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-31338430] तृतीयोऽध्यायः
169 विष्कम्भः । स पूर्वोक्त एव । उक्तं जम्बूद्वीपं परिवृत्य वेदिका स्थिता, ततः परो लवणोदः समुद्रो द्वियोजनशतसहस्रवलयविष्कम्भः । ततः परोधातकीखण्डो द्वीपश्चतुर्योजनशतसहस्रवलयविष्कम्भः । 8429. तत्र वर्षादीनां संख्यादि विधिप्रतिपत्त्यर्थमाह
द्विर्धातकीखण्डे ॥33॥ 8430. भरतादीनां द्रव्याणामिहाभ्यावृत्तिविवक्षिता । तत्र कथं सुच् ? अध्याह्रियमाणक्रियाभ्यावृत्तिद्योतनार्थः सुच् । यथा द्विस्तावानयं प्रासादो मीयत इति । एवं द्विर्धातकीखण्डे भरतादयो मीयन्ते इति । तद्यथा-द्वाभ्यानिष्वाकारपर्वताभ्यां दक्षिणोत्तरायताभ्यां लवणोदकालोक्वेदिकास्पृष्टकोटिभ्यां विभक्तो धातकीखण्डः पूर्वापर इति । तत्र पूर्वस्य अपरस्य च मध्ये द्वौ मन्दरौ। तयोरुभयतो भरतादीनि क्षेत्राणि हिमवदादयश्च वर्षधरपर्वताः। एवं दो भरतो तो हिमवन्तौ इत्येवमादि संख्यानं द्विगुणं वेदितव्यम् । जम्बूद्वीपहिमवदादीनां वर्षधराणां यो विष्कम्भस्तद्विगुणो धातकीखण्डे हिमववादीनां वर्षधराणाम् । वर्षधराश्चक्रारवदवस्थिताः। अरविवरसंस्थानानि क्षेत्राणि । जम्बूद्वीपे यत्र जम्बूवृक्षः स्थितः तत्र धातकीखण्डे धातकीवृक्षः सपरिवारः । तद्योगाद्धातकीखण्ड इति द्वीपस्य नाम प्रतीतम् । तत्परिक्षेपी कालोवः समुद्रः टंकच्छिन्नतीर्थः अष्टजो एक भाग प्राप्त हो उतना भरतक्षेत्रका विस्तार है जो कि पूर्वोक्त पांचसो छब्बीस सही छह बटे उन्नीस योजन होता है।
8429. जो पहले जम्बूद्वीप कह आये हैं उसके चारों ओर एक वेदिका है। इसके बाद लवणसमुद्र है जिसका विस्तार दो लाख योजन है । इसके बाद धातकीखण्ड द्वीप है जिसका
स्तार चार लाख योजन है। अब इसमें क्षेत्र आदिकी संख्याका ज्ञान करानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
धातकीखण्डमें क्षेत्र तथा पर्वत आदि जम्बूदीपसे दूने हैं ।।33॥
8430. भरत आदि क्षेत्रोंकी यहाँ आवृत्ति विवक्षित है। शंका-सूत्रमें 'सुच्' प्रत्यय किसलिए किया है ? समाधान वाक्य पूरा करने के लिए जो क्रिया जोड़ी जाती है उसकी आवृत्ति बतलानेके लिए 'सुच्' प्रत्यय किया है । जैसे 'द्विस्तावान् अयं प्रासादः' यहाँ 'सुच्' प्रत्ययके रहनेसे यह प्रासाद दुमंजिला है यह समझा जाता है । इसी प्रकार धातकीखण्डमें 'सुच्' से भरतादिक दूने ज्ञात हो जाते हैं । यथा-अपने सिरेसे लवणोद और कालोदको स्पर्श करनेवाले और दक्षिणसे उत्तर तक लम्बे इष्वाकार नामक दो पर्वतोंसे विभक्त होकर धातकीखण्ड द्वीपके दो भाग हो जाते हैं-पूर्व धातकीखण्ड और पश्चिम धातकीखण्ड । इन पूर्व और पश्चिम दोनों खण्डोंके मध्यमें दो मन्दर अर्थात् मेरु पर्वत हैं। इन दोनों के दोनों ओर भरत आदि क्षेत्र और हिमवान् आदि पर्वत हैं। इस प्रकार दो भरत दो हिमवान् इत्यादि रूपसे जम्बूद्वीपसे धातकीखण्ड द्वीपमें दूनी संख्या जाननी चाहिए। जम्बूद्वीपमें हिमवान् आदि पर्वतोंका जो विस्तार है धातकी खण्ड द्वीपमें हिमवान् आदि पर्वतोंका उससे दूना विस्तार है। चक्के में जिस प्रकार आरे होते हैं उसी प्रकार ये पर्वत क्षेत्रोंके मध्य में अवस्थित हैं। और चक्के में छिद्रोंका जो आकार होता है यहाँ क्षेत्रोंका वही आकार है । जम्बूद्वीपमें जहाँ जम्बू वृक्ष स्थित है धातकीखण्डद्वीपमें परिवार वृक्षोंके साथ वहाँ धातकी वृक्ष स्थित है । और इसके सम्बन्धसे द्वीपका नाम धातकीखण्ड प्रसिद्ध है। इसको घेरे हुए कालोद समुद्र है। जिसका घाट ऐसा मालूम देता है कि उसे टाँकीसे काट 1. संख्याविषि- मु.। 2. -तकीषंडे ता., ना., दि. 1, दि. 2, आ.। 3. -र्वस्य चापरस्य मध्ये मु.।
विस्तार चार लाख
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