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168] सर्वार्थसिद्धौ
[31308423तत्र मनुष्या स्त्रिपल्योपमायुषः षड्धनुःसहस्रोच्छाया अष्टमभक्ताहाराः कनकवर्णाः । 8 423. अथोत्तरेषु कावस्थेत्यत आह
तथोत्तराः ॥30॥ 8424. यथा दक्षिणा व्याख्यातास्तथैवोत्तरा वेदितव्याः । हैरण्यवतका हैमवतकस्तुल्याः । राम्यका हारिवर्षकैस्तुल्याः । दैवकुरवरौत्तरकुरवकाः समाख्याताः । 8425. अथ विदेहेष्ववस्थितेष का स्थितिरित्यत्रोच्यते
विदेहेषु संख्येयकालाः ॥31॥ 6426. 'सर्वेषु विदेहेषु संख्येयकाला मनुष्याः । तत्र कालः सुषमदुष्षमान्तोपमः सदावस्थितः। मनुष्याश्च पञ्चधनुःशतोत्सेधाः । नित्याहाराः। उत्कर्षेणेकपूर्वकोटोस्थितिकाः । जघन्येनान्तर्मुहूर्तायुषः । तस्याश्च संबन्धे गाथां पठन्ति
"पुवस्स दु परिमाणं सदर खलु कोडिसदसहस्साई।
छप्पण्णं च सहस्सा वोद्धव्वा वासकोडीणं॥" 8427. उक्तो भरतस्य विष्कम्भः । पुनः प्रकारान्तरेण तत्प्रतिपत्त्यर्थमाह
भरतस्य विष्कम्भो जम्बूद्वीपस्य नवतिशतभागः ।।32॥ 8428. जम्बूद्वीपविष्कम्भस्य योजनशतसहस्रस्य नवतिशतभागीकृतस्यैको भागो भरतस्य दिनके अन्तरालसे होता है और शरीरका रंग सोनेके समान पीला है।
8423. उत्तर दिशावर्ती क्षेत्रोंमें क्या अवस्था है इसके बतलानेके लिए अब आगेका सूत्र कहते हैं
दक्षिणके समान उत्तरमें है ॥30॥
8424. जिस प्रकार दक्षिणके क्षेत्रोंका व्याख्यान किया उसी प्रकार उत्तरके क्षेत्रोंका जानना चाहिए। हैरण्यवत क्षेत्रोंके मनुष्योंकी सब बातें हैमवतके मनुष्योंके समान हैं, रम्यक क्षेत्रके मनुष्योंकी सब बातें हरिवर्ष क्षेत्रके मनुष्योंके समान हैं और देवकुरु क्षेत्रके मनुष्योंकी सब बातें उत्तरकुरु क्षेत्रके मनुष्योंके समान हैं।
8 425. पाँच विदेहोंमें क्या स्थिति है इसके बतलानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैंविदेहोंमें संख्यात वर्षको आयुवाले मनुष्य हैं ॥31॥
8426. सब विदेहोंमें संख्यात वर्षकी आयुवाले मनुष्य होते हैं। वहाँ सुषमदुःषमा कालके अन्तके समान काल सदा अवस्थित है। मनुष्योंके शरीरकी ऊँचाई पाँच सौ धनुष होती है, वे प्रतिदिन आहार करते हैं । उनकी उत्कृष्ट आयु एक पूर्वकोटि वर्षप्रमाण और जघन्य आयु अन्तर्मुहर्त प्रमाण है। इसके सम्बन्धमें एक गाथा कही जाती है
"एक पर्वकोटिका प्रमाण सत्तर लाख करोड और छप्पन हजार करोड वर्ष जानना चाहिए।"
8427. भरतक्षेत्रका विस्तार पहले कह आये हैं। अब प्रकारान्तरसे उसका ज्ञान कराने. के लिए आगेका सूत्र कहते हैं---
भरत क्षेत्रका विस्तार जम्बूद्वीपका एकसौ नम्वेवाँ भाग है ॥32॥
8428. एक लाख योजन प्रमाण जम्बूद्वीपके विस्तारके एक सौ नब्बे भाग करनेपर 1. सर्वेषु पंचसु महाविदे- मु.। 2. कालः दुःषमसुषमादिः सदा ता., ना. । 3. तस्यास्ति सम्बन्धे आ., दि. 1, दि. 2। 4. -डीणं ।। 70560000000000 उक्तो मु. ता., ना., ।
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