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तृतीयोऽध्यायः क्षेत्राणां मध्यं तन्मध्यम् । तन्मध्यं तन्मध्येन वा गच्छन्तीति तन्मध्यगाः। एकत्र सर्वास प्रसंगनिवृत्त्यर्थं दिग्विशेषप्रतिपत्त्यर्थं चाह
द्वयोर्वयोः पूर्वाः पूर्वगाः ॥21॥ 8406. द्वयोर्द्वयोः सरितोरेकै क्षेत्रं विषय इति वाक्यशेषाभिसंबन्धादेकत्र सर्वासा प्रसंगनिवृत्तिः कृता । 'पूर्वाः पूर्वगाः' इति वचनं दिग्विशेषप्रतिपत्त्यर्थम् । तत्र पूर्वा याः सरितस्ताः पूर्वगाः । पूर्वजलधि गच्छन्तीति पूर्वगाः । किमपेक्षं पूर्वत्वम् ? सूत्रनिर्देशापेक्षम् । यद्येवं गङ्गासिन्ध्वादयः सप्त पूर्वगा इति प्राप्तम् ? नैष दोषः; द्वयोयोरित्यभिसंबन्धात् । द्वयोर्द्वयोः पूर्वाः पूर्वगा इति वेदितव्याः । 8407. इतरासां दिग्विभागप्रतिपत्त्यर्थमाह---
शेषास्त्वपरगाः ॥22॥ 8408. द्वयोर्द्वयोर्या अवशिष्टास्ता अपरगाः प्रत्येतव्याः । अपरसमुद्रं गच्छन्तीत्यपरगाः। तत्र पद्महदप्रभवा पूर्वतोरणद्वारनिर्गता गङ्गा । अपरतोरणद्वारनिर्गता सिन्धुः । उदीच्यतोरणद्वारनिर्गता रोहितास्या। महापद्महदप्रभवा अवाच्यतोरणद्वारनिर्गता रोहित् । उदीच्यतोरणद्वारनिर्गता हरिकान्ता । तिगिञ्छहदप्रभवा दक्षिणतोरणद्वारनिर्गता हरित् । उद्वीच्यतोरणद्वारनिर्गता खुलासा करनेके लिए सूत्रम 'तन्मध्यगाः' पद दिया है। इसका यह भाव है कि उन क्षेत्रोंमें या उन क्षेत्रोंमें-से होकर वे नदियाँ बही हैं । एक स्थानमें सबका प्रसंग प्राप्त होता है, अतः इसका निराकरण करके दिशा विशेषका ज्ञान करानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
दो-दो नदियों में से पहली-पहली नदी पूर्व समुद्रको जाती है ॥21॥
$ 406. इस सूत्रमें 'दा-दो नदियाँ एक-एक क्षत्रमें हैं' इस प्रकार वाक्यविशेषका सम्बन्ध कर लेनेसे एक क्षेत्र में सब नदियोके प्रसंग होनेका निराकरण हो जाता है। 'पूर्वाः पूर्वगाः' यह वचन दिशाविशेषका ज्ञान कराने के लिए दिया है। इन नदियोंम जो प्रथम नदियाँ हैं वे पूर्व समुद्रमें जाकर मिली हैं । सूत्रम जो 'पूर्वगाः' पद है उसका अर्थ 'पूर्व समुद्रको जाती हैं' यह है । शंका-पूर्वत्व किस अपेक्षासे है ? समाधान-सूत्रम किये गये निर्देशकी अपेक्षा। शंका यदि ऐसा है तो गंगा, सिन्धु आदि सात नदियाँ पूर्व समुद्रको जानेवालो प्राप्त होती हैं ? समाधानयह कोई दोष नहीं, क्योंकि 'द्वयोः द्वयोः' इन पदोंका सम्बन्ध है। तात्पर्य यह है कि दो-दो नदियों में से प्रथम-प्रथम नदी वहकर पूर्व समुद्रमें मिली है।
$ 407. अब इतर नदियांके दिशाविशेषका ज्ञान कराने के लिए आगेका सूत्र कहते हैं.. किन्तु शेष नदियाँ पश्चिम समुद्रको जाती हैं ॥22॥
$408. दो-दो नदियोंमें जो शेष नदियाँ हैं वे बहकर पश्चिम समुद्र में मिली हैं। 'अपरगाः' पदका अर्थ अपर समुद्र को जातो हैं यह है। उनमें-से पद्म तालाबसे उत्पन्न हुई और पूर्व तोरण द्वारसे निकली हुई गगा नदी है । पश्चिम तोरण द्वारसे निकली हुई सिन्धु नदी है तथा उत्तर तोरण द्वारसे निकली हुई रोहितास्या नदी है । महापद्म तालाबसे उत्पन्न हुई और दक्षिण तोरणद्वारसे निकला हुई रोहित नदा है तथा उत्तर तोरणद्वारसे निकली हुई हरिकान्ता नदी है। तिगिंछ तालाबसे उत्पन्न हुई और दक्षिण तोरणद्वारसे निकली हुई हरित नदी है। और उत्तर तोरण द्वारसे निकली हुई सीतोदा नदी है । केसरी तालाबसे उत्पन्न हुई और दक्षिण तोरणद्वारसे 1. मध्यं तन्मध्यं तन्मध्येन मु. । मध्यं तन्मध्येन आ., दि. 1, दि.2। 2. --पूर्व जलधि मु.। 3. अपाच्यतोरण- आ. 2, दि. 1, दि. 2, ता., ना.।
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