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---3118 § 401]
तृतीयोऽध्यायः
प्रथमो योजनसहस्रायामस्तदर्द्धविष्कम्भो हृदः ॥15॥
$ 395. प्राक्प्रत्यग् योजन सहस्रायाम उदगवाक् पञ्चयोजनशतविस्तारो वज्रमयतलो विविधमणिकनक विचित्रिततटः पद्मनामाह्रदः ।
8396. तस्थावगाप्रक्लृप्त्यर्थमिदमुच्यते
दशयोजनावगाहः ।।16।।
8397. अवगाहोऽधः प्रवेशो निम्नता । दशयोजनान्यवगाहोऽस्य दशयोजनावगाहः । 8398. 'तन्मध्ये किम्
तन्मध्ये योजनं पुष्करम् ॥17॥
8399. योजनप्रमाणं योजनम्, क्रोशायामपत्रत्वात्क्रोशद्वयविष्कम्भकणिकत्वाच्च योजनायामविष्कम्भम् । जलतलात्क्रोशद्वयोच्छ्रायनालं यावद्बहुलपत्रप्रचयं पुष्करमवगन्तव्यम् । $ 400. इतरेषां हृदानां पुष्कराणां चायामादिनिर्ज्ञानार्थमाहतद्विगुणद्विगुणा हदाः पुष्कराणि च ॥18॥
8401. स च तच्च ते, तयद्विगुणा' द्विगुणास्तद्विगुणद्विगुणा इति द्वित्वं व्याप्तिज्ञापनार्थम् । केन द्विगुणाः ? आयामादिना । पद्मह्रदस्य द्विगुणायामविष्कम्भावगाहो महापद्मो
पहला तालाब एक हजार योजन लम्बा और इससे आधा चौड़ा है ।। 150
8395. पद्म नामक तालाव पूर्व और पश्चिम एक हजार योजन लम्बा है तथा उत्तर और दक्षिण पाँच सौ योजन चौड़ा है। इसका तलभाग वज्रसे बना हुआ है। तथा इसका तट नाना प्रकारके मणि और सोनेसे चित्रविचित्र है ।
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$ 396. अब इसकी गहराई दिखलानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं—
तथा दस योजन गहरा है ॥16॥
8397. अवगाह, अधः प्रवेश और निम्नता ये एकार्थवाची नाम हैं । पद्म तालाबकी गहराई दस योजन है यह इस सुत्रका तात्पर्य है ।
8398. इसके बीच में क्या है ?
इसके बीच में एक योजनका कमल है । 17
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8399. सूत्रमें जो 'योजनम्' पद दिया है उससे एक योजन प्रमाण लेना चाहिए। तात्पर्य यह है कि कमलका पत्ता एक कोस लम्बा है और उसकी कणिकाका विस्तार दो कोसका है, इसलिए कमल एक योजन लम्बा और एक योजन विस्तारवाला है । इस कमलकी नाल जलतल से दो कोस ऊपर उठी है और इसके पत्तोंकी उतनी ही मोटाई है। इस प्रकार यह कमल जानना चाहिए ।
8400. अब दूसरे तालाब और कमलोंकी लम्बाई आदिका ज्ञान करानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
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आगे तालाब और कमल दूने दूने हैं || 18 |
§ 401. सूत्र में जो 'तत्' पद आया है उससे तालाब और कमल दोनोंका ग्रहण किया है। आगेके तालाब और कमल दूने दूने हैं इस व्याप्तिका ज्ञान करानेके लिए सूत्र में ' तद्विगुणद्विगुणाः ' कहा है। शंका-ये तालाब और कमल किसकी अपेक्षा दूने हैं ? समाधान - लम्बाई आदिकी 1. -- गाहः । तन्मध्ये योजनं आ, दि. 1, दि. 2 1 2. तयद्विगुणास्तद्विगुणास्त- मु. । 3. ज्ञानार्थम् मु. । 4. - पद्महृदः मु.
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