________________
-4112 § 465]
शेषनवानां कुमाराणामावासाः ।
चतुर्थोऽध्यायः
6462. द्वितीय निकायस्य सामान्यविशेषसंज्ञावधारणार्थमाह्—
व्यन्तराः किंनरकिंपुरुषमहोरगगन्धर्वयक्षराक्षसभूत पिशाचाः 1110
8463. विविधदेशान्तराणि येषां निवासास्ते 'व्यन्तराः' इत्यन्वर्था सामान्यसंज्ञेयमष्टानामपि विकल्पानाम् । तेषां व्यन्तराणामष्टौ विकल्पाः किंनरादयो वेदितव्या नामकर्मोदय विशेषापादिताः । क्व पुनस्तेषामावासा इति चेत् । उच्यते—– अस्माज्जम्बूद्वीपादसंख्येयान् द्वीपसमुद्रानतीत्य उपरिष्टे' खरपृथिवीभागे सप्तानां व्यन्तराणामावासाः । राक्षसानां पङ्कबहुलभागे ।
8464. : तृतीयस्य निकायस्य सामान्यविशेषसंज्ञासंकीर्तनार्थमाहज्योतिष्काः सूर्याचन्द्रमसौ ग्रहनक्षत्रप्रकीर्णकतारकारच
[183
ii120
8465. ज्योतिस्स्वभावत्वादेषां पञ्चानामपि 'ज्योतिष्का:' इति सामान्यसंज्ञा अन्वर्था । सूर्यादयस्तद्विशेषसंज्ञा नामकर्मोदयप्रत्ययाः । 'सूर्याचन्द्रमसौ' इति पृथग्ग्रहणं प्राधान्यख्यापनार्थम् । किकृतं पुनः प्राधान्यम् ? प्रभावादिकृतम् । क्व पुनस्तेषामावासाः ? इत्यत्रोच्यते, अस्मात्समाद् भूमिभागादृवं सप्तयोजनशतानि नवत्युत्तराणि उत्पत्य सर्वज्योतिषामधोभागविन्यस्तास्तारकाचरन्ति । ततो दशयोजनान्युत्पत्य सूर्याश्चरन्ति । ततोऽशीतियोजनान्युत्पत्य चन्द्रमसो भ्रमन्ति । रचत्वारि योजनान्युत्पत्य नक्षत्राणि । ततश्चत्वारि योजनान्युत्पत्य बुधाः । ततस्त्रीणि नौ प्रकारके कुमारोंके भवन हैं ।
8462. अब दूसरे निकायकी सामान्य और विशेष संज्ञाके निश्चय करने के लिए आगेका सूत्र कहते हैं
व्यन्तर देव आठ प्रकारके हैं— किन्नर, किम्पुरुष, महोरग, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, भूत और पिशाच ॥11॥
8463. जिनका नानाप्रकारके देशोंमें निवास है वे व्यन्तर देव कहलाते हैं । यह सामान्य संज्ञा सार्थक है जो अपने आठों ही भेदोंमें लागू है । इन व्यन्तरोंके किन्नरादिक आठों भेद विशेष नामकर्मके उदयसे प्राप्त होते हैं ऐसा जानना चाहिए। शंका- इन व्यन्तरोंके आवास कहाँ हैं ? समाधान – इस जम्बूद्वीपसे असंख्यात द्वीप और समुद्र लाँघकर ऊपरके खर पृथिवी भाग में सात प्रकारके व्यन्तरोंके आवास हैं । तथा पंकबहुल भागमें राक्षसों के आवास हैं ।
$ 464. अब तीसरे निकायकी सामान्य और विशेष संज्ञाका कथन करने के लिए आगे का सूत्र कहते हैं --
ज्योतिषी देव पाँच प्रकारके हैं- सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र और प्रकीर्णक तारे ॥12॥
$ 465. ये सब पाँचों प्रकारके देव ज्योतिर्मय हैं, इसलिए इनकी ज्योतिषी यह सामान्य संज्ञा सार्थक है । तथा सूर्य आदि विशेष संज्ञाएँ विशेष नामकर्मके उदयसे प्राप्त होती हैं । सूर्य और चन्द्रमाकी प्रधानताको दिखलानेके लिए 'सूर्याचन्द्रमसौ' इस प्रकार इन दोनोंका अलग से ग्रहण किया है । शंका- इनमें प्रधानता किस निमित्तसे प्राप्त होती है ? समाधान -इनमें प्रभाव आदिककी अपेक्षा प्रधानता प्राप्त होती है । शंका- इनका आवास कहाँपर है ? समाधान- इस समान भूमिभागसे सातसौ नब्बे योजन ऊपर जाकर तारकाएँ विचरण करती हैं जो सब ज्योतिषियोंके अधोभागमें स्थित हैं। इससे दस योजन ऊपर जाकर सूर्य विचरण करते हैं। इससे 1. -तीत्य परिष्टे आ., ता., ना., दि. 1, दि. 2 2 -त्तराणि 790 उत्प- मु । 3 ततस्त्रीणि योजता., ना., । तत्त्वा. । 4 ततस्त्रीणि योज- ता., ना., तत्त्वा ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org