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अष्टमोऽध्यायः पादितस्तिसृणामन्तरायस्य च त्रिंशत्सागरोपमकोटीकोट्यः परा स्थितिः ॥14॥
8761. मध्येऽन्ते वा तिसृणां ग्रहणं माभूदिति 'आदितः' इत्युच्यते । 'अन्तरायस्य' इति वचनं व्यवहितग्रहणार्थम् । सागरोपममुक्तपरिमाणम् । कोटीनां कोटयः कोटीकोटयः। पर उत्कष्टेत्यर्थः। एतदुक्तं भवति-ज्ञानावरणदर्शनावरणवेदनीयान्तरायाणामत्कष्टा स्थितिस्त्रिशस्सागरोपमकोटीकोटय इति । सा कस्य भवति ? मिथ्यादृष्टः संजिनः पंचेन्द्रियस्य पर्याप्तकस्य । अन्येषामागमात्संप्रत्ययः कर्तव्यः । $762. मोहनीयस्योत्कृष्टस्थितिप्रतिपत्त्यर्थमाह
सप्ततिर्मोहनीयस्य ।।.5॥ 8763. 'सागरोपमकोटीकोटयः परा स्थितिः' इत्यनुवर्तते । इयमपि परा स्थितिमिथ्यादृष्टः संज्ञिनः पंचेन्द्रियस्य पर्याप्तकस्यावसेया । इतरेषां यथागममवगमः कर्तव्यः । 8764. नामगोत्रयोरुत्कृष्टस्थितिप्रतिपत्त्यर्थमाह
विशतिर्नामगोत्रयोः ।।16।। आदिको तीन प्रकृतियाँ अर्थात् ज्ञानावरण, दर्शनावरण और वेदनीय तथा अन्तराय इन चारकी उत्कृष्ट स्थिति तीस कोटाकोटि सागरोपम है ॥14॥
8761. बीचमें या अन्तमें तीन का ग्रहण न होवे इसलिए सूत्रमें 'आदितः' पद कहा है । अन्तरायकर्मका पाठ प्रारम्भके तीन कर्मोके पाठसे व्यवहित है उसका ग्रहण करनेके लिए, 'अन्तरायस्य' वचन दिया है। सागरोपमका परिमाण पहले कह आये हैं। कोटियोंकी कोटि कोटाकोटि कहलाती है। पर शब्द उत्कृष्ट वाची है । उक्त कथनका यह अभिप्राय है कि ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अन्तरायकर्मकी उत्कृष्ट स्थिति तीस कोटाकोटि सागरोपम होती है। शंका-यह उत्कृष्ट स्थिति किसे प्राप्त होती है ? समाधान-मिथ्यादृष्टि, संज्ञी पंचेन्द्रिय और पर्याप्तक जीवको प्राप्त होती है । अन्य जीवोंके आगमसे देखकर ज्ञान कर लेना चाहिए।
विशेषार्थ-कर्मोकी स्थिति तीन प्रकारसे प्राप्त होती है-बन्धसे, संक्रमसे और सत्त्वसे। यहाँपर बन्धकी अपेक्षा उत्कृष्ट और जघन्य स्थिति बतलायी गयी है । अतितीव्र संक्लेश परिणामोंसे मिथ्यादृष्टि संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक जीव ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अन्तराय कर्मकी तीस कोटाकोटि सागरोपमप्रमाण उत्कृष्ट स्थिति बाँधता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
8762. मोहनीयको उत्कृष्ट स्थितिका ज्ञान करानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैंमोहनीयको उत्कृष्ट स्थिति सत्तर कोटाकोटि सागरोपम है ॥15॥
8763. इस सूत्र में 'सागरोपमकोटीकोटयः परा स्थितिः' पदको अनुवृत्ति होती है। यह भी उत्कृष्ट स्थिति मिथ्यादृष्टि संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक जीवके जानना चाहिए। इतर जीवोंके आगमके अनुसार ज्ञान कर लेना चाहिए।
8764. नाम और गोत्रकर्मकी उत्कृष्ट स्थितिका ज्ञान करानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
नाम और गोत्रको उत्कृष्ट स्थिति बीस कोटाकोटि सागरोपम है ॥16॥ 1. आदित उच्य-- आ., दि. 1, दि. 2। 2. - सेया। अन्येषां यथागममवगमः कर्तव्म: आ., दि. 1। -सेया । इतरेषां यथागममवगन्तव्यम् ?
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