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सर्वार्थसिद्धी
[3112 § 389
8389. त एते हिमवदादयः पर्वता हेमादिमया वेदितव्या यथाक्रमम् । हेममयो हिमवान् चीनवर्ण: । अर्जुनमयो महाहिमवान् शुक्लवर्णः । तपनीयमयो निषधस्तरणादित्यवर्णः । वैडूर्यमयो नीलो मयूरग्रीवाभः । रजतमयो रुक्मी शुक्लः । हेममयः शिखरो चीनपट्टवर्णः । 8390. पुनरपि तद्विशेषणार्थमाह
मणिविचित्र पार्वा उपरि मूले च तुल्यविस्ताराः ।।13।।
$ 391. नानावर्णप्रभादिगुणोपेतैर्मणिभिविचित्राणि पार्खाणि येषां ते मणिविचित्रपावः । अनिष्ट' संस्थानस्य निवृत्त्यर्थमुपर्यादिवचनं क्रियते । 'च' शब्दो मध्यसमुच्चयार्थः । य एषां मूले विस्तारः स उपरि मध्ये च तुल्यः ।
8392. तेषां मध्ये लब्धास्पदा हदा उच्यन्ते-
पद्ममहापद्मतिगिञ्छ के सरि महापुण्डरीक पुण्डरीका हृदास्तेषामुपरि ॥14॥
8393. पद्मो महापद्मस्तिगिञ्छः केसरी महापुण्डरीकः पुण्डरोक इति तेषां हिमवदादीनामुपरि यथाक्रममेते हदा वेदितव्याः ।
$ 394. तत्राद्यस्य संस्थानविशेषप्रतिपत्त्यर्थमाह
8389. वे पर्वत क्रमसे हेम आदि वर्णवाले जानने चाहिए। हिमवान् पर्वतका रंग हेममय अर्थात् चीनी रेशमके समान है । महाहिमवान्का रंग अर्जुनमय अर्थात् सफेद है । निषध पर्वतका रंग तपाये गये सोनेके समान अर्थात् उगते हुए सूर्य के रंगके समान है। नील पर्वतका रंग वैडूर्यमय अर्थात् मोरके गलेकी आभावाला है । रुक्मी पर्वतका रंग रजतमय अर्थात् सफेद है और शिखरी पर्वतका रंग हेममय अर्थात् चीनी रेशमकें समान है ।
8390. फिर भी इन पर्वतोंकी और विशेषता का ज्ञान करानेके लिए आगेका सूत्र
कहते हैं
इनके पार्श्व मणियोंसे चित्र-विचित्र हैं तथा वे ऊपर, मध्य और मूलमें समान विस्तारवाले हैं ॥13॥
8391. इन पर्वतोंके पार्श्व भाग नाना रंग और नाना प्रकार की प्रभा आदि गुणोंसे युक्त मणियोंसे विचित्र हैं, इसलिए सूत्रमें इन्हें मणियोंसे विचित्र पार्श्ववाले कहा है । अनिष्ट आकारके निराकरण करनेके लिए सूत्रमें 'उपरि' आदि पद रखे हैं । 'च' शब्द मध्यभागका समुच्चय करनेके लिए है। तात्पर्य यह है कि इनका मूलमें जो विस्तार है वही ऊपर और मध्यमें है ।
8392. इन पर्वतों मध्यमें जो तालाब हैं उनका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र
कहते
इन पर्वतोंके ऊपर क्रमसे पद्म, महापद्म, तिगिछ, केसरी, महापुण्डरीक और पुण्डरीक ये तालाब हैं॥14॥
8393. पद्म, महापद्म, तिगिंच्छ, केसरी, महापुण्डरीक और पुण्डरीक ये छह ताला हैं जो उन हिमवान् आदि पर्वतोंपर क्रमसे जानना चाहिए ।
$ 394. इनमें से पहले तालाबके आकार- विशेषका ज्ञान करानेके लिए आगेका सूत्र
कहते हैं
1. तद्विशेषप्रतिपत्त्यर्थमाह मु । 2. -ष्टस्य संस्था- मु.
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