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पंचमोऽध्यायः
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साधारणावगाहनहेतुत्वमस्यासाधारणं लक्षणमिति नास्ति दोषः । अलोकाकाशे तद्भावादभाव इति चेत् ? न; स्वभावापरित्यागात् ।
8562. उक्त आकाशस्योपकारः । अथ तदनन्तरोद्दिष्टानां पुद्गलानां क उपकार इत्यत्रोच्यते-
शरीरवाङ मनः प्रारणापानाः पुद्गलानाम् ॥19॥
9563. इदमयुक्तं वर्तते । किमत्रायुक्तम् ? पुद्गलानां क उपकार इति परिप्रश्ने पुद्गलानां लक्षणमुच्यते; ' शरीरादीनि पुद्गलमयानीति ? नैतदयुक्तम्; पुद्गलानां लक्षणमुत्तरत्र वक्ष्यते । इदं तु जीवान् प्रति पुद्गलानामुपकारप्रतिपादनार्थमेवेति उपकारप्रकरणे उच्यते । शरीराप्युक्तानि । औदारिकादीनि सौक्ष्म्यावप्रत्यक्षाणि । तदुदयापादित' वृत्ती न्युपचयशरीराणि कानिचित्प्रत्यक्षाणि कानिचिदप्रत्यक्षाणि । एतेषां कारणभूतानि कर्माण्यपि शरीरग्रहणेन गृह्यन्ते । एतानि पौद्गलिकानीति कृत्वा जीवानामुपकारे पुद् गलाः प्रवर्तन्ते । स्यान्मतं कार्मणमपौद्गलिकम् ; अनाकारत्वाद्' । 'आकारवतां हि औदारिकादीनां पौद्गलिकत्वं युक्तमिति ? तन्न; तदपि पौद्गलिकमेव तद्विपाकस्य मूर्तिमत्संबन्धनिमित्तत्वात् । दृश्यते हि व्रीह्यादीनामुदकादिद्रव्यसंबन्धप्रापितपरिपाकानां पौद्गलिकत्वम् । तथा कार्मणमपि गुडकण्टकादिमूर्तिमद्रव्योपनिपाते सति विपच्यमानत्वात्पौद्
असाधारण लक्षण नहीं रहता, क्योंकि दूसरे पदार्थोंमें भी इसका सद्भाव पाया जाता है ? समाधान — नहीं क्योंकि, आकाश द्रव्य सब पदार्थोंको अवकाश देने में साधारण कारण है यही इसका असाधारण लक्षण है, इसलिए कोई दोष नहीं है । शंका- अलोकाकाशमें अवकाशदान रूप स्वभाव नहीं पाया जाता, इससे ज्ञात होता है कि यह आकाशका स्वभाव नहीं है ? समाधाननहीं, क्योंकि कोई भी द्रव्य अपने स्वभाव का त्याग नहीं करता ।
8562. आकाश द्रव्यका उपकार कहा। अब उसके अनन्तर कहे गये पुद्गलोंका वया उपकार है, यह बतलानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
शरीर, वचन, मन और प्राणापान यह पुद्गलोंका उपकार है ।।19॥
8563. शंका - यह अयुक्त है। प्रतिशंका-क्या अयुक्त है ? शंका- पुद्गलोंका क्या उपकार है यह प्रश्न था पर उसके उत्तरमें 'शरीरादिक पुद्गलमय हैं' इस प्रकार पुद्गलों का लक्षण कहा जाता है ? समाधान- यह अयुक्त नहीं है, क्योंकि पुद्गलोंका लक्षण आगे कहा जायगा, यह सूत्र तो जीवोंके प्रति पुद्गलोंके उपकारका कथन करने के लिए ही आया है, अतः उपकार प्रकरण में ही यह सूत्र कहा है । औदारिक आदि पाँचों शरीरोंका कथन पहले कर आये हैं । वे सूक्ष्म होनेसे इन्द्रियगोचर नहीं हैं। किन्तु उनके उदयसे जो उपचय शरीर प्राप्त होते हैं उनमें से कुछ शरीर इन्द्रियगोचर हैं और कुछ इन्द्रियातीत हैं । इन पाँचों शरीरोंके कारणभूत जो कर्म हैं उनका भी शरीर पदके ग्रहण करनेसे ग्रहण हो जाता है । ये सब शरीर पौद्गलिक हैं ऐसा समझकर जीवोंका उपकार पुद्गल करते हैं यह कहा है। शंका- आकाशके समान कार्मण शरीरका कोई आकार नहीं पाया जाता, इसलिए उसे पौद्गलिक मानना युक्त नहीं है। हाँ, जो औदारिक आदिक शरीर आकारवाले हैं उनको पौद्गलिक मानना युक्त है ? समाधान - यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि कार्मण शरीर भी पौद्गलिक ही है, क्योंकि उसका फल मूर्तिमान् पदार्थों के सम्बन्धसे होता है । यह तो स्पष्ट दिखाई देता है कि जलादिकके संबन्धसे पकनेवाले धान आदि
1. च्यते भवता शरी- मु. 1 ( तदुदयोपपादित) वृत्ती- मु.।
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2. -रत्र स्पर्श रसगन्धवर्णवन्तः पुद्गलाः इत्यत्र वक्ष्यते मुः । 3 -पादित4. -कारत्वादाकाशवत् । आकार- मु. ।
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