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-4122 § 485]
चतुर्थोऽध्यायः
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ते पीतपद्मशुवललेश्याः । कथं ह्रस्वत्वम् । औत्तरपदिकम् ' । यथा-" द्रुतायां तपरकरणे मध्यमविलम्बितयोरुपसंख्यानम्" इति । अथवा पीतश्च पद्मश्च शुवलश्च पीतपद्मशुक्ला वर्णवतोsर्थाः । तेषामिव लेश्या येषां ते पीतपद्मशुक्ललेश्याः । तत्र कस्य का लेश्या इति । अत्रोच्यतेसौधर्मेशानयोः पीतलेश्या: । सानत्कुमारमाहेन्द्रयोः पीतपद्मलेश्याः । ब्रह्मलोक ब्रह्मोत्तरलान्तवकापिष्ठेषु पद्मलेश्याः | शुक्रमहाशुक्रशतारसहस्रारेषु पदमशुक्ललेश्याः । आनतादिषु शुक्ललेश्याः । तत्राप्यनुदिशानुत्तरेषु परमशुक्ललेश्याः । सूत्रेऽनभिहितं कथं मिश्रग्रहणम् ? साहचर्याल्लोकवत् । तद्यथा - छत्रिणो गच्छन्ति इति अच्छत्रिषु छत्रव्यवहारः । एवमिहापि मिश्रयोरन्यतरग्रहणं भवति । अयमर्थः सूत्रतः कथं गम्यते इति चेत् । उच्यते-- एवमभिसंबन्धः क्रियते, द्वयोः कल्पयुगलयोः पीतलेश्या; सानत्कुमारमाहेन्द्रयोः पद्मलेश्याया अविवक्षातः । ब्रह्मलोकादिषु त्रिषु कल्पयुगलेषु पद्मलेश्या; शुक्रमहाशुकयोः शुक्ललेश्याया अविवक्षातः । शेषेषु शतारादिषु शुक्ललेश्या; पद्मलेश्याया अविवक्षातः । इति नास्ति दोषः ।
समास है । जिनके ये पीत, पद्म और शुक्ल लेश्याएं पायी जाती हैं। पीत, पद्म और शुक्ल लेश्यावाले देव हैं । शंका-पीता, पद्मा और शुक्ला ये तीनों शब्द दीर्घ हैं वे ह्रस्व किस नियमसे हो गये ? समाधान - जैसे 'द्रुतायां तपरकरणे मध्यमविलम्बितयोरुपसंख्यानम्' अर्थात् द्रुतावृत्तिमें तपरकरण करनेपर मध्यमा और विलम्बितावृत्तिमें उसका उपसंख्यान होता है इसके अनुसार यहाँ 'मध्यमा' शब्दमें औत्तरपदिक ह्रस्व हुआ है । उसी प्रकार प्रकृतमें भी औत्तरपदिक ह्रस्व जानना चाहिए। अथवा यहाँ पीता, पद्मा और शुक्ला शब्द न लेकर पीत, पद्म और शुक्ल 'वर्णवाले पदार्थ लेने चाहिए। जिनके इन वर्णोंके समान लेश्याएँ पायी जाती हैं वे पीत. पदम और शुक्ल लेश्यावाले जीव हैं । इस प्रकार यहाँ पीत, पद्म और शुक्ल ये तीन शब्द ह्रस्व ही समझना चाहिए। अब किसके कौन लेश्या है यह बतलाते हैं-सौधर्म और ऐशान कल्प में पीत लेश्या है । सानत्कुमार और माहेन्द्रकल्प में पीत और पद्म लेश्याएँ हैं । ब्रह्मलोक, ब्रह्मोत्तर, लान्तव और कापिष्ठ कल्पों में पद्मलेश्या है । शुक्र, महाशुक्र, शतार और सहस्रार कल्पमें पद्म और शुक्ल ये दो लेश्याएँ हैं । तथा आनतादिकमें शुक्ल लेश्या है । उसमें भी अनुदिश और अनुत्तर विमानों में परम शुक्ल लेश्या है । शंका- सूत्रमें तो मिश्र लेश्याएँ नहीं कही हैं फिर उनका ग्रहण कैसे होता है ? समाधान - साहचर्यवश मिश्र लेश्याओंका ग्रहण होता है, लोकके समान । जैसे, 'छत्री जाते हैं' ऐसा कथन करने पर अछत्रियोंमें भी छत्री व्यवहार होता है उसी प्रकार यहाँ भी दोनों मिश्र लेश्याओं में से किसी एकका ग्रहण होता है। शंका- यह अर्थ सूत्रसे कैसे जाना जाता है ? समाधान - यहाँ ऐसा सम्बन्ध करना चाहिए कि दो कल्प युगलों में पीत लेश्या है । यहाँ सानत्कुमार और माहेन्द्र कल्पमें पद्मलेश्याकी विवक्षा नहीं की । ब्रह्मलोक आदि तीन कल्पयुगलोंमें पद्म लेश्या है। शुक्र और महाशुक्रमें शुक्ल लेश्याकी विवक्षा नहीं की । शेष शतार आदिमें शुक्ललेश्या है । पद्म लेश्याकी विवक्षा नहीं की । इसलिए कोई दोष नहीं है ।
1. तरपादिकम् आ., दि. 1, दि. 21 2. यथाहु: दु- मु. ना. ता. 3 ' द्रुतायां तपरकरणे मध्यमविलम्बितयोरुपसंख्यानं कालभेदात् । द्रुतायां तपरकरणे मध्यमविलम्बितयोरुपसंख्यानं कर्तव्यम् । तथा मध्यमायां द्रुतविलम्बितयोः तथा विलम्बितायां द्रुतमध्यमयोः । किं पुनः कारणं न सिद्ध्यति । कालभेदात् । ये हि द्रुतायाँ वृत्तौ वर्णास्त्रिभागाधिकास्ते मध्यमायाम् । ये च मध्यमायां वर्णास्त्रिभागाधिकास्ते विलम्बितायाम् ।' -पा. म. मा. 1, 1, 9 1 4 ख्यानमिति । द्रुतमध्यमविलम्बिता इति । अथवा आ, दि. 1 -ख्यानमिति । द्रुतमध्यमविलम्बिता इति । अथवा दि. 2 ।
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