीवको आदि लेकर उत्कृष्ट रूपसे छत्तीस जीव तक [चारों क्षपकों का और अयोगकेवलियों का आठ चढ़ते हैं। पांचवें समयमें एक जीवको आदि लेकर रूप समयक्रम उपशमकों की तरह जाना चाहिए। उत्कृष्ट रूपसे बयालीस जीव तक चढ़ते हैं। इसी अन्तर केवल इतना है कि उनकी संख्या उपशमकोंसे तरह छठे समय में अड़तालीस जीव तक और सातवें दूनी जाननी चाहिए, कहा है—'बत्तीस, अड़तालीस तथा आठवें समय में एक जीवको आदि लेकर साठ, बहत्तर, चौरासी, छियानबे, एक सौ आठ, एक उत्कृष्ट से चौवन-चौवन जीव तक उपशम श्रेणीपर सौ आठ जानना चाहिए।' चढ़ते हैं। इन सबका जोड़ 304 होता है, किन्तु कितने ही आचार्य उसमें पांच कम करके 299 यहाँ भी एक, दो या तीन आदि से लेकर उत्कृष्टसे कहते हैं। धवलामें वीरसेन स्वामीने 299 के प्रमाण आठवें समयमें प्रवेश तक उक्त संख्या कही है। अपने को ही आचार्यपरम्परागत कहा है । देखो पु. 3, कालमें एकत्र हुए प्रत्येक क्षपकका परिमाण,598 पृ० 92। होता है। और चारों क्षपक तथा पांचवें अयोगननु चाष्टसमयेषु षोडशादीनां समुदितानां चतुर केवलि गुणस्थानति जीवोंका परिमाण दस कम धिकशतत्रयं प्राप्नोति; तदयुक्तम, अष्टसमयषप- 'तीन हजार होता है। कहा भी है-क्षीणकषायोंका शामका निरन्तरं भवन्तः परिपूर्णा न लभ्यन्ते । परिमाण दस कम तीन हजार अर्थात् दो हजार नौ किं तर्हि ? पञ्चहीमा भवन्तीति चतर्गणस्थानवति- सो नब्बे होता है। नामप्यपशमकानां समुदितानां षण्णवत्यधिकान्येका- 25.4-सयोगकेवलिनामप्यूपशमकेभ्यो द्विगणबशशतानि भवन्ति ॥1196॥ त्वादष्टसमयेषु प्रथमादिसमयक्रमणको वा द्वौ वेत्यादि [शंका-आठ समयोंमें सोलह आदि संख्याओं का द्वात्रिंशदाद्य त्कृष्टसंख्या यावत् संख्याभेदः प्रतिपत्तव्य: जोड़ तीन सौ चार प्राप्त होता है ? समाधान- नन्वेवमुदाहृतक्षपकेभ्यो भेदेनाभिधानमेषामर्थकमिति ऐसा कहना यक्त नहीं है। आठ समयोंमें उपशामक चेत् न, स्वकालसमुदितसंख्यापेक्षया तेषां तेभ्यो निरन्तर होते हए भी पूर्ण नहीं होते हैं किन्तु पाँच विशेषसंभवात् । सयोगकेवलिनो हि स्वकाले कम होते हैं। इसलिए आठवें से ग्यारहवें तक चार समुदिताः शतसहस्रपृथक्त्वसंख्या, अष्टलक्षाष्टनवगुणस्थानवर्ती उपशमकोंका जोड़ ग्यारह सौ छियानबे तिसहस्राद्यधिकपञ्चशतपरिमाणाः (898502)। होता है। उक्तं च Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

Loading...

Page Navigation
1 ... 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568