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----51106545] पंचमोऽध्यायः
[209 8542. अथाकाशस्य कति प्रदेशा इत्यत आह
आकाशस्यानन्ता:1॥9॥ 8543. अविद्यमानोऽन्तो येषां ते अनन्ताः । के ? प्रदेशाः । कस्य ? आकाशस्य। पूर्ववदस्यापि प्रदेशकल्पनाऽवसेया।
8544. उक्तभमूर्तानां प्रदेशपरिमाणम् । इदानों मूर्तानां पुद्गलानां प्रदेशपरिमाणं निर्जातव्यमित्यत आह
संख्येयाऽसंख्येयाश्च पुद्गलानाम् ॥10॥ 8545. 'च' शब्दादनन्ताश्चेत्यनुकृष्यते। कस्यचित्पुद्गलद्रव्यस्य द्वयणुकादेः संख्येयाः प्रदेशाः कस्यचिदसंख्येया अनन्ताश्च । अनन्तानन्तोपसंख्यानमिति चेत् । न; अनन्तसामान्यात् । अनन्तप्रमाणं त्रिविधमुक्तं परोतानन्तं युक्तानन्तमनन्तानन्तं चेति। तत्सर्वमनन्तसामान्येन गृह्यते । स्यादेतदसंख्यातप्रदेशो लोकः अनन्तप्रदेशस्थानन्तानन्तप्रदेशस्य च स्कन्धस्याधिकरणमिति विरोधस्ततो नानन्त्यमिति? नैष दोषः; सूक्ष्मपरिणामावगाहनशक्तियोगात् । परमाण्वादयो हि सूक्ष्मभावेन परिणता एककस्मिन्नप्याकाशप्रदेशेऽनन्तानन्ता अवतिष्ठन्ते, अवगाहनशक्तिश्चैषामव्याहतास्ति । तस्मादेकस्मिन्नपि प्रदेशे अनन्तानन्तानामवस्थानं न विरध्यते।
8 542. अब आकाश द्रव्यके कितने प्रदेश हैं यह बतलानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं-- आकाशके अनन्त प्रदेश हैं ॥9॥
8543. जिनका अन्त नहीं है वे अनन्त कहलाते हैं ? शंका अनन्त क्या हैं ? समाधान प्रदेश । शंका-किसके ? समाधान---आकाशके । पहलेके समान इसके भी प्रदेशकी कल्पना जान लेनी चाहिए । अर्थात् जितने क्षेत्रमें एक परमाणु रहता है उसे प्रदेश कहते हैं। प्रदेशका यह अर्थ यहाँ जानना चाहिए।
8544. अमूर्त द्रव्योंके प्रदेश कहे । अब मूर्त पुद्गलोंके प्रदेशोंकी संख्या ज्ञातव्य है, अतः उसका ज्ञान करानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
पुद्गलोंके संख्यात, असंख्यात और अनन्त प्रदेश हैं॥10॥
$ 545. सूत्रमें जो 'च' शब्द दिया है.उससे अनन्तकी अनुवृत्ति होती है । तात्पर्य यह है कि किसी द्वयणुक आदि पुद्गल द्रव्यके संख्यात प्रदेश होते हैं और किसीके असंख्यात तथा अनन्त प्रदेश होते हैं। शंका-यहाँ अनन्तानन्तका उपसंख्यान करना चाहिए? समाधान नहीं, क्योंकि यहाँ अनन्त सामान्यका ग्रहण किया है । अनन्त प्रमाण तीन प्रकारका कहा है-परीतानन्त, यक्तानन्त और अनन्तानन्त । इसलिए इन सबका अनन्त सामान्यसे ग्रहण हो जाता है। शंका-लोक असंख्यात प्रदेशवाला है, इसलिए वह अनन्त प्रदेशवाले और अनन्तानन्त प्रदेशवाले स्कन्धका आधार है, इस बातके मानने में विरोध आता है, अतः पुद्गलके अनन्त प्रदेश नहीं बनते ? समाधान-यह कोई दोष नहीं है; क्योंकि सूक्ष्म परिणमन होनेसे और अवगाहन शक्तिके निमित्तसे अनन्त या अनन्तानन्त प्रदेशवाले पुद्गल स्कन्धोंका आकाश आधार हो जाता है। सूक्ष्मरूपसे परिणत हुए अनन्तानन्त परमाणु आकाशके एक-एक प्रदेशमें ठहर जाते हैं । इनकी यह अवगाहन शक्ति व्याघात हित है, इसलिए आकाशक एक प्रदेशमें भी अनन्तानन्त परमाणुओंका अवस्थान विरोधको प्राप्त नहीं होता। 1. नन्ताः ॥9॥ लोकेऽलोके चाकाशं वर्तते । अवि- मु.। 2. च शन्देनानन्ता- मु. ता., ना.।
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