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-~-5124 5572] पंचमोऽध्यायः
[225 द्विविषः प्रायोगिको वैनसिकश्चेति । वैससिको वलाहकादिप्रभवः । प्रायोगिकश्चतुर्धा, ततविततघनसौषिरभेदात् । तत्र चर्मतनननिमित्तः पुष्करभेरीदर्दुरादिप्रभवस्ततः । तन्त्रीकृतवीणासुघोषादिसमुद्धवो विततः। तालघण्टालालनाद्य भिघातजो घनः । वंशशंखादिनिमित्तः सौषिरः। बन्धो विविधः--बससिकः प्रायोगिकश्च । पुरुषप्रयोगानपेक्षो वैनसिकः । तद्यथा-स्निग्धरूक्षत्वगुणनिमित्तो विधुदुल्काजलधाराग्नीन्द्रधनुरादिविषयः । पुरुषप्रयोगनिमित्तः प्रायोगिकः अजीवविषयो जीवाजीवविषयश्चेति द्विधा भिन्नः । तत्राजीवविषयो जतुकाष्ठादिलक्षणः। जीवाजीवविषयः कर्मनोकर्मबन्धः। सौक्षम्यं द्विविधं----अन्त्यमापेक्षिकं च। तत्रान्त्यं परमाणनाम। आपेक्षिकं विल्वामलकबदरादीनामा स्थौल्यमपि द्विविधमन्त्यमापेक्षिकं चेति । तत्रान्त्यं जगद्वयापिनि महास्कन्धे । आपेक्षिक बदरामलकविल्वतालादिषु । संस्थानमाकृतिः। तद् द्विविधम्--इत्थंलक्षणमनित्थंलक्षणं चेति । वृत्तत्र्यनचतुरस्रायतपरिमण्डलादीनामित्थंलक्षणम् । अतोऽन्यन्मेघादीनां संस्थानमनेकविधमित्थमिदमिति निरूपणाभावादनित्वंलक्षणम् । भेदाः षोढा; उत्करचूर्णखण्डचूणिकाप्रतराणुचटनविकल्पात् । तत्रोत्करः काष्ठादीनां करपत्रादिभिरुत्करणम् । चूर्णो यवगोधूमादीनां सक्तुकणिकादिः। खण्डो घटादाना कपालशंकरादिः। चूणिका माषमूदगादीनाम । प्रतरोऽभ्रपटलादीनाम। अणुचटनं सन्तप्तायःपिण्डादिषु अयोधनादिभिरभिहन्यमानेषु स्फुलिङ्गनिर्गमः । तमो दृष्टिप्रतिबन्ध
प्रायोगिक और वैससिक । मेघ आदि के निमित्तसे जो शब्द उत्पन्न होते हैं वे वैरसिक शब्द हैं। तथा तत, वितत, धन और सौषिरके भेदसे प्रायोगिक शब्द चार प्रकारके हैं। चमड़ेसे मढ़ हए पुष्कर, भेरी और दर्दु रसे जो शब्द उत्पन्न होता है वह तत शब्द है। ताँतवाले वीणा और सुघोष आदिसे जो शब्द उत्पन्न होता है वह वितत शब्द है । ताल, घण्टा और लालन आदिके ताड़नसे जो शब्द उत्पन्न होता है वह धन शब्द है तथा बांसुरी और शंख आदिके फूकनेसे जो शब्द उत्पन्न होता है वह सौषिर शब्द है । बन्धके दो भेद हैं-वैससिक और प्रायोगिक । जिसमें पुरुषका प्रयोग अपेक्षित नहीं है वह वैनसिक बन्ध है। जैसे, स्निग्ध और रूक्ष गुणके निमित्तसे होनेवाला बिजली, उल्का, मेघ, अग्नि और इन्द्रधनुष आदिका विषयभूत बन्ध वैससिक बन्ध है । और जो बन्ध पुरुषके प्रयोगके निमित्तसे होता है वह प्रायोगिक बन्ध है । इसके दो भेद हैंअजीवसम्बन्धी और जीवाजोवसम्बन्धी । लाख और लकड़ो आदिका अजीवसम्बन्धी प्रायोगिक बन्ध है। तथा कर्म और नोकर्मका जो जीवसे बन्ध होता है वह जीवाजीवसम्बन्धी प्रायोगिक बन्ध है । सूक्ष्मताके दो भेद हैं-अन्त्य और आपेक्षिक । परमाणुओंमें अन्त्य सूक्ष्मत्व है। तथा बेल, आँवला और बेर आदिमें आपेक्षिक सूक्ष्मत्व है। स्थौल्य भी दो प्रकारका है-अन्त्य और आपेक्षिक । जगव्यापी महास्कंधमें अन्त्य स्थौल्य है। तथा बेर, आंवला और बेल आदिमें आपेक्षिक स्थौल्य है। संस्थानका अर्थ आकृति है। इसके दो भेद हैं-इत्थंलक्षण और अनित्थंलक्षण । जिसके विषयमें 'यह संस्थान इस प्रकारका है' यह निर्देश किया जा सके वह इत्थंलक्षण संस्थान वत्त, त्रिकोण, चतुष्कोण, आयत और परिमण्डल आदि ये सब इत्थंलक्षण संस्थान हैं। तथा इससे अतिरिक्त मेघ आदिके आकार जो कि अनेक प्रकारके हैं और जिनके विषयमें यह इस प्रकारका है यह नहीं कहा जा सकता वह अनित्थंलक्षण संस्थान है । भेदके छह भेद हैं-उत्कर, चूर्ण, खण्ड, चूर्णिका, प्रतर और अणुचटन । करोंत आदिसे जो लकड़ी आदि को चीरा जाता है वह उत्कर नामका भेद है। जौ और गेहूँ आदिका जो सत्तू और कनक आदि बनता है वह चूर्ण नामका भेद है। घट आदिके जो कपाल और शर्करा आदि टुकड़े होते हैं वह खण्ड नामका भेद है। उड़द और मूग आदिका जो खण्ड किया जाता है वह चूर्णिका नामका भेद है। मेघके जो अलग-अलग पटल आदि होते हैं वह प्रतर नामका भेद है। तपाये हुए लोहेके गोले आदिको घन
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