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सर्वार्थसिद्धी
[713 § 672
संबध्यते । वेशतो विरतिरणुव्रतं सर्वतो विरतिर्महाव्रतमिति द्विधा भिद्यते प्रत्येकं व्रतम् । एतानि मानि भावितानि वरौषधवद्यत्नवते' दुःखनिवृत्तिनिमित्तानि भवन्ति ।
8667. किमर्थं कथं वा भावनं तेषामित्यत्रोच्यते
तत्स्थैर्यार्थं भावनाः पञ्च पञ्च ॥3॥
8 668. तेषां व्रतानां स्थिरीकरणायैकैकस्य व्रतस्य पञ्च पञ्च भावना वेदितव्याः । "येवमाद्यस्याहिंसावृतस्य भावनाः का इत्यत्रोच्यते
वाङ्मनोगुप्तीर्यादाननिक्षेपणसमित्यालोकितपानभोजनानि पञ्च ॥4॥
$ 669. वाग्गुप्तिः मनोगुप्तिः ईर्यासमितिः आदाननिक्षेपणसमितिः आलोकितपानभोजन1. रत्येताः पञ्चाहिंसावृतस्य भावनाः ।
8 670. अथ द्वितीयस्य व्रतस्य का इत्यत्रोच्यते-
क्रोध लोभ भीरुत्व हास्यप्रत्याख्यानान्यनुवीचीभाषणं च पञ्च ॥5॥
§ 671. क्रोधप्रत्याख्यानं लोभप्रत्याख्यानं भीरुत्वप्रत्याख्यानं हास्यप्रत्याख्यानम् अनुवीचीभाषणं चेत्येताः पञ्च भावनाः सत्यव्रतस्य ज्ञेयाः । अनुवीची भाषणं निरवद्यानुभाषणमित्यर्थः । 8672. इदानीं तृतीयस्य व्रतस्य का भावना इत्यत्राहशून्यागारविमोचितावासपरोपरोधाकरण भैक्ष शुद्धिसधर्माविसंवादाः पञ्च ॥16॥
सब प्रकार से निवृत्त होना महाव्रत है इस प्रकार अहिंसादि प्रत्येक व्रत दो प्रकारके हैं । प्रयत्नशील जो पुरुष उत्तम ओषधिके समान इन व्रतोंका सेवन करता है उसके दुःखों का नाश होता है । 8667. इन व्रतोंकी किसलिए और किस प्रकार भावना करनी चाहिए, अब इसी बातको बतलाने के लिए आगेका सूत्र कहते हैं—
उन व्रतोंको स्थिर करने के लिए प्रत्येक व्रतको पाँच पाँच भावनाएँ हैं ॥3॥
8668. उन व्रतोंको स्थिर करनेके लिए एक एक व्रतकी पाँच पाँच भावनाएँ जाननी चाहिए। यदि ऐसा है तो प्रथम अहिंसा व्रतकी भावनाएँ कौन-सी हैं ? अब इस बातको बतलाने के लिए आगेका सूत्र कहते हैं
वचनगुप्ति, मनोगुप्ति, ईर्यासमिति, आदान निक्षेपणसमिति और आलोकितपान- भोजन ये अहिंसावती पाँच भावनाएँ हैं || 4 ||
8669. वचनगुप्ति, मनोगुप्ति, ईर्यासमिति, आदाननिक्षेपणसमिति और आलोकित - पानभोजन ये अहिंसा व्रतकी पाँच भावनाएँ हैं ।
8670. अब दूसरे व्रतकी भावनाएँ कौनसी हैं यह बतलानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैंक्रोधप्रत्याख्यान, लोभप्रत्याख्यान, भीरुत्वप्रत्याख्यान, हास्यप्रत्याख्यान और अनुवीचीभाषण ये सत्य व्रतको पाँच भावनाएँ हैं ||5
8671. क्रोधप्रत्याख्यान, लोभप्रत्याख्यान, भीरुत्वप्रत्याख्यान, हास्यप्रत्याख्यान और अनुवीचीभाषण ये सत्य व्रतकी पाँच भावनाएँ हैं । अनुवीचीभाषणका अर्थ निर्दोष भाषण है । § 672. अब तीसरे व्रतकी कौनसी भावनाएँ हैं, यह बतलानेके लिए आगेका सूत्र
कहते हैं
शून्यागारावास, विमोचितावास, परोपरोधाकरण, भैक्षशुद्धि और सधर्माविसंवाद ये raौर्य व्रतको पाँच भावनाएँ हैं ॥6॥
1. वरौषधवत् दुःख-- आ
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