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-3127 § 418]
तृतीयोऽध्यायः
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विशानि पञ्चयोजनशतानि विस्तारो यस्य षविशपञ्चयोजनशतविस्तारो भरतः । किमेतावानेव ? न; इत्याह षट् चैकोनविंशतिभागा योजनस्य विस्तारोऽस्येत्यभिसंबध्यते । § 413. इतरेषां विष्कम्भविशेषप्रतिपत्त्यर्थमाह्—
तद्विगुणद्विगुणविस्तारा वर्षधरवर्षा विदेहान्ताः ॥25॥
8414. 'ततो भरताद् द्विगुणो द्विगुणो विस्तारो येषां त इमे तद्विगुणद्विगुणविस्ताराः । के ते वर्षधरवर्षाः । कि सर्वे ? न; इत्याह विदेहान्ता इति ।
$ 415. अयोत्तरेषां कथमित्यत आह-
उत्तरा दक्षिणतुल्याः ॥26॥
$ 416. उत्तरा ऐरावतादयो नीलान्ता भरतादिभिर्दक्षिणस्तुल्या द्रष्टव्याः । अतीतस्य सर्वस्यायं विशेषो वेदितव्यः । तेन हृदपुष्करादीनां तुल्यता योज्या ।
8417. अत्राह, उक्तेषु भरतादिषु क्षेत्रेषु मनुष्याणां किं तुल्योऽनुभवादिः, आहोस्विदस्ति कश्चित्प्रतिविशेष इत्यत्रोच्यते
redit षट्समयाभ्यामुत्सर्पिण्यवसर्पिणीभ्याम् ||२७||
$ 418. वृद्धिश्च ह्रासश्च वृद्धिहासौ । काभ्याम् ? षट् समयाभ्यामुत्सपण्यवसर्पिणीहै जिसका अभिप्राय यह है कि भरतवर्ष पाँच सौ छब्बीस योजनप्रमाण विस्तार से युक्त है । शंका- क्या इसका इतना ही विस्तार है ? समाधान नहीं, क्योंकि इसका एक योजनका छह बटे उन्नीस योजन विस्तार और जोड़ लेना चाहिए ।
8413. अब इतर क्षेत्रोंके विस्तार विशेषका ज्ञान करानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं-विदेह पर्यन्त पर्वत और क्षेत्रोंका विस्तार भरत क्षेत्रके विस्तारसे दूना दूना है ॥25॥
8414. जिनका भरतसे दूना-दूना विस्तार है वे भरतसे दूने-दूने विस्तारवाले कहे ये हैं । यहाँ 'तद्विगुणद्विगुणविस्तारा:' में बहुव्रीहि समास है । शंका- वे दूने दूने विस्तारवाले क्या हैं ? समाधान -- पर्वत और क्षेत्र । शंका- क्या सबका दूना दूना विस्तार है ? समाधाननहीं, किन्तु विदेह क्षेत्र तक दूना-दूना विस्तार है ।
8415. क्षेत्र और पर्वतोंका विस्तार क्रमसे किस प्रकार है अब इस बातके बतलानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
उत्तरके क्षेत्र और पर्वतोंका विस्तार दक्षिणके क्षेत्र और पर्वतोंके समान है ||26||
§ 416. 'उत्तर' इस पदसे ऐरावत क्षेत्रसे लेकर नील पर्यन्त क्षेत्र और पर्वत लिये गये हैं । इनका विस्तार दक्षिण दिशावर्ती भरतादिके समान जानना चाहिए। पहले जितना भी कथन कर आये हैं उन सबमें यह विशेषता जाननी चाहिए। इससे तालाब और कमल आदिकी समानता लगा लेनी चाहिए ।
§ 417. यहाँ पर शंकाकार कहता है कि इन पूर्वोक्त भरतादि क्षेत्रोंमें मनुष्योंका अनुभव आदि क्या समान हैं या कुछ विशेषता है ? इस शंकाका समाधान करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
भरत और ऐरावत क्षेत्रों में उत्सर्पिणी और अवसर्पिणीके छह समयकी अपेक्षा वृद्धि और ह्रास होता रहता है ॥27॥
8418 वृद्धि और ह्रास इन दोनों पदोंमें कर्मधारय समास है । शंका- किनकी अपेक्षा 1. ततो द्विगुणो ता, ना. । 2. तुल्योऽनुभवः आहो- ता., ना. । 3. -याभ्याम् । कयोः मु. ।
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