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288 सर्वार्थसिद्धौ
[7135 $ 722सचित्तसंबन्धसंमिश्राभिषवदुष्पक्वाहाराः ॥35॥ 8 722. सह चित्तेन वर्तते इति सचित्तं चेतनावद् द्रव्यम् । तदुपलिष्टः संबन्धः। तद्व्यतिकीर्णः संमिश्रः । कथं पुनरस्य सचित्तादिषु प्रवृत्तिः ? प्रमादसंमोहाभ्याम् । द्रवो वृष्यो वाभिषवः । असम्यक्पयो दुष्पक्वः । एतैराहारो विशेष्यते-सचित्ताहारः संबन्धाहारः संमिश्राहारोऽभिषवाहारो दुष्पक्वाहार इति । त एते पञ्च भोगोपभोगपरिसंख्यानस्यातिचाराः।
सचित्तनिक्षेपापिधानपरव्यपदेशमात्सर्यकालातिक्रमाः ।।36।।
$723. सचित्ते पद्मपत्रादौ निक्षेपः सचित्तनिक्षेपः । अपिधानमावरणम् । सचित्तेनैव संबध्यते सचित्तापिवानमिति । अन्यदातृदेयार्पणं परव्यपदेशः । प्रयच्छतोऽन्यादराभावोऽन्यदातगुण सहनं वा मात्सर्यम् । अकाले भोजन कालातिक्रमः । त एते पञ्चातिथिसंविभागशीलातिचाराः ।
जीवितमरणाशंसामित्रानुरागसुखानबन्धनिदानानि ॥37॥
8724. आशंसनमाशंसा आकाङ्क्षणमित्यर्थः । जीवितं च मरणं च जीवितमरणम्, जीवितमरणस्या से जीवितमरणाशंसे । पूर्वसुहृत्सहपांसुक्रीडनाद्यनुस्मरणं मित्रानुरागः । अनुभूत
सचित्ताहार, सम्बन्धाहार, सम्मिश्राहार, अभिषवाहार और दुःपक्वाहार ये उपभोगपरिभोगपरिमाण व्रतके पाँच अतिचार हैं ॥35॥
8722. जो चित्त सहित है वह सचित्त कहलाता है । सचित्तसे चेतना सहित द्रव्य लिया जाता है। इससे सम्बन्धको प्राप्त हुआ द्रव्य सम्बन्धाहार है । और इससे मिश्रित द्रव्य सम्मिश्र है। शंका---यह गृहस्थ सचित्तादिकमें प्रवृत्ति किस कारणसे करता है ? समाधान-प्रमाद और सम्मोहके कारण । द्रव, वृष्य और अभिषव इनका एक अर्थ है । जो ठीक तरहसे नहीं पका है वह दुःपक्व है। ये पाँचों शब्द आहारके विशेषण हैं या इनसे आहार पाँच प्रकारका हो जाता है। यथा-सचित्ताहार, सम्बन्धाहार, सम्मिश्राहार, अभिषवाहार और दुःपक्वाहार ये सब भोगोपभोपरिसंख्यान व्रतके पाँच अतिचार हैं।
सचित्तनिक्षेप, सचित्तापिधान, परव्यपदेश, मात्सर्य और कालातिक्रम ये अतिथिसंविभाग व्रतके पाँच अतिचार हैं ।।36॥
8723. सचित्त कमलपत्र आदिमें रखना सचित्तनिक्षेप है । अपिधानका अर्थ ढाँकना है। इस शब्दको भी सचित्त शब्दसे जोड़ लेना चाहिए, जिससे सचित्त कमलपत्र आदिसे ढाँकना यह अर्थ फलित होता है। इस दानकी वस्तुका दाता अन्य है यह कहकर देना परव्यपदेश है। दान करते हुए भी आदरका न होना या दूसरे दाताके गुणोंको न सह सकना मात्सर्य है। भिक्षाकाल के सिवा दूसरा काल अकाल है और उसमें भोजन कराना कालातिक्रम है। ये सब अतिथिसंविभाग शीलव्रतके पाँच अतिचार हैं।
जीविताशंसा, मरणाशंसा, मित्रानुराग, सुखानुबन्ध और निदान ये सल्लेखनाके पांच अतिचार हैं ॥37॥
8724. आशसाका अर्थ चाहना है। जीनेकी चाह करना जीविताशंसा है और मरनेकी चाह करना मरणाशंसा है। पहले मित्रोंके साथ पांसुक्रीडन आदि नाना प्रकारको क्रीड़ाएँ की रहीं उनका स्मरण करना मित्रानुराग है । अनुभवमें आये हुए विविध सुखोंका पुनः पुनः 1. -त्तिः स्यात् । प्रमा- मु.।
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