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-517 § 539]
पंचमोऽध्यायः
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ब्रध्यग्रहणम् । क्षेत्रभावा' द्यपेक्षया असंख्येयत्वानन्तत्वविकरूपस्येष्टत्वान्न जीवपुद्गलवदेषां बहुत्वमित्येतदनेन ख्याप्यते ।
8538. अधिकृतानामेव एकद्रव्याणां विशेषप्रतिपत्त्यर्थमिदमुच्यतेनिष्क्रियारि च ॥7॥
8539. उभयनिमित्तवशादुत्पद्यमानः पर्यायो द्रव्यस्य देशान्तरप्राप्तिहेतुः क्रिया । तस्या fromraft निष्क्रियाणि । अत्र चोद्यते - धर्मादीनि द्रव्याणि यदि निष्क्रियाणि ततस्तेषामुत्पादो न भवेत् । क्रियापूर्वको हि घटादीनामुत्पादो दृष्टः । उत्पादाभावाच्च व्ययाभाव इति । अतः सर्वद्रव्याणामुत्पादादित्रि' तयकल्पनाव्याघात इति ? तन्न; किं कारणम् ? अन्यथोपपत्तेः । क्रियानिमितोत्पादाभावेऽप्येषां धर्मादीनामन्यथोत्पादः कल्प्यते । तद्यथा - द्विबिध उत्पादः - स्वनिमित्तः परप्रत्ययश्च । स्वनिमित्तस्तावदनन्तानामगुरुलघु गुणानामागम' प्रामाण्यादभ्युपगम्यमानानां षट्स्थानपतितया वृद्धचा हान्या च प्रवर्तमानानां स्वभावादेतेषामुत्पादो व्ययश्च । परप्रत्ययोऽपि अश्वादिगतिस्थित्यवगाहन हेतुत्वात् क्षणे क्षणे तेषां भेदात्तद्धेतुत्वमपि भिन्नमिति परप्रत्ययापेक्ष उत्पादो विनाशश्च व्यवह्रियते । ननु यदि निष्क्रियाणि धर्मादीनि, जीवपुद्गलानां गत्यादिहेतुत्वं नोपपद्यते । जादीनि हि क्रियावन्ति मत्स्यादीनां गत्यादिनिमित्तानि दृष्टानीति ? नैष दोषः ; बलाधाननिआकाशके क्षेत्र और भाव दोनोंकी अपेक्षा अनन्त विकल्प इष्ट होनेसे ये जीव और पुद्गलोंके समान बहुत नहीं हैं इस प्रकार यह बात इस सूत्र में दिखायी गयी है ।
$ 538. अब अधिकार प्राप्त उन्हीं एक-एक द्रव्योंका विशेष ज्ञान करानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
तथा निष्क्रिय हैं ॥7॥
8539 अन्तरंग और बहिरंग निमित्तसे उत्पन्न होनेवाली जो पर्याय द्रव्यके एक क्षेत्र दूसरे क्षेत्रमें प्राप्त करानेका कारण है वह क्रिया कहलाती है और जो इस प्रकारकी क्रिया से रहित हैं वे निष्क्रिय कहलाते हैं । शंका- यदि धर्मादिक द्रव्य निष्क्रिय हैं तो उनका उत्पाद नहीं बन सकता, क्योंकि घटादिकका क्रियापूर्वक ही उत्पाद देखा जाता है। और उत्पाद नहीं बनने से उनका व्यय नहीं बनता । अतः सब द्रव्य उत्पाद आदि तीन रूप होते हैं इस कल्पनाका व्याघात हो जाता है ? समाधान नहीं, क्योंकि इनमें उत्पाद आदिक तीन अन्य प्रकारसे बन जाते हैं । यद्यपि इन धर्मादिक द्रव्योंमें क्रियानिमित्तक उत्पाद नहीं है तो भी इनमें अन्य प्रकारसे उत्पाद माना गया है । यथा--उत्पाद दो प्रकारका है, स्वनिमित्तक उत्पाद और परप्रत्यय उत्पाद | स्वनिमित्तक यथा--- प्रत्येक द्रव्यमें आगम प्रमाणसे अनन्त अगुरुलघु गुण ( अविभाग प्रविच्छेद) स्वीकार किये गये हैं जिनका छह स्थानपतित वृद्धि और हानिके द्वारा वर्तन होता रहता है, अतः इनका उत्पाद और व्यय स्वभावसे होता है । इसी प्रकार परप्रत्यय का भी उत्पाद और व्यय होता हैं । यथा ये धर्मादिक द्रव्य क्रमसे अश्व आदिकी गति, स्थिति और अवगाहनमें कारण हैं । चूंकि इन गति आदिक में क्षण-क्षण में अन्तर पड़ता है इसीलिए इनके कारण भी भिन्न-भिन्न होने चाहिए, इस प्रकार इन धर्मादिक द्रव्योंमें परप्रत्ययकी अपेक्षा उत्पाद और व्यय का व्यवहार किया जाता है। शंका- यदि धर्मादिक द्रव्य निष्क्रिय हैं तो ये जीव और पुद्गलोंकी गति आदिकके कारण नहीं हो सकते; क्योंकि जलादिक क्रियावान होकर ही मछली आदिकी गति आदिमें निमित्त देखे जाते हैं, अन्यथा नहीं ? समाधान1. - भावापेक्षया आ., ता., ना., दि. 1, दि. 2 1 2 - दादित्रय कल्प- मु.। 3. - गमप्रमाणादभ्यु- आ., दि. 1, दि. 2 ।
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