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200] सर्वार्थ सिद्धी
[4141 8523 तदष्टभागोऽपरा ॥4॥ 8 523. तस्य पल्योपमस्याष्टभागो ज्योतिष्काणामपरा स्थितिरित्यर्थः ।
8524. अथ लोकान्तिकानां विशेषोक्तानां स्थितिविशेषो मोक्तः। स कियानित्यनोच्यते
लौकान्तिकानामष्टौ सागरोपमारिण सर्वेषाम् ॥42॥ 8525. अविशिष्टाः सर्वे ते शुक्ललेश्याः पञ्चहस्तोत्सेधशरीराः ।
इति तत्त्वार्थवृत्तौ सर्वार्थसिद्धि संज्ञिकायां चतुर्थोऽध्यायः ॥4॥
ज्योतिषियोंकी जघन्य स्थिति उत्कृष्ट स्थितिका आठवां भाग है ॥41॥
६ 523. इस सूत्रका यह भाव है कि उसका अर्थात् पल्योपमका आठवाँ भाग ज्योतिषियोंकी जघन्य स्थिति है।
8554. विशेषरूपमें कहे गये लौकान्तिक देवोंकी स्थिति नहीं कही है। वह कितनी है अब यह बतलाते हैंसब लौकान्तिकोंकी स्थिति आठ सागरोपम है ।।42॥
8525. इन सब लौकान्तिकोंकी शुक्ल लेश्या होती है । और शरीरकी ऊंचाई पाँच हाथ होती है।
इस प्रकार सर्वार्थसिदि नामवाली तत्त्वार्थवृत्तिमें चौथा अध्याय समाप्त हुआ 140
1. शरीराः । चतुणिकायदेवानां स्थानं भेद: सुखादिकम् । परापरा स्थितिर्लेश्या तुर्याध्याये निरूपितम् ॥ इति तत्वा - मु., दि. 1, मि. 2, आ.। ,
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