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370] सर्वार्थसिद्धौ
[1013 6 924$ 924. आह, किमासां पौद्गलिकोनामेव द्रव्यकर्मप्रकृतीनां निरासान्मोक्षोऽवसीयते उत भावकर्मणोऽपीत्यत्रोच्यते
औपशमिकादिभव्यत्वानां च ॥3॥ $ 925. किम् ? 'मोक्षः' इत्यनुवर्तते। भव्यत्वग्रहणमन्यपारिगामिकनिवृत्त्यर्थम् । तेन पारिणामिकेषु भव्यत्वस्यौपशमिकादीनां च भावानामभावान्मोक्षो भवतीत्यम्युपगम्यते।
8926. आह, यद्यपवर्गो भावोपरतेः प्रतिज्ञायते, 'ननु औपशमिकादिभावनिवृत्तिवत्सर्वक्षायिकभावनिवृत्तिव्यपदेशो मुक्तस्य प्राप्नोतीति । स्यादेतदेवं यदि विशेषो नोच्येत। अस्त्यत्र विशेष इत्यपवादविधानार्थमिदमुच्यते
अन्यत्र केवलसम्यक्त्वज्ञानदर्शनसिद्धत्वेभ्यः ॥३॥ 8927. अन्यत्रशब्दापेक्षया का निर्देशः । केवलसम्यक्त्वज्ञानदर्भनसिद्धत्वेभ्योऽन्यत्रान्यस्मिन्नयं विधिरिति । यदि चत्वार एवावशिष्यन्ते, अनन्तवीर्यादीनां निवृत्तिःप्राप्नोति ? नैव दोषः, किसीके होता है और किसीके नहीं होता। इनके सिवा शेष प्रकृतियोंका सत्त्व नियमसे होता है। यह जीव गुणस्थान क्रमसे बन्धहेतुओंका अभाव करता है इसलिए क्रमसे नूतन बन्धका अभाव होता जाता है और सत्ता में स्थित प्राचीन प्रकृतियोंका परिणाम-विशेषसे कम करता जाता है इसलिए सत्तामें स्थित कर्मोका भी अभाव होता जाता है और इस प्रकार बन्तमें सब कर्मोका वियोग हो जानेसे यह जीव मुक्त होता है। यहां मोक्ष शब्दका प्रयोग कर्म, नोकर्म और भावकर्मके वियोग अर्थमें किया गया है । संसारी जीव बद्ध है अतएव वह किसी अपेक्षा से परतन्त्र है। उसके बन्धनके टूट जाने पर वह मुक्त होता है अर्थात् अपनो स्वतन्त्रताको प्राप्त करता है। इस प्रकार मोक्ष क्या है इसका निर्देश किया।
8924. कहते हैं कि क्या इन पौद्गलिक द्रव्यकर्म प्रकृतियोंके वियोगसे ही मोक्ष मिलता है या भावकर्मोके भी अभावसे मोक्ष मिलता है इस बातको बतलानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
तथा औपशमिक आदि भावों और भव्यत्व भावके अभाव होनेसे मोक्ष होता है ॥3॥
8925. क्या होता है ? मोक्ष होता है । यहाँ पर 'मोक्ष' इस पदकी अनुवृत्ति होती है। अन्य पारिणामिक भावोंकी निवृत्ति करनेके लिए सूत्रमें भव्यत्व पदका ग्रहण किया है। इससे पारिणामिक भावोंमें भव्यत्वका और औपमिक आदि भावोंका अभाव होनेसे मोक्ष होता है यह स्वीकार किया जाता है।
8926. कहते हैं, यदि भावोंके अभाव होनेसे मोक्षकी प्रतिज्ञा करते हो तो औपशमिक आदि भावोंकी निवृत्तिके समान समस्त क्षायिक भावोंकी निवृत्ति मुक्त जीवके प्राप्त होती है ? यह ऐसा होवे यदि इसके सम्बन्ध में कोई विशेष बात न कही जावे तो। किन्तु इस सम्बन विशेषता है इसलिए अपवादका विधान करनेके लिए यह आगेका सूत्र कहते हैं -
पर केवल सम्यक्त्व, केवलज्ञान, केवलदर्शन और सिद्धत्व भावका अभाव नहीं होता।
8927. यहाँ पर अन्यत्र शब्दको अपेक्षा पंचमी विभक्तिका निर्देश किया है। केवल सम्यक्त्व, केवलज्ञान, केवलदर्शन और सिद्धत्व इनके सिवा अन्य भावोंमें यह विधि होती है। अंका-सिद्धोंके यदि चार ही भाव शेष रहते हैं तो अनन्तवीर्य आदिकी निवृत्ति प्राप्त होती है ? 1. --यते नत्वोप-- मू.। --यतेत दोप-- ना.। 2. 'कापदाने' -जैनेन्द्र. 1, 4,411 'अपादाने कारके का विभक्तिर्भवति।' वृत्तिः । प्रतिष 'को निर्देशः' इति पाठः ।
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