________________
258] सर्वार्थसिद्धौ
[61198645 एतदपि मानुषस्यायुष आस्रवः । पृथग्योगकरणं किमर्थम् ? उत्तरार्थम्, देवायुष आलवोऽयमपि यथा स्यात् । 8645. किमेतदेव द्वितीयं मानुषस्यास्रवः ? न; इत्युच्यते--
निश्शीलवतत्वं च सर्वेषाम् ॥19॥ 8646. 'च'शब्दोऽधिकृतसमुच्ययार्थः । अल्पारम्भपरिग्रहत्वं च निःशीलव्रतत्वं च। शीलानि च वतानि च शीलवतानि तानि वक्ष्यन्ते । निष्क्रान्तः शीलवतेभ्यो निःशीलवतः। तस्य भावो निःशीलवतत्वम् । 'सर्वेषां ग्रहणं सकलायुरास्त्रवप्रतिपत्त्यर्थम् । किं देवायुषोऽपि भवति ? सत्यम्, भवति भोगभूमिजापेक्षया।।
8647. अथ चतुर्थस्यायुषः क आस्रव इत्यत्रोच्यतेसरागसंयमसंयमासंयमाकामनिर्जराबालतपांसि देवस्य ॥20॥
8648. सरागसंयमः संयमासंयमश्च व्याख्यातौ । अकामनिर्जरा अकामश्चारकनिरोषबन्धनबद्धेषु क्षुत्तृष्णानिरोधब्रह्मचर्यभूशय्यामलधारणपरितापादिः। अकामेन निर्जरा अकामनिर्जरा । बालतपो मिथ्यादर्शनोपेत मनुपायकायक्लेशप्रचुरं निकृतिबहुलव्रतधारणम् । तान्येतानि देवस्यायुष आस्रवहेतवो वेदितव्याः। न पड़े। यह भी मनुष्यायुका आस्रव है । शंका-इस सूत्रको अलगसे क्यों बनाया ? समाधान - स्वभावकी मृदुता देवायुका भी आस्रव है इस बातके बतलानेके लिए इस सूत्रको अलगसे बनाया है।
___8645. क्या ये दो ही मनुष्यायुके आस्रव हैं ? नहीं, किन्तु और भी हैं। इसी बातको बतलानेके लिए अब आगेका सूत्र कहते हैं -- शीलरहित और व्रतरहित होना सब आयुओंका आस्रव है॥19॥
8646. सूत्रमें जो 'च' शब्द है वह अधिकार प्राप्त आस्रवोंके समुच्चय करनेके लिए है। इससे यह अर्थ निकलता है कि अल्प आरम्भ और अल्प परिग्रहरूप भाव तथा शील और व्रतरहित होना सब आयुओंके आस्रव हैं । शील और व्रतोंका स्वरूप आगे कहनेवाले हैं। इनसे रहित जीवका जो भाव होता है उससे सब आयुओंका आस्रव होता है यह इस सूत्रका भाव है। यहाँ सब आयुओंका आसव इष्ट है यह दिखलानेके लिए सूत्रमें सर्वेषाम्' पदको ग्रहण किया है। शंका-क्या शील और व्रतरहितपना देवायुका भी आस्रव है ? समाधान हाँ, भोगभूमियाँ प्राणियोंकी अपेक्षा शील और व्रतरहितपना देवायुका भी आस्रव है।
6 647. अब चौथी आयुका क्या आस्रव है यह बतलानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैंसरागसंयम, संयमासंयम, अकामनिर्जरा और बालतप ये देवायुके आस्रव हैं 1200
8648. सरागसंयम और संयमासंयमका व्याख्यान पहले कर आये हैं। चारकमें रोक रखनेपर या रस्सी आदिसे बाँध रखनेपर जो भूख प्यास सहनी पड़ती है, ब्रह्मचर्य पालना पड़ता है, भूमिपर सोना पड़ता है, मलमूत्रको रोकना पड़ता है और संताप आदि होता है यह सब अकाम है और इससे जो निर्जरा होती है वह अकामनिर्जरा है । मिथ्यात्वके कारण मोक्षमार्गमें उपयोगी न पड़नेवाले अनुपाय कायक्लेशबहुल मायासे व्रतोंका धारण करना बालतप है । ये सब देवायुके आस्रवके कारण जानने चाहिए। 1. आस्रवोऽपि मु.। 2. द्वितीयं मु.। 3. व्रतानि वक्ष्य-- मु.। 4. --पेतमनुकम्पाकाय- ता., ना. ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org .