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सप्तमोऽध्यायः
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8709. व्रतानि च शीलानि च व्रतशीलानि तेषु व्रतशीलेषु । शोलग्रहणमनर्थकम् ; व्रतग्रहणेनैव सिद्धेः ? नानर्थकम् ; विशेषज्ञापनार्थं व्रतपरिरक्षणार्थं शीलमिति दिग्विरत्यादीनीह 'शील' ग्रहणेन गृह्यन्ते ।
$ 710. अगार्यधिकारादगारिणो वृतशीलेषु पंच पंचातिचारा वक्ष्यमाणा यथाक्रमं वेदितव्याः । तद्यथा - आद्यस्य तावदहंसावृतस्य --
बन्धवधच्छेदातिभारारोपणान्नपाननिरोधाः ॥ 25 ॥
8711. अभिमतदेशगतिनिरोधहेतुबंन्धः । दण्डकशावे त्रादिभिरभिघातः प्राणिनां वधः, न प्राणव्यपरोपणम् ततः प्रागेवास्य विनिवृत्तत्वात् । कर्णनासिकादीनामवयवानामपनयनं छेदः । न्याय्यभारादतिरिक्तवाहनमतिभारारोपणम् । गवादीनां क्षुत्पिपासाबाधाकरणमन्नपाननिरोधः । एते पंचाहिंसाणुव्रतस्यातिचाराः ।
मिथ्योपदेश रहो भ्याख्यानकूटलेखक्रियान्यासापहारसाकारमन्त्रभेदाः ॥26॥
712. अभ्युदयनिःश्रेयसार्थेषु क्रियाविशेषेषु अन्यस्यान्यथा प्रवर्तनमतिसंधाषनं वा मिथ्योपदेशः । यत्स्त्रीपुंसाभ्यामेकान्तेऽनुष्ठितस्य क्रियाविशेषस्य प्रकाशनं तद्रहोभ्याख्यानं वेदितव्यम् । अन्येनानुक्त' मननुष्ठितं यत्किचित्परप्रयोगवशादेवं तेनोक्तमनुष्ठितमिति वचनानिमित्तं
8709. शील और व्रत इन शब्दोंका कर्मधारय समास होकर व्रतशील पद बना है । उनमें अर्थात् व्रत-शीलोंमें । शंका- सूत्रमें शील पदका ग्रहण करना निष्फल है, क्योंकि व्रत पदके ग्रहण करनेसे ही उसकी सिद्धि हो जाती है ? समाधान — सूत्रमें शील पदका ग्रहण करना निष्फल नहीं है, क्योंकि विशेषका ज्ञान करानेके लिए और व्रतोंकी रक्षा करनेके लिए शील है, इसलिए यहाँ शील पदके ग्रहण करनेसे दिग्विरति आदि लिये जाते हैं ।
§ 710. यहाँ गृहस्थका प्रकरण है, इसलिए गृहस्थ के व्रतों और शीलोंके आगे कहे जानेवाले क्रमसे पाँच पाँच अतिचार जानने चाहिए जो इस प्रकार हैं । उसमें भी पहले प्रथम अहिंसा व्रत अतिचार बतलानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
बन्ध, वध, छेद, अतिभारका आरोपण और अन्नपानका निरोध ये अहिंसा अणुव्रतके पाँच अतिचार हैं ॥25॥
8711. किसीको अपने इष्ट स्थानमें जानेसे रोकनेके कारणको बन्ध कहते हैं। डंडा, चाबुक और बेंत आदि प्राणियोंको मारना वधे है । यहाँ वधका अर्थ प्राणोंका वियोग करना नहीं लिया है, क्योंकि अतिचारके पहले ही हिंसाका त्याग कर दिया जाता है। कान और नाक आदि अवयवों का भेदना छेद है । उचित भारसे अतिरिक्त भारका लादना अतिभारारोपण है। गौ आदिके भूखप्यास में बाधाकर अन्नपानका रोकना अन्नपाननिरोध है । ये पाँच अहिंसाणुव्रत के अतिचार हैं ।
मिथ्योपदेश, रहो भ्याख्यान, कूटलेखक्रिया, न्यासापहार और साकारमंत्रभेद ये सत्याणुवृतके पाँच अतिचार हैं ॥26॥
8712. अभ्युदय और मोक्षकी कारणभूत क्रियाओंमें किसी दूसरेको विपरीत मार्गसे लगा देना या मिथ्या वचनों द्वारा दूसरोंको ठगना मिथ्योपदेश है । स्त्री और पुरुष द्वारा एकान्तमें किये गये आचरण विशेषका प्रकट कर देना रहोभ्याख्यान है । दूसरेने न तो कुछ कहा और न 1. शुक्तं यत्किं मु ।
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