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192] सर्वार्थ सिद्धी
[4123 84868486. आह कल्पोपपन्ना इत्युक्तं तत्रेदं न ज्ञायते के कल्पा इत्यत्रोच्यते
प्राग्वेयकेभ्यः कल्पाः ॥23॥ 8487. इदं न ज्ञायते इत आरभ्य कल्पा भवन्तीति सौधर्मादिग्रहणमनुवर्तते । तेनायमों लभ्यते--सौधर्मादयः प्राग्वेयकेभ्यः कल्पा इति । पारिशेष्यादितरे कल्पातीता इति ।
8488. लोकान्तिका देवा वैमानिकाः सन्तः क्व गृह्यन्ते ? कल्पोपपग्नेषु । कथमिति चेदुच्यते
ब्रह्मलोकालया लौकान्तिकाः ॥24॥ 8489. एत्य तस्मिन् लीयन्त इति आलय आवासः । ब्रह्मलोक आलयो येषां ते ब्रह्मलोकालया लौकान्तिका देवा वेदितव्याः । यद्येवं सर्वेषां ब्रह्मलोकालयानां देवानां लौकान्तिकत्वं प्रसक्तम् । अन्वर्थसंज्ञाग्रहणाददोषः । ब्रह्मलोको लोकः, तस्यान्तो लोकान्तः, तस्मिन्भवा लौकान्तिका इति न सर्वेषां ग्रहणम् । तेषां हि विमानानि ब्रह्मलोकस्यान्तेषु स्थितानि । अथवा जन्मजरामरणाकीर्णो लोकः संसारः, तस्यान्तो लोकान्तः। लोकान्ते भवा लौकान्तिकाः। ते सर्वे परीतसंसाराः, ततश्च्यता एकं गर्भावासं प्राप्य परिनिर्वास्यन्तीति ।
8 490. तेषां सामान्येनोपदिष्टानां भेदप्रदर्शनार्थमाह
सारस्वतादित्यवह्नयरुरणगर्दतोयतुषिताव्याबाधारिष्टाश्च ।।25।।
8486. कल्पोपपन्न देव हैं यह कह आये पर यह नहीं ज्ञात हुआ कि कल्प कौन हैं, इसलिए आगेका सूत्र कहते हैं
ग्रैवेयकोंसे पहले तक कल्प हैं ॥23॥
8487. यह नहीं मालूम होता कि यहाँसे लेकर कल्प हैं, इसलिए सौधर्म आदि पदकी अनुवृत्ति होती है। इससे यह अर्थ प्राप्त होता है कि सौधर्मसे लेकर और नौ ग्रंवेयकसे पूर्वतक कल्प हैं । परिशेष न्यायसे यह भी ज्ञात हो जाता है कि शेष सब कल्पातीत हैं।
488. लोकान्तिक देव वैमानिक हैं उनका किनमें समावेश होता है ? वैमानिकोंमें । कैसे ? अब इसी बातके बतलानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
लौकान्तिक देवोंका ब्रह्मलोक निवासस्थान है ॥24॥
8 489. आकर जिसमें लयको प्राप्त होते हैं अर्थात् निवास करते हैं वह आलय या आवास कहलाता है। ब्रह्मलोक जिनका घर है वे ब्रह्मलोकमें रहनेवाले लौकान्तिक देव जानना चाहिए। शंका –यदि ऐसा है तो ब्रह्मलोकमें रहनेवाले सब देव लोकान्तिक हुए ? समाधानसार्थक संज्ञाके ग्रहण करनेसे यह दोष नहीं रहता । लौकान्तिक शब्दमें जो लोक शब्द है उससे ब्रह्मलोक लिया है और उसका अन्त अर्थात् प्रान्तभाग लोकान्त कहलाया। वहाँ जो होते हैं वे लौकान्तिक कहलाते हैं, इसलिए ब्रह्मलोकमें रहनेवाले सब देवोंका ग्रहण नहीं होता है। इन लौकान्सिक देवोंके विमान ब्रह्मलोकके प्रान्तभाग में स्थित हैं। अथवा जन्म, जरा और मरणसे व्याप्त संसार लोक कहलाता है और उसका अन्त लोकान्त कहलाता है । इस प्रकार संसारके अन्तमें जो होते हैं वे लौकान्तिक हैं, क्योंकि ये सब परीतसंसारी होते हैं। वहाँसे च्युत होकर और एक बार गर्भ में रहकर निर्वाणको प्राप्त होंगे।
8490. सामान्यसे कहे गये उन लौकान्तिक देवोंके भेदोंका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
सारस्वत, आदित्य, वह्नि, अरुण, गर्दतोय, तुषित, अव्याबाध और अनिष्ट ये लौकान्तिक देव हैं ॥25॥
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