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-5135 § 593]
पंचमोऽध्यायः
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बन्धो द्वद्यणुकादिपरिणामः । द्वयोः स्निग्धरुक्षयोरण्वोः परस्परश्लेषलक्षणे बन्धे सति द्वणुक स्कन्धो भवति । एवं संख्ये या संख्येयानन्तप्रदेशः स्कन्धो योज्यः । तत्र स्नेहगुण एकद्वित्रिचतुः संख्ये या संख्येयानन्त विकल्पः । तथा रूक्षगुणोऽपि । तद्गुणाः परमाणवः सन्ति । यथा तोयाजागोमहिष्युष्ट्रीक्षीरघृतेषु स्नेहगुणः प्रकर्षाप्रकर्षेण प्रवर्तते । पांशुकणिकाशर्करादिषु च रूक्षगुणो वृष्टः । तथा परमाणुष्वपि स्निग्धरूक्षगुणयोवृत्तिः प्रकर्षाप्रकर्षेणानुमीयते ।
9591. स्निग्धरूक्षत्वगुणनिमित्ते बन्धे अविशेषेण प्रसक्ते अनिष्टगुर्णानवृत्त्यर्थमाह-न जघन्यगुणानाम् ॥34॥
$ 592. जघन्यो निकृष्टः । गुणो भागः । जघन्यो गुणो येषां ते जघन्यगुणाः । तेषां जघन्यगुणानां नास्ति बन्धः । तद्यथा - एकगुणस्निग्धस्यैकगुणस्निग्धेन द्वयादिसंख्ये या संख्ये यानन्तगुणस्निग्धेन वा नास्ति बन्धः । तस्यैवैकगुणस्निग्धस्य एकगुणरूक्षेण द्वयादिसंख्येयासंख्येयानन्तगुणरूक्षेण वा नास्ति बन्धः । तथा एकगुणरूक्षस्यापि योज्यमिति ।
$ 593. एतौ जघन्यगुणस्निग्धरूक्षौ वर्जयित्वा अन्येषां स्निग्धानां रूक्षाणां च परस्परेण बन्धो भवतीत्यविशेषेण प्रसंगे तत्रापि प्रतिषेधविषयख्यापनार्थमाह-गुणसाम्ये सदृशानाम् ॥35॥
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aणुक आदि लक्षणवाला जो बन्ध होता है वह इनका कार्य है। स्निग्ध और रूक्ष गुणवाले दो परमाणुओंका परस्पर संश्लेषलक्षण बन्ध होनेपर द्वयणुक नामका स्कन्ध बनता है । इसी प्रकार संख्यात, असंख्यात और अनन्त प्रदेशवाले स्कन्ध उत्पन्न होते हैं । स्निग्ध गुणके एक, दो, तीन, चार, संख्यात, असंख्यात और अनन्त भेद हैं । इसी प्रकार रूक्ष गुणके भी एक, दो, तीन, चार, संख्यात, असंख्यात और अनन्त भेद हैं । और इन गुणवाले परमाणु होते हैं । जिस प्रकार जल तथा बकरी, गाय, भैंस, और ऊँटके दूध और घीमें उत्तरोत्तर अधिक रूपसे स्नेह गुण रहता है तथा पांशु, कणिका और शर्करा आदिमें उत्तरोत्तर न्यूनरूपसे रूक्ष गुण रहता है उसी प्रकार परमाणुओं में भी न्यूनाधिकरूपसे स्निग्ध और रूक्ष गुणका अनुमान होता है ।
8 591. स्निग्धत्व और रूक्षत्व गुणके निमित्तसे सामान्यसे बन्धके प्राप्त होनेपर बन्धमें अप्रयोजनीय गुणके निराकरण करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं.
जघन्य गुणवाले पुद्गलोंका बन्ध नहीं होता ॥34॥
§ 592. यहाँ जघन्य शब्दका अर्थ निकृष्ट है और गुण शब्दका अर्थ भाग है । जिनमें जघन्य गुण होता है अर्थात् जिनका शक्त्यंश निकृष्ट होता है वे जघन्य गुणवाले कहलाते हैं । उन जघन्य गुणवालोंका बन्ध नहीं होता । यथा - एक स्निग्ध शक्त्यंशवालेका एक स्निग्ध शक्त्यंशवाले के साथ या दो से लेकर संख्यात, असंख्यात और अनन्त शक्त्यंशवालोंके साथ बन्ध नहीं होता। उसी प्रकार एक स्निग्ध शक्त्यंशवालेका एक रूक्ष शक्त्यंशवालेके साथ या दोसे लेकर संख्यात, असंख्यात और अनन्त रूक्षशक्त्यंशवालोंके साथ बन्ध नहीं होता । उसी प्रकार एक रूक्ष शक्त्यंशवालेकी भी योजना करनी चाहिए ।
8593. इन जघन्य स्निग्ध और रूक्ष शक्त्यंशवालोंके सिवा अन्य स्निग्ध और रूक्ष पुद्गलोंका परस्पर बन्ध सामान्य रीतिसे प्राप्त हुआ, इसलिए इनमें भी जो बन्धयोग्य नहीं हैं वे प्रतिषेधके विषय हैं यह बतलानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
गुणोंकी समानता होने पर तुल्यजातिवालोंका बन्ध नहीं होता ॥35॥
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