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सर्वार्थसिद्ध
[9133 § 878
श्रर्तममनोज्ञस्य संप्रयोगे तद्विप्रयोगाय स्मृतिसमन्वाहारः ॥30॥ 8878. अमनोज्ञमप्रियं विषकण्टकशत्रुशस्त्रादि, तद्बाधाकरणत्वाद् 'अमनोज्ञम्' इत्युच्यते । तस्य संप्रयोगे, स कथं नाम मे न स्यादिति संकल्पश्चिन्ताप्रबन्धः स्मृतिसमन्वाहारः प्रथममार्तमित्याख्यायते ।
8879. द्वितीयस्य विकल्पस्य लक्षण निर्देशार्थमाह
विपरीतं मनोज्ञस्य ॥31॥
8880. कुतो विपरीतम् ? पूर्वोक्तात् । तेनैतदुक्तं भवति - मनोज्ञस्येष्टस्य स्वपुत्रदारधनादेविप्रयोगे तत्संप्रयोगाय संकल्पश्चिन्ता प्रबन्धो द्वितीयमार्तमवगन्तव्यम् ।
8881. तृतीयस्य विकल्पस्य लक्षणप्रतिपादनार्थमाह
वेदनायाश्च ॥32॥
8. 882. 'वेदना' शब्दः सुखे दुःखे च वर्तमानोऽपि आर्तस्य प्रकृतत्वाद् दुःखवेदनायां प्रवर्तते, तस्या वातादिविकारजनितवेदनाया उपनिपाते तस्या अपायः कथं नाम मे स्यादिति संकल्पचिन्ताप्रबन्धस्तृतीयमार्तमुच्यते ।
8883. तुरीयस्यार्तस्य लक्षणनिर्देशार्थमाह
निदानं च ॥33॥
8884. भोगाकाङ्क्षातुरस्यानागतविषयप्राप्ति प्रति मनः प्रणिधानं संकल्पश्चिन्ताप्रबन्ध
अमनोज्ञ पदार्थ प्राप्त होनेपर उसके वियोगके लिए चिन्तासातत्यका होना प्रथम आर्तध्यान है ॥30॥
8878. अमनोज्ञका अर्थ अप्रिय है । विष, कण्टक, शत्रु और शस्त्र आदि जो अप्रिय पदार्थ हैं वे बाधाके कारण होनेसे अमनोज़ कहे जाते हैं । उनका संयोग होनेपर वे मेरे कैसे न हों इस प्रकारका संकल्प चिन्ताप्रबन्ध अर्थात् स्मृति समन्वाहार यह प्रथम आर्तध्यान कहलाता है ।
8879. अब दूसरे भेदने लक्षणका निर्देश करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
मनोज्ञ वस्तुके वियोग होनेपर उसकी प्राप्तिकी सतत चिन्ता करना दूसरा आर्तध्यान
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8880. किससे विपरीत ? पूर्व में कहे हुए से । इससे यह तात्पर्य निकलता है कि मनोज्ञ अर्थात् इष्ट अपने पुत्र, स्त्री और धनादिकके वियोग होनेपर उसकी प्राप्तिके लिए संकल्प अर्थात् निरन्तर चिन्ता करना दूसरा आर्तध्यान जानना चाहिए ।
8881. अब तीसरे भेदके लक्षणका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं-
वेदना होनेपर उसे दूर करनेके लिए सतत चिन्ता करना तीसरा आर्तध्यान है ||32|| 6 882. वेदना शब्द यद्यपि सुख और दुःख दोनों अर्थों में विद्यमान है पर यहाँ आर्तध्यानका प्रकरण होनेसे उससे दुःखवेदना ली गयी है । वातादि विकारजनित दुःख वेदना होनेपर उसका अभाव मेरे कैसे होगा इस प्रकार विकल्प अर्थात् निरन्तर चिन्ता करना तीसरा आर्तध्यान कहा जाता है ।
8 883. अब चौथे आर्तध्यानके लक्षणका निर्देश करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैंनिदान नामका चौथा आर्तध्यान है ॥33॥
$ 884. भोगोंकी आकांक्षाके प्रति आतुर हुए व्यक्तिके आगामी विषयोंकी प्राप्तिके
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