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-5137 § 598]
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र्नास्ति । एवं शेषेष्वपि योज्यः । तथा द्विगुणरूक्षस्य एकद्वित्रिगुणरूक्षैर्नास्ति बन्धः । चतुर्गुणरूक्षेण त्वस्ति बन्धः । तस्यैव द्विगुणरूक्षस्य पञ्चगुणरूक्षादिभिरुत्तरंर्नास्ति बन्धः । एवं त्रिगुणरूक्षादीनामपि द्विगुणाधिकैर्बन्धो योज्यः । एवं भिन्नजातीयेष्वपि योज्यः । उक्तं च
पंचमोऽध्यायः
“णिद्धस्स णिद्धेण दुराधिएण लुक्खस्स लुक्खेण दुराधिएण । गिद्धस्स लुक्खेण हवेइ बंधो जहण्णवज्जो विसमे समे वा । "
'तु' शब्दो विशेषणार्थः । प्रतिषेधं व्यावर्तयति बन्धं च विशेषयति । 8597. किमर्थमधिकगुणविषयो बन्धो व्याख्यातो न समगुणविषय इत्यत आहबन्धेऽधिको पारिणामिकौ च ॥37॥
8598. अधिकाराद् 'गुण' शब्द : संबध्यते । अधिकगुणावधिकाविति । भावान्तरापादनं पारिणामिकत्वं क्लिन्नगुडवत् । यथा क्लिन्नो गुडोऽधिकमधुररसः परीतानां रेण्वादीनां स्वगुणा'पादनात् पारिणामिकः । तथान्योऽप्यधिकगुणः अल्पीयसः पारिणामिक इति कृत्वा द्विगुणादिस्तिग्धरूक्षस्य चतुर्गुणादिस्निग्धरूक्षः पारिणामिको भवति । ततः पूर्वावस्थाप्रच्यवनपूर्वकं तार्तोयिकमवस्थान्तरं प्रादुर्भवतीत्येकत्वमुपपद्यते । इतरथा हि शुक्ल कृष्णतन्तुवत् संयोगे सत्यप्यपारिणामि
परमाणु के साथ बन्ध होता है किन्तु आगे पीछेके शेष स्निग्ध शक्त्यंशवाले परमाणुके साथ बन्ध नहीं होता । इसी प्रकार यह क्रम आगे भी जानना चाहिए। तथा दो रूक्ष शक्त्यंशवाले परमाणुका एक, दो और तीन रूक्ष शक्त्यंशवाले परमाणुके साथ बन्ध नहीं होता । हाँ, चार रूक्ष शक्त्यंश वाले परमाणु के साथ अवश्य बन्ध होता है। उसी दो रूक्ष शक्त्यंशवाले परमाणुका आगे के पाँच आदि रूक्ष शक्त्यंशवाले परमाणुओंके साथ बन्ध नहीं होता। इसी प्रकार तीन आदि रूक्ष शक्त्यंशवाले परमाणुओंका भी दो अधिक शक्त्यंशवाले परमाणुओंके साथ बन्ध जान लेना चाहिए । समान जातीय परमाणुओंमें बन्धकां जो क्रम बतलाया है विजातीय परमाणुओं में भी बन्धका वही क्रम जानना चाहिए। कहा भी है- 'स्निग्धका दो अधिक शक्त्यंशवाले स्निग्धके साथ बन्ध होता है । रूक्षका दो अधिक शक्त्यंशवाले रूक्षके साथ बन्ध होता है । तथा स्निग्धका रूक्षके साथ इसी नियमसे बन्ध होता है । किन्तु जघन्य शक्त्यंशवालेका बन्ध सर्वथा वर्जनीय है ।' सूत्रमें 'तु' पद विशेषणपरक है जिससे बन्धके प्रतिषेधका निवारण और बन्धका विधान होता है ।
8 597. अधिक गुणवालेके साथ बन्ध होता है ऐसा क्यों कहा, समगुणवालेके साथ बन्ध होता है ऐसा क्यों नहीं कहा ? अब इसी बातके बतलानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
बन्ध होते समय दो अधिक गुणवाला परिणमन करानेवाला होता है ॥37॥
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8 598. 'गुण' शब्दका अधिकार चला आ रहा है, इसलिए इस सूत्र में उनका सम्बन्ध होता है, जिससे 'अधिक' पदसे 'अधिकगुणौ' अर्थका ग्रहण हो जाता है। गीले गुडके समान एक अवस्थासे दूसरी अवस्थाको प्राप्त कराना पारिमाणिक कहलाता है। जैसे अधिक मीठे रसवाला गीला गुड उस पर पड़ी हुई धूलिको अपने गुणरूपसे परिणमानेके कारण पारिणामिक होता है उसी प्रकार अधिक गुणवाला अन्य भी अल्प गुणवालेका पारिणामिक होता है । इस व्यवस्थाके अनुसार दो शक्त्यंश आदि वाले स्निग्ध या रूक्ष परमाणुका चार शक्त्यंश आदि वाला स्निग्ध या रूक्ष परमाणु पारिणामिक होता है । इससे पूर्व अवस्थाओंका त्याग होकर उनसे भिन्न एक तीसरी अवस्था उत्पन्न होती है । अतः उनमें एकरूपता आ जाती है । अन्यथा सफेद और काले तन्तुके समान संयोगके होनेसे भी पारिणामिक न होनेसे सब अलग-अलग ही स्थित 1. गुणोत्पाद- मु. दि. 2 ता.
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