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आह
-7121 $ 702] सप्तमोऽध्यायः
[277 व्यपदिश्यते।
8700. अत्राह कि हिंसादीनामन्यतमस्माद्यः प्रतिनिवृत्तः स खल्वगारोवती ? नैवम् । कि तहि ? पंचतय्या अपि विरतेवकल्येन विवक्षित इत्युच्यते --
अणुव्रतोऽगारी ॥20॥ . 8701. 'अणु'शब्दोऽल्पवचनः । अणूनि वृतान्यस्य अणुव्रतोऽगारीत्युच्यते। कयमस्य भूतानामणुत्वम् ? सर्वसावद्यनिवृत्त्यसंभवात् । कुतस्ता सौ निवृत्तः ? त्रसप्राणिव्यपरोपणान्निवृत्तः अंगारीत्याद्यमणुयहम् । स्नेहमोहादिवशाद् गृहविनाशे ग्रामविनाश वा कारणमित्यभिमतादसत्यवचनान्निवृत्तो गृहीति द्वितीयमणुव्रतम् । अन्यपीडाकरं पार्थिवभयादिवशादवश्यं परित्यक्तमपि यदवत्तं ततः प्रतिनिवृत्तादरः श्रावक इति तृतीयमणुव्रतम् । उपात्ताया अनुपात्तायाश्च परांगनायाः संगान्निवृत्तरतिगृहोति चतुर्थमणुव्रतम् । धनधान्यक्षेत्रादीनामिच्छावशात् कृतपरिच्छेदो गृहीति पंचममणुवतम् ।
$702. आह अपरित्यक्तागारस्य किमेतावानेव विशेष आहोस्विदस्ति कश्चिदन्योऽपीत्यत दिग्देशानर्थदण्डविरतिसामायिकप्रोषधोपवासोपभोगपरिभोगपरिमाणातिथि
संविभागवतसंपन्नश्च ॥21॥ अपेक्षा व्रतो कहा जाता है।
8700, शंका-जो हिंसादिकमें-से किसी एकसे निवृत्त है वह क्या अगारी व्रती है ? समाधान-ऐसा नहीं है। शंका --तो क्या है ? समाधान--जिसके एक देशसे पाँचों प्रकारको विरति है वह अगारी है यह अर्थ यहाँ विवक्षित है । अब इसी बातको बतलाने के लिए आगेका सूत्र कहते हैं
अणुव्रतोंका धारी अगारी है ॥20॥
$ 701. अणु शब्द अल्पवाची है। जिसके व्रत अणु अर्थात् अल्प हैं वह अणुव्रतवाला अगारी कहा जाता है। शंका-अगारीके व्रत अल्प कैसे होते हैं ? समाधान-अगारीके पूरे हिंसादि दोषोंका त्याग सम्भव नहीं है इसलिए उसके व्रत अल्प होते हैं । शंका-तो यह किससे निवृत्त हुआ है ? समाधान--यह त्रस जीवोंकी हिंसासे निवृत्त है; इसलिए उसके पहला अहिंसा अणुवत होता है । गृहस्थ स्नेह और मोहादिकके वशसे गृहविनाश और ग्रामविनाशके कारण असत्य वचनसे निवृत्त है, इसलिए उसके दूसरा सत्याणुव्रत होता है । श्रावक राजाके भय आदिके कारण दुसरेको पीडाकारी जानकर बिना दी हुई वस्तुको लेना यद्यपि अवश्य छोड़ देता है तो भी बिना दी हुई वस्तुके लेनेसे उसकी प्रीति घट जाती है, इसलिए उसके तीसरा अचौर्याणुव्रत होता है। गृहस्थके स्वीकार की हुई या बिना स्वीकार को हुई परस्त्रीका संग करनेसे रति हट जाती है, इसलिए उसके परस्त्रीत्याग नामका चौथा अणुव्रत होता है । तथा गृहस्थ धन, धान्य और क्षेत्र आदिका स्वेच्छासे परिमाण कर लेता है, इसलिए उसके पाँचवाँ परिग्रहपरिमाण अणुव्रत होता है।
8702. गृहस्थको क्या इतनी ही विशेषता है कि और भी विशेषता है, अब यह बतलानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
वह दिग्विरति, देशविरति, अनर्थदण्डविरति, सामायिकवत, प्रोषधोपवासवत, उपभोगपरिभोगपरिमाणत और अतिथिसंविभागवत इन व्रतोंसे भी सम्पन्न होता है ॥21॥ 1, -करपार्थिव-- मु.।
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