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--712 § 666]
सप्तमोऽध्यायः
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अनुताद्वितिरित्येवमादि । तत्र अहिंसाव्रतमांदी क्रियते प्रधानत्वात् । सत्यादीनि हि तत्परिपालनार्थानि सस्यस्य वृतिपरिक्षेपवत् । सर्वसावद्यनिवृत्तिलक्षणसामायिकापेक्षया एकं व्रतं, तदेव छेदोपस्थापनापेक्षया पञ्चविधमिहोच्यते । ननु च अस्य व्रतस्यास्रवहेतुत्वमनुपपन्नं संवर हेतुष्वन्तर्भावात् । संवरतवो वक्ष्यन्ते गुप्तिसमित्यादयः । तत्र दशविधे धर्मे संयमे वा व्रतानामन्तर्भाव इति ? नैष दोषः ; तत्र संवरो निवृत्तिलक्षणो वक्ष्यते । प्रवृत्तिश्चात्र दृश्यते'; हिंसानृतादत्तादानादिपरित्यागे हिंसासत्यवचन दत्तादानादिक्रियाप्रतीतेः गुप्त्यादिसंवरपरिकर्मत्वाच्च । व्रतेषु हि कृतपरिकर्मा साधुः सुखेन संवरं करोतीति ततः पृथक्त्वेनोपदेशः क्रियते । ननु च षष्ठमणुव्रतमस्ति रात्रिभोजनविरमणं तदिहोपसंख्यातव्यम् ? न; भावनास्वन्तर्भावात् । अहिंसावतभावना हि वक्ष्यन्ते । तत्र आलोकितपानभोजनभावना कार्येति ।
8665. तस्य पञ्चतयस्य व्रतस्य भेदप्रतिपत्त्यर्थमाहदेश सर्वतोऽणुमहती ॥2॥
$ 666. देश एकदेशः । सर्वः सकलः । देशश्च सर्वश्च देशसत्रौं ताभ्यां देशसर्वतः । 'विरतिः' इत्यनुवर्तते । अणु च महच्चाणुमहती । व्रताभिसंबन्धान्नपुंसकलिङ्गनिर्देशः । यथासंख्यमभिहिंसासे विरति, असत्यसे विरति आदि । इन पाँच व्रतोंमें अहिंसा व्रतको प्रारम्भमें रखा है क्योंकि वह सब में मुख्य है । धान्यके खेत के लिए जैसे उसके चारों ओर काँटोंका घेरा होता है उसी प्रकार सत्यादिक सभी व्रत उसकी रक्षाके लिए हैं । सब पापोंसे निवृत्त होनेरूप सामायिककी अपेक्षा एक व्रत है । वही व्रत छेदोपस्थापनाकी अपेक्षा पाँच प्रकारका है और उन्हींका यहाँ कथन किया है । शंका- यह व्रत आस्रवका कारण है यह बात नहीं बनती, क्योंकि संवरके कारणों में इनका अन्तर्भाव होता है। आगे गुप्ति, समिति इत्यादि संवरके कारण कहनेवाले हैं । वहाँ दस प्रकारके धर्मोमें एक संयम नामका धर्म बतलाया है उसमें व्रतोंका अन्तर्भाव होता है ? समाधान- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि वहाँ निवृत्तिरूप संवरका कथन करेंगे और यहाँ प्रवृत्ति देखी जाती है, क्योंकि हिंसा, असत्य और अदत्तादान आदिका त्याग करने पर अहिंसा, सत्यवचन और दी हुई वस्तुका ग्रहण आदि रूप क्रिया देखी जाती है । दूसरे ये व्रत गुप्ति आदि रूप संव
अंग हैं। जिस साधने व्रतोंकी मर्यादा कर ली है वह सुखपूर्वक संवर करता है, इसलिए व्रतोंका अलगसे उपदेश दिया है । शंका - रात्रिभोजनविरमण नाम छठा अणुव्रत है उसकी यहाँ परिगणना करनी थी ? समाधान नहीं, क्योंकि उसका भावनाओंमें अन्नर्भाव हो जाता है । आगे अहिंसा व्रतकी भावनाएँ कहेंगे । उनमें एक आलोकितपानभोजन नामकी भावना है उसमें रात्रिभोजनविरमण नामक व्रतका अन्तर्भाव जाता है ।
8665. उस पाँच प्रकारके व्रतके भेदोंका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैंहिंसादिकसे एकदेश निवृत्त होना अणुव्रत है और सब प्रकार से निवृत्त होना महाव्रत
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§ 666. देश शब्दका अर्थ एकदेश है और सर्व शब्दका अर्थ सकल है । सूत्रमें देश और सर्व शब्दका द्वन्द्व समास करके तसि प्रत्यय करके 'देशसर्वतः' पद बनाया है । इस सूत्र में विरति शब्दक अनुवृत्ति पूर्व सूत्रसे होती है । यहाँ अणु और महत् शब्दका द्वन्द्व समास होकर 'अणुमहती' पद बना है । व्रत शब्द नपुंसक लिंग है, इसलिए 'अणुमहती यह नपुंसक लिंगपरक निर्देश किया है । इनका सम्बन्ध क्रमसे होता है । यथा- - एकदेश निवृत्त होना अणुव्रत है और
1. दृश्यते हिंसानृतादत्तादानादिक्रिया -- मु. । 2. --यन्ते । आलो.- आ., दि. 1, दि. 2 1 3. 'एते जातिदेशकालसमयानवच्छिन्नाः सार्वभौमा महाव्रतम् ।' पा. यो. सू. 2, 31
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