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-4119 § 479]
विमानानि । विदिक्षु प्रकीर्णपुष्पवदवस्थानात्पुष्पप्रकीर्णकानि । 8474 तेषां वैमानिकानां भेदावबोधनार्थमाहकल्पोपपन्नाः कल्पातीताश्च ॥17॥
8475. कल्पेषूपन्नाः कल्पोपपन्नाः कल्पातीताः कल्पातीताश्चेति द्विविधा वैमानिका: $ 476. तेषामवस्थानविशेषनिर्ज्ञानार्थमाह
चतुर्थोऽध्यायः
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उपर्युपरि ॥18॥
8477. किमर्थमिदमुच्यते । तिर्यगवस्थितिप्रतिषेधार्थमुच्यते । न ज्योतिष्कवत्तिर्यगवस्थिताः । न व्यन्तरवद समावस्थितयः । 'उपर्युपरि' इत्युच्यन्ते । के ते ? कल्पाः । 8478. यो, कियत्सु कल्पविमानेषु ते देवा भवन्तीत्यत आह-सौधर्मैशानसानत्कुमार माहेन्द्रब्रह्मब्रह्मोत्तरलान्तवकापिष्ठशुक्र महाशुक्रशतार सहस्त्रारेष्वानतप्राणतयोरारणाच्युतयोर्नवसु ग्रैवेयकेषु विजय वैजयन्तजयन्तापराजितेषु सर्वार्थसिद्धौ च ॥१६॥
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$479. कथमेषां सौधर्मादिशब्दानां कल्पाभिधानम् ? चातुरर्थिकेनाणा स्वभावतो वा कल्पस्याभिधानं भवति । अथ कथमिन्द्राभियानम् ? स्वभावतः साहचर्याद्वा । तत्कथमिति चेत् ? उच्यते - सुधर्मा नाम सभा, साऽस्मिन्नस्तीति सौधर्मः कल्पः । "तदस्मिन्नस्तोति "" अण् । तत्कल्पआकाश के प्रदेशोंकी पंक्तिके समान जो स्थित हैं वे श्रेणिविमान हैं । तथा बिखरे हुए फूलों के 'समान विदिशाओं में जो विमान हैं वे पुष्पप्रकोणक विमान हैं ।
$474. उन वैमानिकां भेदांका ज्ञान करानेके लिए आगे का सूत्र कहते हैंवे दो प्रकारके हैं- कल्पोपपन्न और कल्पातीत ॥ 17 ॥
$ 475. जो कल्पांमें उत्पन्न होते हैं वे कलापपन्न कहलाते हैं। ओर जो कल्पों के परे हैं वे कातात कहलाते हैं । इस प्रकार वैमानिक दो प्रकारके हैं ।
§ 476. अब उनके अवाविशेषाज्ञान कराने के लिए आगेका सूत्र कहते हैंवे ऊपर-ऊपर रहते हैं ।। 18 ।।
8477. शंका-पह सूत्र किसलिए कहा है ? समाधान - ये कल्पोपन्न और कल्पातीत वैमानिक तिरछे रूपसे रहत है इसका निषेध करनेके लिए कहा है। ये ज्योतिषियोंके समान तिरछे रूपसे नहीं रहते हैं । उसी प्रकार व्यन्तरोंके समान विषमरूपसे नहीं रहते हैं । किन्तु ऊपर-ऊपर हैं। शंका - वे ऊपर-ऊपर क्या हैं ? समाधान - कल्प |
8478. यदि ऐसा है तो कितने कल्प विमानांमें वे देव निवास करते हैं, इस बात के बतलाने के लिए अब आगेका सूत्र कहते हैं
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सौधर्म, ऐशान, सानत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लान्तव, कापिष्ठ, शुक्र, महाशुक्र, शतार और सहस्रार तथा आनत प्राणत, आरण-अच्युत, नौ ग्रैवेयक और विजय, वैजयन्त, जयन्त अपराजित तथा सर्वार्थसिद्धिमें वे निवास करते हैं ॥19॥
8479. शका--इन सोधर्मादिक शब्दोंको कल्प संज्ञा किस निमित्तसे मिली है ? समाधान - व्याकरणमें चार अर्थ में 'अग्' प्रत्यय होता है उससे सोधर्म आदि शब्दोंकी कल्पसंज्ञा है या स्वभावते हो व कल्प कहलाते हैं । शंका- पीधर्म आदि शब्द इन्द्रके वाचो कैसे हैं ? समा1. तदस्मिन्नस्तीति देशे तन्नाम्नि पा. 4, 2, 67 । तदस्मिन्नन्नं प्राये खो' जनेन्द्र 4, 1,25
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