________________
188]
सर्वार्थसिद्धी
[41198419साहचर्यादिन्द्रोऽपि सौधर्मः । ईशानो नाम इन्द्रः स्वभावतः । ईशानस्य निवासः कल्प ऐशानः । "तस्य निवास:1" इत्यण् । तत्साहचर्यादिन्द्रोऽप्यैशानः। सनत्कुमारो नाम इन्द्रः स्वभावतः। "तस्य निवासः" इत्यण् । सानत्कुमारः कल्पः । तत्साहचर्यादिन्द्रोऽपि सानत्कुमारः। महेन्द्रो नामेन्द्रः स्वभावतः। तस्य निवासः कल्पो माहेन्द्रः। तत्साहचर्यादिन्द्रोऽपि माहेन्द्रः। एवमुत्तरत्रापि योज्यम् । आगमापेक्षया व्यवस्था भवतीति 'उपर्युपरि' इत्यनेन द्वयोद्धयोरभिसंबन्धो वेदितव्यः । प्रथमो सौधर्मेशानकल्पो, तयोरुपरि सानत्कुमारमाहेन्द्रौ, तयोरुपरि ब्रह्मलोकब्रह्मोत्तरौ, तयोरुपरि लान्तवकापिष्ठौ, तयोरुपरि शुक्रमहाशुक्रौ, तयोरुपरि शतारसहस्रारौ, तयोरुपरि आनतप्राणतो, तयोरुपरि आरणाच्युतौ। अध उपौर च प्रत्येकमिन्द्रसंबन्धो वेदितव्यः । मध्ये तु प्रतिद्वयम् । सौधर्मशानसानत्कुमारमाहेन्द्राणां चतुर्णां चत्वार इन्द्राः । ब्रह्मलोकब्रह्मोत्तरयोरेको ब्रह्मा नाम । लान्तधकापिष्ठयोरेको लान्तवाख्यः। शुक्रमहाशुक्रयोरेकः शुक्रसंज्ञः । शतारसहस्रारयोरेकः शतारनामा। आनतप्राणतारणाच्युताना चतुर्णां चत्वारः। एवं कल्पवासिनां द्वादश इन्द्रा भवन्ति । जम्बूद्वीपे महामन्दरो योजनसहस्रावगाहो' नवनवतियोजनसहस्रोच्छायः । तस्याधस्ताद
कः । बाहल्येन तत्प्रमाण स्तिर्यप्रसुतस्तियंग्लोकः । तस्योपरिष्टादूवलोकः । मेरुचूलिका धान-स्वभावसे या साहचर्य से। शंका-कैसे ? समाधान-सुधर्मा नामकी सभा है, वह जहाँ है उस कल्पका नाम सौधर्म है। यहाँ तदस्मिन्नस्ति' इससे 'अण्' प्रत्यय हुआ है। और इस कल्पके सम्बन्धसे वहाँका इन्द्र भी सौधर्म कहलाता है। इन्द्रका ईशान यह नाम स्वभावसे है। वह इन्द्र जिस कल्पमें रहता है उसका नाम ऐशान कल्प है । यहाँ 'तस्य निवासः' इस सूत्रसे 'अण प्रत्यय हुआ है । तथा इस कल्पके सम्बन्धसे इन्द्र भी ऐशान कहलाता है। इन्द्रका सनत्कुमार नाम स्वभावसे है । यहाँ 'तस्य निवासः' इस सूत्रसे 'अण्' प्रत्यय हुआ है इससे कल्पका नाम सानत्कुमार पड़ा और इसके सम्बन्धसे इन्द्र भी सानत्कुमार कहलाता है। इन्द्रका महेन्द्र नाम स्वभावसे है। वह इन्द्र जिस कल्पमें रहता है उसका नाम माहेन्द्र है। और इसके सम्बन्धसे इन्द्र भी माहेन्द्र कहलाता है । इसी प्रकार आगे भी जानना । व्यवस्था आगमके अनुसार होती है इसलिए 'उपर्यपरि' इस पदके साथ दो दो कल्पोंका सम्बन्ध कर लेना चाहिए। सर्वप्रथम सौधर्म और ऐशान कल्प हैं। इनके ऊपर सानत्कुमार और माहेन्द्र कल्प हैं । इनके ऊपर ब्रह्म और ब्रह्योत्तर कल्प हैं। इनके ऊपर लान्तव और कापिष्ठ कल्प हैं। इनके ऊपर शुक्र और महाशुक्र कल्प हैं। इनके ऊपर शतार और सहसार कल्प हैं। इनके ऊपर आनत और प्राणत कल्प हैं। इनके ऊपर आरण और अच्युत कल्प हे । नीचे और ऊपर प्रत्येक कल्पमें एक एक इन्द्र है तथा मध्यमें दो दो कल्पोंमें एक एक इन्द्र है । तात्पर्य यह है कि सौधर्म, ऐशान, सानत्कुमार
और माहेन्द्र इन चार कल्पोंके चार इन्द्र हैं। ब्रह्मलोक और ब्रह्मोत्तर इन दो कल्पोंका एक ब्रह्म नामक इन्द्र है। लान्तव और कापिष्ठ इन दो कल्पोंमें एक लान्तव नामका इन्द्र है। शुक्र और महाशुक्रमें एक शुक्र नामका इन्द्र है । शतार और सहसार इन दो कल्पोंमें एक शतार नामका इन्द्र है । तथा आनत, प्राणत, आरण और अच्युत इन चार कल्पोंके चार इन्द्र हैं। इस प्रकार कल्पवासियोंके बारह इन्द्र होते हैं । जम्बूद्वीप में एक महामन्दर नामका पर्वत है जो मूलमें एक हजार योजन गहरा है । और निन्यानबे हजार योजन ऊँचा है । उसके नीचे अधोलोक है। मेरु पर्वतकी जितनी ऊँचाई है उतना मोटा और तिरछा फैला हुआ तिर्यग्लोक है। उसके ऊपर ऊर्ध्वलोक है, जिसकी मेरु चूलिका चालीस योजन विस्तृत है । उसके ऊपर एक बालके अन्तरसे 1. 'तस्य निवासः' -पा. 4,2,69, । तस्य निवासादूरभवो' -जैनेन्द्र . 3, 2, 86 1 2. द्वयमेकम् मु. । 3. ब्रह्मन्द्रो माम मु.। 4. -गाहो भवति नव मु., ता., ना.। 5. बाहुल्येन मु., ता., ना., दि. 2। 6. तत्प्रमाग (मेरुप्रमाण) स्तिर्य- मु.।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org