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दशमोऽध्यायः
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गुणाः । जम्बूद्वीप सिद्धाः संख्येयगुणाः । धातकीखण्डसिद्धा: संख्येयगुणाः । पुष्करद्वीपार्थं 'सिद्धाः संख्येयगुणा इति । एवं कालादिविभागेऽपि यथागममल्पबहुत्वं वेदितव्यम् ॥10॥
8938. स्वर्गापवर्गसुखमाप्तुमनोभिरायें
जैनेन्द्रशासनवरामृतसारभूता । सर्वार्थ सिद्धिरिति सद्भिरुपात्तनामा
तत्त्वार्यवृत्तिरनिशं मनसा प्रधार्या ॥1॥ तत्वार्थवृत्तिमुदितां विदितार्थतत्त्वाः
शृण्वन्ति ये परिपठन्ति च धर्मभक्त्या ।
1. द्वीपसिद्धा: मु.
हस्ते कृतं परमसिद्धिसुखामृतं ते
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मरेश्वर सुखेषु किमस्ति वाच्यम् ॥2॥
येनेदमप्रतिहतं सकलार्थतत्त्व
हैं । इनसे द्वीपसिद्ध संख्यातगुणे हैं । यह सामान्य रूपसे कहा है । विशेष रूपसे विचार करनेपर लवण समुद्रसिद्ध सबसे स्तोक हैं। इनसे कालोदसिद्ध संख्यातगुणे हैं । इनसे जम्बूद्वीपसिद्ध संख्यातगुणे हैं । इनसे धातकी खण्ड सिद्ध संख्यातगुणे हैं । इनसे पुष्करार्द्ध द्वीपसिद्ध संख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार कालादिका विभाग करनेपर भी आगमके अनुसार अल्पबहुत्व जान लेना चाहिए ।
मुद्द्योतितं विमलकेवललोचनेन । भक्त्या तमद्भुतगुणं प्रणमामि वीर
मारान्नरामरगणार्चितपादपीठम् ॥3॥
इति तत्त्वार्थवृत्तौ सर्वार्थसिद्धिसंज्ञिकायां दशमोऽध्यायः समाप्तः । शुभं भवतु सर्वेषाम् ।
8938. स्वर्ग और अपवर्गके सुखको चाहनेवाले आर्य पुरुषोंने इस तत्त्वार्थवृत्तिका सर्वार्थसिद्धि यह नाम रखा है। यह जिनेन्द्रदेवके शासनरूपी अमृतका सार है, अतः मनःपूर्वक इसे निरन्तर धारण करना चाहिए || || सब तत्त्वों के जानकार जो इस तत्त्वार्थवृत्तिको धर्मभक्ति से सुनते हैं और पढ़ते हैं मानो उन्होंने परम सिद्धिसुखा मृतको अपने हाथमें ही कर लिया 'है, फिर, चक्रवर्ती और देवेन्द्रके सुखके विषयमें तो कहना ही क्या है ||2|| जिन्होंने अपने विमल केवलज्ञानरूपी नेत्रके द्वारा इस निर्विवाद सकल तत्त्वार्थका प्रकाश किया है, मनुष्यों और देवोंके द्वारा पूजित अद्भुतगुणवाले उन वीर भगवान् को भक्तिपूर्वक मैं प्रणाम करता हूँ ||3||
इस प्रकार सर्वार्थसिद्धि नामक तत्त्वार्थवृत्तिमें दसवाँ अध्याय समाप्त हुआ ।
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