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सप्तमोऽध्यायः
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8673. शून्यागारेषु गिरिगुहातरुकोटरादिष्वावासः । परकीयेषु च विमोचितेष्वावासः । परेषामुपरोधकरणम् । आचारशास्त्रमार्गेण भैक्षशुद्धिः । ममेदं तवेदमिति सधर्मभिरविसंवादः । इत्येताः पञ्चादत्तादानविरमणवू तस्य भावनाः ।
8674. अथेदानीं ब्रह्मचर्यव्रतस्य भावना वक्तव्या इत्यत्राहस्त्रीरागकथाश्रवणतन्मनोहराङ्गनिरीक्षणपूर्वरतानुस्मरणवृष्येष्ट रसस्वशरीर
संस्कारत्यागाः पञ्च ॥7॥
$ 675. त्यागशब्दः प्रत्येकं परिसमाप्यते । स्त्रीरागकथाश्रवणत्यागः तन्मनोहराङ्गनिरीक्षणत्यागः पूर्वरतानुस्मरणत्यागः वृष्येष्टर सत्यागः स्वशरीरसंस्कार त्यागश्चेति चतुर्थवृतस्य भावनाः पञ्च विज्ञेयाः ।
§ 676. अथ पञ्चमवृतस्य भावनाः का इत्यत्रोच्यते
मनोज्ञामनोज्ञेन्द्रियविषय रागद्वेषवर्जनानि पञ्च ॥ 8 ॥
8677. पञ्चानामिन्द्रियाणां स्पर्शनादीनामिष्टानिष्टेषु विषयेषूपनिपतितेषु' स्पर्शादिषु रागवर्जनानि पञ्च आकिंचन्यस्य व्रतस्य भावना: प्रत्येतव्याः ।
$ 678. किंचान्यद्यथामीषां वृतानां द्रढिमार्थं भावनाः प्रतीयन्ते तद्विपश्चिद् द्भिरिति भावनोपदेशः, तथा तदर्थं तद्विरोधिष्वपीत्याह
8673. पर्वतकी गुफा और वृक्षका कोटर आदि शून्यागार हैं इनमें रहना शून्यागारावास है । दूसरों द्वारा छोड़े हुए मकान आदिमें रहना विमोचितावास है । दूसरों को ठहरनेसे नहीं रोकना परोपरोधाकरण है । आचार शास्त्रमें बतलायी हुई विधि के अनुसार भिक्षा लेना भैक्षशुद्धि है। 'यह मेरा है यह तेरा है' इस प्रकार सर्धामियोंसे विसंवाद नहीं करना सधर्माविसंवाद है । ये अदत्तादानविरमण व्रतकी पाँच भावनाएँ हैं ।
8674. अब इस समय ब्रह्मचर्य व्रतकी पाँच भावनाओंका कथन करना चाहिए; इसलिए आगेका सूत्र कहते हैं
स्त्रियोंमें रागको पैदा करनेवाली कथाके सुननेका त्याग, स्त्रियोंके मनोहर अंगोंको देखनेका त्याग, पूर्व भोगोंके स्मरणका त्याग, गरिष्ठ और इष्ट रसका त्याग तथा अपने शरीरके संस्कारका त्याग ये ब्रह्मचर्य व्रतकी पाँच भावनाएँ हैं ॥7॥
8 675. त्याग शब्दको प्रत्येक शब्दके साथ जोड़ लेना चाहिए । यथा - स्त्रीरागकथा - श्रवणत्याग, तन्मनोहरांग निरीक्षणत्याग, पूर्वरतानुस्मरणत्याग, वृष्येष्टरसत्याग और स्वशरीरसंस्कारत्याग ये ब्रह्मचर्य व्रतकी भावनाएँ हैं ।
8676. अब पाँचवें व्रतकी कौनसी भावनाएँ हैं यह बतलानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैंमनोज्ञ और अमनोज्ञ इन्द्रियोंके विषयोंमें क्रमसे राग और द्वेषका त्याग करना ये अपरग्रहवृतकी पाँच भावनाएं हैं ॥8 ॥
8677. स्पर्शन आदि पाँच इन्द्रियोंके इष्ट और अनिष्ट स्पर्श आदिक पाँच विषयोंके प्राप्त होने पर राग और द्वेषका त्याग करना ये आकिंचन्य व्रतकी पाँच भावनाएं जाननी चाहिए । § 678. जिस प्रकार इन व्रतोंकी दृढ़ता के लिए भावनाएँ प्रतीत होती हैं, इसलिए भावनाओंका उपदेश दिया है उसी प्रकार विद्वान् पुरुषोंको वृतोंकी दृढ़ताके लिए विरोधी भावोंके विषय में क्या करना चाहिए ? यह बतलानेके लिए अब आगेका सूत्र कहते हैं
1. येषूपरिपतितेषु आ. दि. 1, दि. 21
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