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180] सर्वार्थसिद्धी
14158451प्रसक्तास्ततोऽपवादार्थमाह
त्रास्त्रिशलोकपालवा व्यन्तर ज्योतिष्काः ॥5॥ 8451. व्यन्तरेषु ज्योतिष्केषु च त्रास्त्रिशाल्लोकपालांच वर्जयिरवा इतरेऽष्टो विकल्पा द्रष्टव्याः। 8452. अब तेषु निकायेषु किमेकक इन्द्र उतान्यः प्रतिनियमः कश्चिदस्तीत्यत आह
पूर्वयोर्वीन्द्राः ॥6॥ 8453. पूर्वयोनिकाययोर्भवनवासिव्यन्तरनिकाययोः । कथं द्वितीयस्य पूर्वत्वम् ? सामीप्यात्पूर्वस्वमुपचर्योक्तम् । 'दीन्द्राः' इति अन्त तवीप्सार्थः । द्वौ द्वौ इन्द्रो येषां ते द्वोन्द्रा इति । पमा सप्तपर्णोऽष्टापद इति । तद्यथा--भवनवासिषु तावदसुरकुमाराणां द्वाविन्द्रौ चमरो वैरोचनश्च । नागकुमाराणां धरणो भूतानन्दश्च । विद्युत्कुमाराणां हरिसिंहो हरिकान्तश्च । सुपर्णकुमाराणां वेणुदेवो वेणुधारी च। अग्निकुमाराणामग्निशिखोऽग्निमाणवश्च । वातकुमाराणां बैलम्बः प्रभञ्जनश्च । स्तनितकुमाराणां सुघोषो महाघोषश्च । उदधिकुमाराणां जलकान्तो जलप्रभश्च । द्वीपकुमाराणां पूर्णो वसिष्ठश्च । विक्कुमाराणाममितगतिरमितवाहनश्चेति । व्यन्तरेष्वपि किन्नराणां द्वाविन्द्रौ किन्नरः किम्पुरुषश्च । किम्पुरुषाणां सत्पुरुषो महापुरुषश्च । महोरगाणांमतिकायो महाकायश्च । गन्धर्वाणां गीतरतिर्गोतयशश्च । यक्षाणां पूर्णभद्रो मणिभद्रश्च । अतः जहाँ अपवाद है उसका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
किन्तु व्यन्तर और ज्योतिष्क देव त्रास्त्रिश और लोकपाल इन दो भेदों से रहित हैं ।।5।।
8551. व्यन्तर और ज्योतिषियोंमें प्रायस्त्रिश और लोकपाल इन दो भेदोंके सिवा शेष आठ भेद जानना चाहिए।
8452. उन निकायोंमें क्या एक-एक इन्द्र है या और दूसरा कोई नियम है इस बातके बतलानेके लिए अब आगेका सूत्र कहते हैं
प्रथम दो निकायोंमें दो दो इन्द्र हैं ॥6॥
6453. पूर्वके दो निकायोंसे भवनवासी और व्यन्तर ये दो निकाय लेना चाहिए। शंका-दूसरे निकायको पूर्व कैसे कहा जा सकता है ? समाधान-प्रथमके समीपवर्ती होनेसे दूसरे निकाय को उपचारसे पूर्व कहा है। 'द्वीन्द्राः' इस पदमें वीप्सारूप अर्थ गभित है अतः इसका विग्रह इस प्रकार हुआ कि 'द्वौ द्वौ इन्द्रौ येषां ते दीन्द्राः' जैसे सप्तपर्ण और अष्टापद । तात्पर्य यह है जिस प्रकार सप्तपर्ण और अष्टापद इन पदोंमें वीप्सारूप अर्थ गभित है उसी प्रकार प्रकृतमें जानना चाहिए । खुलासा इस प्रकार है-भवनवासियोंमें असुरकुमारोंके चमर और वैरोचन ये दो इन्द्र हैं। नागकुमारोंके धरण और भूतानन्द ये/दो इन्द्र हैं । विद्युत्कुमारोंके हरिसिंह और हरिकान्त ये दो इन्द्र हैं । सुपर्णकुमारोंके वेणुदेव और वेणुधारी ये दो इन्द्र हैं । अग्निकुमारोंके अग्निशिख और अग्निमाणव ये दो इन्द्र हैं । वातकुमारोंके वैलम्ब और प्रभंजन ये दो इन्द्र हैं । स्तनितकुमारोंके सुघोष और महाघोष ये दो इन्द्र हैं । उदधिकुमारोंके जलकान्त और जलप्रभ ये दो इन्द्र हैं । दीपकुमारोंके पूर्ण और विशिष्ट ये दो इन्द्र हैं । तथा दिक्कुमारोंके अमित गति और अमितवाहन ये दो इन्द्र हैं । व्यन्तरोंमें भी किन्नरोंके किन्नर और किम्पुरुष ये दो इन्द्र हैं। किम्पुरुषोंके सत्पुरुष और महापुरुष ये दो इन्द्र हैं । महोरगोंके अतिकाय और महाकाय ये दो.इन्द्र है । गन्धों के गीतरति और गीतयश ये दो इन्द्र हैं । यक्षोंके पूर्णभद्र और मणिभद्र ये 1.-बर्जा म्य- ता., ना., । 2. -रुषश्चेति महो- मु.।
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