Book Title: Sarvarthasiddhi
Author(s): Devnandi Maharaj, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 501
________________ परिशिष्ट । :381 -484 486 488 490 492 494 496 498 500 502 504 22. पीतपद्मशुक्ललेश्या द्वित्रिशेषेषु । 23. प्राग्ग्रे वेयकेभ्यः कल्पा: । 24. ब्रह्मलोकालया लौकान्तिकाः । 25. सारस्वतादित्यवह्नयरुणगर्दतोयतुषिताव्यावाधारिष्टाश्च । 26. विजयादिषु द्विचरमाः । 27. औपपादिकमनुष्येभ्य: शेषास्तिर्यग्योनयः। 28. स्थितिरसुरनागसुपर्णद्वीपशेषाणां सागरोपमत्रिपल्योपमाद्ध हीनमिताः ।। 29. सौधर्मेशानयोः सागरोपमेऽधिके । 30. सानत्कुमारमाहेन्द्रयोः सप्त ।' 31. त्रिसप्तनवैकादशत्रयोदशपञ्चदशभिरधिकानि तु ।। 32. आरणाच्युतादूर्ध्वमेकैकेन नवसु वेयकेषु विजयादिषु सर्वार्थसिद्धौ च । 33. अपरा पल्योपममधिकम् । 34. परतः परत: पूर्वा पूर्वानन्तरा।1 35. नारकाणां च द्वितीयादिषु । 36. दशवर्षसहस्राणि प्रथमायाम् । 37. भवनेषु च। 38. व्यन्तराणां च । 39. परापल्योपममधिकम । 40. ज्योतिष्काणां च ।12 41. तदष्टभागोऽपरा ।13 42. लौकान्तिकानामष्टौ सागरोपमाणि सर्वेषाम् ।14 इति चतुर्थोऽयायः । 506 508 510 512 514 516 518 520 522 524 पांचवां अध्याय 1. अजीवकाया धर्माधर्माकाशपुद्गलाः । 526 2. द्रव्याणि ।' 528 3. जीवाश्च। 530 1. पीतमिश्न-पद्ममिश्रशुक्ललेश्या द्विद्वि चतुश्चतुःशेषेषु इति त. भा.। 2. लोकान्तिकाः त. भा.। 3. व्यावाधमरुतोऽरिष्टाश्च । त. भा. । 4. औपपातिक- त. भा.। 5. इस एक सूत्र के स्थान पर त. भा. में चार सूत्र हैं। वे इस प्रकार हैं:--स्थितिः।।29।। भवनेषु दक्षिणार्धाधिपतीनां पल्योपममध्यर्धम।। 30॥शेषाणां पादोने।।31॥ असुरेन्द्रयोः सागरोपममधिकं च ।।32। 6. त. भा. में इस एक स्त्र के स्थान पर 'सौधमादिष यथाक्रमम् ॥3311 सागरोपमे ।।3411 अधिके ।।351 ऐसे तीन सत्र हैं। 7. त. भा. में 'सप्त सानत्कुमारे' ऐसा सूत्र है। 8. त. भा. में 'विशेषत्रिसप्तदशैकादशपंचदशभिरधिकानि च' ऐसा सत्र है। 9. सर्वार्थसिद्धे च त. भा.। 10. -मधिकं च त. भा.। 11. त. भा. में इस सूत्र के पूर्व दो सूत्र और पाये जाते हैं। वे इस प्रकार हैं-सागरोपमे ॥401 अधिके च ॥411 12. ज्योतिष्काणामधिकम् त. भा. । 13. इस सूत्र के स्थान पर त. भा. में निम्नलिखित सूत्र हैं:-प्रहाणामेकम् ॥491 नक्षत्राणामर्धम् ॥5011 तारकाणां चतुर्भागः ।।51॥ जघन्या त्वष्टभागः ।। 52॥ चतुर्भाग: शेषाणाम् ।।5411 14. 'ते. भा. में यह सूत्र नहीं है। 15. त. भा. में 'द्रभ्याणि जीवाश्च' ऐसा दो सूत्रोंके स्थान पर एक सूत्र है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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